लन्दन, (वेब वार्ता)। 25 जुलाई को ब्रिटेन के सैंड्रिंघम हाउस में जो दृश्य उभरा, वह केवल एक औपचारिक शिष्टाचार नहीं, बल्कि दो महान लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं — भारत और ब्रिटेन — के बीच गहरे, बहुआयामी और भविष्यगामी संबंधों की पुष्टि थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ब्रिटेन यात्रा के दौरान किंग चार्ल्स तृतीय से हुई मुलाकात न केवल सांस्कृतिक और ऐतिहासिक साझा विरासत की पुनः स्मृति थी, बल्कि सतत विकास, पर्यावरणीय चेतना, व्यापारिक साझेदारी और वैश्विक नेतृत्व जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर गहन संवाद की भी भूमि बनी।
संवाद का मूल स्वर : सतत विकास और वैश्विक स्वास्थ्य दृष्टि
प्रधानमंत्री मोदी और किंग चार्ल्स तृतीय के बीच चर्चा का केंद्रबिंदु था — आयुर्वेद, योग, सतत जीवनशैली और जलवायु परिवर्तन। यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण है कि एक ऐसे समय में जब विश्व जलवायु संकट, जीवनशैली रोगों और पर्यावरणीय असंतुलन से जूझ रहा है, दो विश्वनेताओं का ध्यान इन पहलुओं पर केंद्रित है।
प्रधानमंत्री मोदी ने भारत में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में हुई प्रगति, जैसे सोलर मिशन, ग्रीन हाइड्रोजन योजना और इंटरनेशनल सोलर अलायंस की जानकारी साझा की, तो वहीं किंग चार्ल्स ने आयुर्वेद और प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के वैश्विक विस्तार में रुचि दिखाई।
यह एक संकेत है कि भारत केवल तकनीकी या आर्थिक महाशक्ति बनने की दिशा में नहीं बढ़ रहा, बल्कि वह “सॉफ्ट पावर” के क्षेत्र में भी वैश्विक नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभा रहा है।
भारत-ब्रिटेन संबंध : परंपरा और व्यापार की संतुलित धुरी
इस मुलाकात में भारत-यूके व्यापक आर्थिक और व्यापार समझौते (FTA) को लेकर भी चर्चा हुई, जिसकी पृष्ठभूमि में दोनों देशों के बीच £36 अरब से अधिक के द्विपक्षीय व्यापार का आंकड़ा है। ब्रिटेन ब्रेक्ज़िट के बाद वैश्विक साझेदारियों के नए क्षितिज तलाश रहा है, और भारत जैसा तेजी से उभरता बाज़ार और रणनीतिक शक्ति उसके लिए एक स्वाभाविक विकल्प बनता जा रहा है।
FTA पर हस्ताक्षर होने की स्थिति में भारतीय फार्मा, टेक, सर्विस सेक्टर और SME क्षेत्र को बड़ी राहत मिलेगी, जबकि ब्रिटेन की फिनटेक, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ऑटोमोबाइल कंपनियों के लिए भारत में निवेश का मार्ग प्रशस्त होगा।
राष्ट्रमंडल और ‘एक पेड़ माँ के नाम’ : भावनात्मक और वैश्विक जुड़ाव
इस मुलाकात का एक विशेष आयाम था प्रधानमंत्री मोदी की पर्यावरणीय पहल ‘एक पेड़ माँ के नाम’ की चर्चा। किंग चार्ल्स को यह विचार इतना प्रेरणादायी लगा कि उन्होंने सैंड्रिंघम एस्टेट में शरद ऋतु के दौरान उस पौधे को लगाने का वचन दिया, जो उन्हें प्रधानमंत्री मोदी ने भेंटस्वरूप दिया था।
यह पहल केवल एक पर्यावरणीय अभियान नहीं, बल्कि “पर्यावरण और मातृत्व” जैसे दो पवित्र भावों का संगम है, जो विश्वभर के नागरिकों को भावनात्मक और नैतिक रूप से जोड़ता है।
राष्ट्रमंडल को लेकर भी चर्चा इस बात की पुष्टि करती है कि भारत अब केवल एक सदस्य राष्ट्र नहीं, बल्कि इस संगठन में सकारात्मक नेतृत्व और दृष्टिकोण देने वाला देश बन चुका है।
राजकीय निमंत्रण : रिश्तों में औपचारिकता से आत्मीयता की ओर
प्रधानमंत्री मोदी ने किंग चार्ल्स को भारत आने का राजकीय निमंत्रण देकर इस रिश्ते को एक भावनात्मक ऊँचाई पर पहुँचा दिया है। यह निमंत्रण केवल कूटनीतिक शिष्टाचार नहीं, बल्कि दोनों देशों की साझा ऐतिहासिक विरासत, लोकतांत्रिक मूल्यों और भविष्य की साझेदारी में विश्वास का प्रतीक है।
अगर किंग चार्ल्स भारत की यात्रा पर आते हैं, तो यह पहली बार होगा जब वे अपने नए पद की शपथ के बाद भारत की धरती पर कदम रखेंगे। यह यात्रा भारत-ब्रिटेन संबंधों को एक ऐतिहासिक नई ऊँचाई दे सकती है।
निष्कर्ष : संवाद के क्षण, भविष्य की बुनियाद
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और किंग चार्ल्स तृतीय की यह मुलाकात केवल राजनीतिक घटनाक्रम नहीं, बल्कि सदियों पुराने एक जटिल, लेकिन परिपक्व रिश्ते का एक नया अध्याय है।
भारत आज उस मोड़ पर खड़ा है जहाँ वह इतिहास के बोझ से नहीं, बल्कि वर्तमान की चेतना और भविष्य की आकांक्षाओं से अपनी कूटनीति को गढ़ रहा है।
यह मुलाकात एक आश्वासन है कि भारत न केवल विश्व मंच पर एक वैचारिक शक्ति, बल्कि एक उत्तरदायी वैश्विक भागीदार के रूप में उभर रहा है — जो प्रकृति, परंपरा, प्रगति और परिपक्वता को समान भाव से साध सकता है।