दुर्ग (छत्तीसगढ़), (वेब वार्ता)। छत्तीसगढ़ के दुर्ग रेलवे स्टेशन पर दो ईसाई ननों – सिस्टर वंदना और सिस्टर प्रीति – को पुलिस द्वारा हिरासत में लिए जाने का मामला अब राजनीतिक तूल पकड़ता जा रहा है। यह घटना धार्मिक पहचान, बिना ठोस आधार के पूछताछ, और अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों पर सवाल खड़े कर रही है।
क्या है पूरा मामला?
25 जुलाई को जब सिस्टर वंदना और सिस्टर प्रीति ट्रेन से दुर्ग रेलवे स्टेशन पर उतरीं, तो स्थानीय पुलिस ने उन्हें धार्मिक रूपांतरण और मानव तस्करी की झूठी आशंकाओं के आधार पर रोककर हिरासत में ले लिया। कुछ घंटों की पूछताछ के बाद उन्हें बिना किसी केस के छोड़ दिया गया। इस कार्रवाई को लेकर ईसाई समुदाय में रोष है।
राजनीतिक प्रतिक्रिया: प्रियंका गांधी ने किया तीखा हमला
इस घटना पर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा:
“मैं 25 जुलाई को छत्तीसगढ़ के दुर्ग रेलवे स्टेशन पर हुई इस चौंकाने वाली घटना की कड़ी निंदा करती हूं। सिस्टर वंदना और सिस्टर प्रीति सहित अन्य लोगों को कानूनी आधार के बिना हिरासत में लिया गया। धर्मांतरण और मानव तस्करी जैसे झूठे आरोप लगाना अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर गंभीर हमला है।”
“यह कोई अकेली घटना नहीं है — भाजपा शासन में अल्पसंख्यकों को व्यवस्थित रूप से परेशान और बदनाम किया जा रहा है।”
“भीड़ न्याय और सांप्रदायिक हिंसा हमारे लोकतंत्र में स्वीकार्य नहीं हो सकती। कानून का राज सर्वोपरि होना चाहिए।”
प्रियंका गांधी के इस बयान ने भाजपा शासन पर सीधा निशाना साधा है और इस मामले को एक राष्ट्रीय बहस का विषय बना दिया है।
विवाद और प्रतिक्रियाएं
इस घटना पर ईसाई समुदाय और मानवाधिकार संगठनों ने नाराज़गी जताई है। उनका कहना है कि सिर्फ परिधान और पहचान के आधार पर इस तरह से हिरासत में लेना संविधान में प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है।
छत्तीसगढ़ ईसाई मंच के प्रवक्ता ने कहा:
“यह न केवल धार्मिक भेदभाव है, बल्कि भारत के संविधान की आत्मा के खिलाफ है। हम इसकी कड़ी निंदा करते हैं।”
पुलिस की सफाई
पुलिस ने अपनी कार्रवाई को “सुरक्षा और गुप्त सूचना के आधार पर सामान्य पूछताछ” बताया है। दुर्ग जीआरपी थाना प्रभारी ने कहा कि:
“हमें एक इनपुट मिला था, उसी के आधार पर पूछताछ की गई थी। पूछताछ में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं मिला, इसलिए उन्हें जाने दिया गया।”
धार्मिक प्रोफाइलिंग का आरोप
छत्तीसगढ़ ईसाई मंच सहित कई संगठनों ने इसे धार्मिक भेदभाव और प्रोफाइलिंग करार दिया है। उनका कहना है कि केवल वेशभूषा और धर्म के आधार पर किसी को हिरासत में लेना भारत के संविधान के खिलाफ है। सवाल उठाया गया है कि क्या केवल ईसाई वेशभूषा में यात्रा करने पर किसी को हिरासत में लिया जा सकता है? क्या अन्य धर्मों के लोगों के साथ भी ऐसा व्यवहार होता है?