नई दिल्ली, 05 अक्टूबर (वेब वार्ता)। भारतीय क्रिकेटर शिखर धवन (Shikhar Dhawan) को पत्नी आयशा मुखर्जी (Ayesha Mukherjee) से तलाक के लिए मंजूरी मिल गई है। पारिवारिक अदालत ने बुधवार को क्रिकेटर शिखर धवन और उनकी पत्नी से तलाक की मंजूरी दी है। अदालत ने माना कि पत्नी ने उन्हें यानी शिखर धवन को मानसिक क्रूरता का शिकार बनाया है। पटियाला हाउस कोर्ट (Patiala House Court) के न्यायाधीश हरीश कुमार ने तलाक याचिका में धवन द्वारा पत्नी के खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों को इस आधार पर स्वीकार किया है।
शिखर धवन को मिले ये अधिकार
अदालत ने कहा कि क्रिकेटर की पत्नी ने या तो उक्त आरोपों का विरोध नहीं किया या खुद का बचाव करने में विफल रही हैं। अदालत ने माना कि पत्नी ने धवन को अपने इकलौते बेटे से वर्षों तक अलग रहने के लिए मजबूर कर मानसिक पीड़ा दी। अदालत ने मैरिड कपल के बेटे की स्थायी कस्टडी पर कोई भी आदेश पारित करने से इनकार करते हुए धवन को भारत और ऑस्ट्रेलिया में उचित समय के लिए अपने बेटे से मिलने और उसके साथ वीडियो कॉल पर बातचीत करने का अधिकार दिया है। अदालत ने आयशा को एजुकेशनल कैलेंडर के दौरान स्कूल की छुट्टियों की कम से कम आधे समय के लिए धवन और उसके परिवार के सदस्यों के साथ रातभर रहने सहित मुलाकात के उद्देश्य से बच्चे को भारत लाने का आदेश दिया है।
शिखर धवन के पक्ष में अदालत ने ये कहा
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता एक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर हैं और देश का गौरव हैं। याचिकाकर्ता के भारत सरकार से संपर्क करने के अधीन अनुरोध है कि नाबालिग बेटे की मुलाकात के मुद्दे को ऑस्ट्रेलिया में अपने समकक्ष के साथ उठाया जाए, ताकि उसकी मदद की जा सके।
वादे से मुकरीं आयशा
धवन की याचिका के मुताबिक, पत्नी ने शुरू में कहा था कि वह उनके साथ भारत में रहेंगी। हालांकि, वह अपने पहले पति के प्रति प्रतिबद्धता के कारण ऐसा करने में विफल रहीं जिससे उनकी दो बेटियां हैं। उनकी पत्नी ने अपने पूर्व पति से ऑस्ट्रेलिया नहीं छोड़ने का वादा किया था, जहां वह वर्तमान में अपनी दो बेटियों और धवन के एक बेटे के साथ रहती हैं।
बिना किसी गलती सालों तक पीड़ा से गुजरे धवन
बिना किसी गलती के धवन सालों तक अपने ही बेटे से अलग रहने की भारी पीड़ा से गुजर रहे थे। हालांकि पत्नी ने आरोप से इनकार किय। आयशा ने कहा कि वह वास्तव में उनके साथ भारत में रहना चाहती थीं, हालांकि अपनी पिछली शादी से अपनी बेटियों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के कारण उन्हें ऑस्ट्रेलिया में रहना पड़ा, वह भारत में रहने के लिए नहीं आ सकीं और वो उसकी प्रतिबद्धता से अच्छी तरह वाकिफ थे, फिर भी उन्होंने दावा लड़ने का विकल्प नहीं चुना। न्यायाधीश ने कहा कि धवन की निर्विवाद गवाही पर विश्वास करना होगा।