आईआईटी गुवाहाटी ने बांस से विकसित की ‘ऑटोमोटिव सामग्री’
पर्यावरणीय चुनौतियों का प्राकृतिक समाधान
नई दिल्ली, (वेब वार्ता)। आज जब प्लास्टिक प्रदूषण वैश्विक संकट बन चुका है, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने पूर्वोत्तर भारत की स्थानीय संपदा – बांस – से एक ऐसा अनूठा समाधान विकसित किया है जो पर्यावरण संरक्षण और औद्योगिक विकास के बीच सामंजस्य स्थापित करता है। प्रोफेसर पूनम कुमारी के नेतृत्व में यह अनुसंधान ‘बांबूसा टुल्डा’ नामक बांस की प्रजाति और जैविक रूप से विघटित होने वाले पॉलीमर के संयोजन से एक उच्च-प्रदर्शन कंपोजिट सामग्री बनाने में सफल रहा है। यह सामग्री न केवल ऑटोमोटिव इंडस्ट्री में प्लास्टिक का विकल्प बनेगी, बल्कि रक्षा एवं निर्माण क्षेत्र में भी क्रांति ला सकती है 137।
वैज्ञानिक अभिनवता: प्रक्रिया और प्रदर्शन
इस अनुसंधान की खासियत इसकी बहु-चरणीय वैज्ञानिक पद्धति में निहित है:
फाइबर इंजीनियरिंग: बांस के रेशों को क्षारीय उपचार (alkali treatment) देकर उनकी पॉलीमर के साथ अनुकूलता बढ़ाई गई, जिससे सामग्री की टिकाऊपन और यांत्रिक शक्ति में उल्लेखनीय सुधार हुआ 39।
चतुर्मुखी संयोजन: चार अलग-अलग कंपोजिट फॉर्मूलेशन तैयार किए गए, जिनमें जैव-आधारित (FormuLite) और पेट्रोलियम-आधारित एपॉक्सी का उपयोग हुआ।
विस्तृत मूल्यांकन: प्रत्येक संयोजन का 17 मापदंडों पर परीक्षण किया गया, जिनमें तन्य शक्ति (144.76 MPa), तापीय स्थिरता (ग्लास ट्रांजिशन तापमान 111.72°C), नमी अवशोषण (मात्र 4.49%), और लागत (₹4300 प्रति किलोग्राम) शामिल थे 379।
एमसीडीएम विश्लेषण: बहु-मानदंड निर्णय विधि (Multi-Criteria Decision-Making) के जरिए FormuLite-आधारित संयोजन को सर्वोत्तम पाया गया, जो शक्ति, स्थिरता और लागत का आदर्श संतुलन प्रदर्शित करता है 3।
तालिका: पारंपरिक सामग्रियों की तुलना में बांस कंपोजिट के गुण
पैरामीटर | बांस कंपोजिट | पारंपरिक प्लास्टिक | धातु घटक |
---|---|---|---|
तन्य शक्ति (MPa) | 144.76 | 60-80 | 250-400 |
नमी अवशोषण (%) | 4.49 | 15-20 | नगण्य |
लागत (₹/kg) | 4300 | 100-200 | 60-150 |
नवीकनीयता | हाँ | नहीं | नहीं |
बहुआयामी अनुप्रयोग: ऑटोमोटिव से लेकर रक्षा तक
इस सामग्री का उपयोग केवल वाहनों तक सीमित नहीं है:
ऑटोमोटिव क्षेत्र: डैशबोर्ड, दरवाज़े के पैनल और सीट बैक जैसे घटकों के लिए यह आदर्श है, क्योंकि यह उच्च तापमान सहन करने की क्षमता रखती है और यात्रियों की सुरक्षा एवं आराम को बढ़ाती है 17।
रक्षा अनुप्रयोग: आईआईटी गुवाहाटी के स्टार्टअप ‘एडमेका कंपोजिट्स’ द्वारा विकसित बांस के सैंडविच पैनल 200 किलोग्राम भार सह सकते हैं और बुलेटप्रूफ परीक्षण में भी सफल रहे हैं। ये पैनल सैन्य बंकरों और शरण स्थलों के निर्माण में लकड़ी/धातु की जगह ले सकते हैं 45।
अन्य क्षेत्र: एयरोस्पेस घटक, टिकाऊ निर्माण सामग्री, फर्नीचर और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स में भी इसके उपयोग की संभावना है 39।
स्थिरता और आर्थिक प्रभाव: हरित क्रांति की नींव
इस अभिनव सामग्री के तीन प्रमुख व्यापक प्रभाव हैं:
पर्यावरणीय लाभ: बांस मात्र 4-5 वर्षों में परिपक्व हो जाता है, जबकि सागौन जैसी लकड़ियों को तैयार होने में 30 वर्ष लगते हैं। यह कार्बन अवशोषण में भी अत्यंत कुशल है और प्लास्टिक कचरे को कम करता है 47।
आर्थिक समावेशन: पूर्वोत्तर भारत में बांस की खेती को बढ़ावा देकर यह प्रौद्योगिकी स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत करेगी तथा ‘मेक इन इंडिया’ और ‘हरित प्रौद्योगिकी क्रांति’ के लक्ष्यों को साकार करेगी 39।
वैश्विक लक्ष्य: यह संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) विशेषकर लक्ष्य 7 (सस्ती एवं स्वच्छ ऊर्जा), 8 (विकास और अच्छा रोजगार) और 9 (उद्योग, नवाचार एवं बुनियादी ढांचा) को पूरा करती है 3।
भविष्य की दिशा: उत्पादन से निपटान तक
शोध टीम अब संपूर्ण जीवनचक्र मूल्यांकन (Life Cycle Assessment) कर रही है ताकि उत्पादन से लेकर निपटान तक पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जा सके। साथ ही, कंप्रेशन मॉडलिंग और रेजिन ट्रांसफर जैसी औद्योगिक तकनीकों के माध्यम से उत्पादन को व्यावसायिक पैमाने पर ले जाने की योजना है 37।
निष्कर्ष: प्रकृति और प्रौद्योगिकी का सामंजस्य
आईआईटी गुवाहाटी का यह अनुसंधान साबित करता है कि प्रकृति-आधारित समाधान ही भविष्य की प्रौद्योगिकी की आधारशिला हैं। बांस जैसी स्थानीय संसाधनों का उपयोग करके विकसित यह सामग्री न केवल भारत को हरित उद्योगों में अग्रणी बनाएगी, बल्कि दुनिया को यह भी संदेश देगी कि टिकाऊ विकास और आर्थिक प्रगति एक साथ संभव है। जैसा कि प्रो. कुमारी कहती हैं: “यह उत्पाद लकड़ी, लोहा और प्लास्टिक का स्थान लेगा, समान लागत पर, लेकिन बेहतर भविष्य के लिए” 13।
सांख्यिकीय सत्य: बांस प्रति दिन 91 सेमी तक बढ़ सकता है – यह दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली वनस्पति है!
वैश्विक संदर्भ: विश्व बांस बाजार 2030 तक $98.3 बिलियन तक पहुँचने का अनुमान है – भारत इस क्रांति का नेतृत्व कर सकता है।
यह नवाचार केवल एक सामग्री का आविष्कार नहीं है; यह भारत की वैज्ञानिक सोच, पर्यावरणीय प्रतिबद्धता और आत्मनिर्भरता की जीवंत अभिव्यक्ति है।