वेबवार्ता: बिलकिस बानो केस (Bilkis Bano Case) में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार कहा कि ऐसा क्या हुआ कि रातोंरात दोषियों को छोड़ने का फैसला हो गया। सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की रिहाई के खिलाफ दाखिल याचिका पर दोषियों को प्रतिवादी बनाने को कहा और राज्य और अन्य को नोटिस जारी किया है। मामले में अगली सुनवाई दो हफ्ते बाद की जाएगी।
बिलकिस बानो केस (Bilkis Bano Case) में दोषियों की रिहाई के खिलाफ दायर याचिका पर गुरुवार सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सुनवाई हुई। बिलकस बानो के गुनहगारों को रिहा करने के गुजरात सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट राजी हो गया था। इस याचिका को सीपीएम नेता सुभाषिनी अली, लेखिका रेवती लाल और मानवाधिकार कार्यकर्ता रूप रेखा वर्मा ने दाखिल किया था।
याचिकाकर्ताओं का कहना है इस पूरे मामले की जांच सीबीआई ने की थी इसलिए गुजरात सरकार दोषियों को सजा में छूट का एकतरफा फैसला नहीं कर सकती। क्रिमिनल प्रोसीजर कोड के सेक्शन 435 के तहत राज्य सरकार के लिए इसके लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय से सलाह लेना अनिवार्य है।
रिहाई नीति पर दोबारा विचार करने की जरूरत: सिब्बल
कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील कपिल सिब्बल को पहले अपनी बात रखने को कहा। इसपर सिब्बल ने 2002 में बिलकिस और उनके परिवार के साथ हुई घटना का ब्यौरा दिया। उन्होंने कहा कि इस मामले में 14 लोग मारे गए, एक गर्भवती महिला का रेप हुआ। उन्होंने रिहाई नीति पर दोबारा विचार करने की मांग की है।
2008 में मिली थी उम्रकैद की सजा
मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत ने 21 जनवरी, 2008 को इन 11 लोगों को रेप और बिलकिस बानो के परिवार के सात सदस्यों की हत्या के आरोप में उम्र कैद की सजा सुनाई थी। उनकी दोषसिद्धि को बंबई उच्च न्यायालय ने बरकरार रखा था। बिलकिस बानो के साथ जब सामूहिक बलात्कार किया गया था, उस वक्त वह 21 वर्ष की थी और उसे पांच महीने का गर्भ था। मारे गए लोगों में उनकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी।
15 अगस्त को रिहा हुए थे दोषी
इस साल जून में केंद्र सरकार ने आजादी का अमृत महोत्सव के जश्न के मद्देनजर कैदियों की रिहाई से संबंधित विशेष दिशा निर्देश राज्यों को जारी किए थे। इसमें बलात्कार के दोषियों के लिए समय पूर्व रिहाई की व्यवस्था नहीं थी।बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले के दोषी सभी 11 लोगों को भाजपा नीत गुजरात सरकार ने माफी नीति के तहत सजा माफी दे दी थी, जिसके बाद 15 अगस्त को उन्हें गोधरा उप-कारागार से रिहा कर दिया गया।
न्याय से मेरा भरोसा उठ गया: बानो
सरकार के इस कदम की आलोचना करते हुए बिलकिस ने कहा था कि इतना बड़ा और अन्यायपूर्ण फैसला लेने से पहले किसी ने उनकी सुरक्षा के बारे में नहीं पूछा और ना ही उनके भले के बारे में सोचा। उन्होंने गुजरात सरकार से इस बदलने और उन्हें बिना डर के शांति से जीने का अधिकार देने को कहा था। बानो ने कहा था, ‘दोषियों की रिहाई से मेरी शांति भंग हो गई है और न्याय पर से मेरा भरोसा उठ गया है।’