Monday, October 20, 2025
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हमारे देश में आर्बिट्रल प्रक्रिया सामान्य न्यायिक तंत्र पर अतिरिक्त बोझ बन गई है : उपराष्ट्रपति

नई दिल्ली, (वेब वार्ता)। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को कहा कि हमारे देश में आर्बिट्रल प्रक्रिया सामान्य न्यायिक तंत्र पर एक अतिरिक्त बोझ बन गई है। धनखड़ नई दिल्ली के भारत मंडपम में इंडिया इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर (आईआईएसी) द्वारा आयोजित संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे।

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि आर्बिट्रेटर भी उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जितनी कि बार से जुड़े सदस्य। आश्चर्यजनक रूप से और मैं यह बहुत ही संयमित तरीके से कह रहा हूं कि आर्बिट्रल प्रक्रिया निर्धारण से जुड़े एक वर्ग के एक हिस्से पर पूरी तरह से सख्त नियंत्रण है। यह सख्त नियंत्रण न्यायिक शक्तियों से उत्पन्न होता है। यदि हम इसे वस्तुनिष्ठ रूप से देखें तो यह अत्यधिक दर्दनाक है। उन्होंने कहा कि इस देश के पास हर क्षेत्र में समृद्ध मानव संसाधन हैं। महासागर विज्ञान, समुद्रविज्ञान, विमानन, बुनियादी ढांचा और क्या नहीं। और जो विवाद हैं, वे अनुभव से संबंधित होते हैं, जो क्षेत्रीय होते हैं। दुर्भाग्यवश, हमने इस देश में आर्बिट्रेशन को केवल एक संकीर्ण दृष्टिकोण से देखा है, जैसे कि यह न्यायिक निर्णय है। यह न्यायिक निर्णय से कहीं अधिक है। यह पारंपरिक निर्णय नहीं है जैसा कि वैश्विक स्तर पर ऐतिहासिक रूप से मूल्यांकन किया गया है।

आर्बिट्रेशन में क्षेत्र विशेषज्ञों की भागीदारी की आवश्यकता पर जोर देते हुए धनखड़ ने कहा कि देश के एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने यह टिप्पणी की थी कि प्रक्रिया अब पुराने दोस्तों का क्लब बन गई है। वह सेवानिवृत्त न्यायधीशों की आर्बिट्रल प्रक्रिया में भागीदारी को लेकर कह रहे थे। उन्होंने कहा कि वह स्पष्ट करना चाहते हैं कि इस देश के सेवानिवृत्त न्यायधीश आर्बिट्रल प्रक्रिया के लिए ऐसेट हैं। वे हमें विश्वसनीयता प्रदान करते हैं।

आर्टिकल 136 के उपयोग और इसके आर्बिट्रल प्रक्रिया पर प्रभाव की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए धनखड़ ने कहा कि देश के अटॉर्नी जनरल वास्तव में इस पर विचार कर सकते हैं और बड़ा बदलाव ला सकते हैं। दुनिया में ऐसा कौन सा देश है, जहां उच्चतम न्यायालय द्वारा स्वत: संज्ञान लिया जाता है? मुझे यकीन है, मैं किसी और देश में नहीं देख सकता। आर्बिट्रेशन प्रणाली के विकास को लेकर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए धनखड़ ने कहा कि अब वह समय आ गया है, जब भारत हर क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर उभर रहा है।

मतभेदों के समाधान की आवश्यकता पर जोर देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि आइए हम यह कदम दर कदम करें, क्योंकि अब समय आ गया है, वैकल्पिक समाधान से लेकर आपसी समाधान की ओर बढ़ें। यह पहले विकल्प होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हर आर्थिक गतिविधि में भिन्नताएं, विवाद उत्पन्न होते हैं, जिन्हें त्वरित समाधान की आवश्यकता होती है। कभी-कभी विवाद और भिन्नताएं धारणाओं में अंतर, अपर्याप्त समर्थन या असमर्थता के कारण उत्पन्न होती हैं। इस स्थिति में यह महत्वपूर्ण है कि हम न्यायिक निर्णय पर ध्यान केंद्रित करें।

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