नई दिल्ली, (वेब वार्ता)। दिल्ली विधानसभा में एक बार फिर राजनीतिक गरमाहट देखने को मिली है, लेकिन इस बार मुद्दा न तो कोई बिल था और न ही कोई नीतिगत मामला, बल्कि बहस का केंद्र बना ‘फांसी घर’ — वह स्थान जिसके अस्तित्व को लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष आमने-सामने आ गए हैं।
दिल्ली विधानसभा मानसून सत्र के दूसरे दिन, बीजेपी विधायक अभय वर्मा ने सवाल उठाया कि क्या वाकई विधानसभा परिसर में कभी कोई फांसी घर रहा है या फिर आप सरकार ने जनता को गुमराह करने के लिए इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है?
❝विधानसभा परिसर में कभी फांसी घर था ही नहीं❞ – अभय वर्मा
भाजपा विधायक अभय वर्मा ने सदन में जोरदार दावे के साथ कहा कि राष्ट्रीय अभिलेखागार से प्राप्त नक्शों और ऐतिहासिक रिकॉर्ड के अनुसार दिल्ली विधानसभा में फांसी घर कभी था ही नहीं। उन्होंने आरोप लगाया कि जिस स्थान को वर्तमान में ‘फांसी घर’ बताया जा रहा है, वहां कभी लिफ्ट हुआ करती थी।
उन्होंने आम आदमी पार्टी की पूर्ववर्ती सरकार और विशेष रूप से तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष रामनिवास गोयल पर आरोप लगाते हुए कहा कि जनता को आकर्षित करने और इतिहास के नाम पर भ्रम फैलाने के लिए इस तरह की भ्रामक संरचना गढ़ी गई।
आम आदमी पार्टी का विरोध, स्पीकर की सख्त टिप्पणी
आप विधायकों ने भाजपा के इन आरोपों पर कड़ी आपत्ति जताई और सदन में शोर-शराबा हुआ। इस पर विधानसभा अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता ने स्पष्ट किया कि विपक्ष को अपनी बात रखने का पूरा अवसर मिलेगा, लेकिन इतिहास से छेड़छाड़ स्वीकार्य नहीं होगी। उन्होंने आप विधायकों को निर्देश दिया कि वे बुधवार को ‘फांसी घर’ के समर्थन में ठोस प्रमाण लेकर आएं।
इतिहासकारों ने भी ‘फांसी घर’ को नकारा
विधानसभा अध्यक्ष ने आगे बताया कि बीते दिनों कुछ प्रमुख इतिहासकारों की एक विशेष बैठक बुलाई गई थी, जिसमें स्पष्ट रूप से यह बात सामने आई कि दिल्ली विधानसभा परिसर में ऐसा कोई औपनिवेशिक ‘हैंगिंग हाउस’ कभी मौजूद नहीं था।
2016 में सुरंग और ‘फांसी घर’ का दावा
गौरतलब है कि वर्ष 2016 में विधानसभा परिसर में एक पुरानी खोखली दीवार को तोड़ने पर एक सुरंग मिलने का दावा किया गया था। उस समय इसे ब्रिटिश कालीन सुरंग बताया गया था और अनुमान लगाया गया कि वहां कोई फांसी घर भी रहा होगा।
तत्कालीन आप सरकार ने इसे लेकर योजना बनाई थी कि उस सुरंग और फांसी घर को सार्वजनिक दर्शनों के लिए खोला जाएगा और दिल्ली की औपनिवेशिक विरासत को प्रदर्शित किया जाएगा।
विधानसभा भवन का इतिहास क्या कहता है?
दिल्ली का विधानभवन 1911 में निर्मित हुआ था और 1912 में कोलकाता से दिल्ली राजधानी स्थानांतरित किए जाने के बाद इसे केन्द्रीय विधानभवन के रूप में प्रयोग किया गया। स्वतंत्रता से पहले यहां ब्रिटिश वायसरॉय और अधिकारीगण बैठते थे।
लेकिन किसी भी ऐतिहासिक अभिलेख में विधानसभा परिसर में फांसी घर होने का कोई प्रमाण नहीं है।
अब क्या?
स्पीकर विजेंद्र गुप्ता ने कहा कि 6 अगस्त को मानसून सत्र के तीसरे दिन इस विषय पर विस्तृत चर्चा की जाएगी और सत्तापक्ष को ठोस प्रमाण प्रस्तुत करने होंगे।
🗞️ निष्कर्ष:
दिल्ली विधानसभा में ‘फांसी घर’ का मुद्दा अब सिर्फ एक ऐतिहासिक विवाद नहीं, बल्कि एक राजनीतिक टकराव का रूप ले चुका है। भाजपा इसे जनता को गुमराह करने वाला कदम बता रही है, वहीं आम आदमी पार्टी के पास अब यह साबित करने की चुनौती है कि उन्होंने कोई ऐतिहासिक जोड़-तोड़ नहीं की।