Thursday, July 24, 2025
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कार्बन डाइऑक्साइड से बनेगी सफेद चीनी! चीन में विकसित हुई क्रांतिकारी तकनीक

बीजिंग, (वेब वार्ता)। जलवायु परिवर्तन और वैश्विक खाद्य संकट की चुनौती से जूझती दुनिया के लिए चीन से एक क्रांतिकारी समाधान की खबर आई है। चीन की तियानजिन इंडस्ट्रियल बायोटेक्नोलॉजी इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है, जो कार्बन डाइऑक्साइड को मेथनॉल के माध्यम से सुक्रोज (सफेद चीनी) में बदल सकती है—वह भी बिना गन्ना या चुकंदर की पारंपरिक खेती के।

आईवीबीटी तकनीक: जैव-रूपांतरण का भविष्य

इस प्रणाली को इन-वित्रो बायोट्रांसफॉर्मेशन (IVBT) नाम दिया गया है, जिसमें विशेष एंजाइमों की सहायता से मेथनॉल को सीधे सुक्रोज में बदला जा सकता है। यह प्रक्रिया न केवल सफेद चीनी, बल्कि फ्रुक्टोज, स्टार्च और अन्य कार्बोहाइड्रेट उत्पादन के लिए भी अनुकूलित की जा सकती है। इससे पारंपरिक कृषि पर पड़ने वाले जल, भूमि और ऊर्जा दबाव में उल्लेखनीय कमी आएगी।

खपत और आयात पर लगेगी लगाम

गौरतलब है कि चीन हर साल लगभग 1.5 करोड़ टन चीनी की खपत करता है, जिसमें से 50 लाख टन चीनी का आयात करना पड़ता है। ऐसे में इस तकनीक से स्वदेशी उत्पादन में आत्मनिर्भरता आने की उम्मीद है। साथ ही यह कृषि-आधारित प्रदूषण और जलवायु प्रभावों को भी कम कर सकती है।

2021 में हुई थी नींव तैयार

वैज्ञानिकों ने बताया कि इस उपलब्धि की नींव 2021 में ही रखी गई थी, जब उन्होंने एक ऐसी विधि विकसित की थी जो कम तापमान पर मेथनॉल उत्पादन को अधिक कुशल बनाती है। अब उसी तकनीक के आधार पर, कम कार्बन अणुओं को उच्च-कार्बन शर्करा में रूपांतरित करने में 86% तक दक्षता हासिल की गई है—जो कि जैव-तकनीकी क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है।

अभी और शोध की दरकार

हालांकि, वैज्ञानिकों ने यह भी स्पष्ट किया है कि इस तकनीक को व्यवसायिक स्तर पर उतारने से पहले गहन शोध और परीक्षण आवश्यक होंगे। खासतौर से एंजाइम की विविधता, स्थायित्व और उत्पादन प्लेटफॉर्म की मजबूती पर ध्यान देना होगा।

भविष्य की क्रांति: कार्बन-नकारात्मक खाद्य उत्पादन

विशेषज्ञों का मानना है कि यह खोज आने वाले वर्षों में पादप-स्वतंत्र (plant-independent) खाद्य उत्पादन और कार्बन-ऋणात्मक (carbon-negative) जैव निर्माण के क्षेत्र में नई क्रांति का आधार बन सकती है। यह तकनीक न सिर्फ खाद्य सुरक्षा को सशक्त बनाएगी, बल्कि कार्बन न्यूट्रैलिटी जैसे वैश्विक लक्ष्यों की प्राप्ति में भी अहम भूमिका निभा सकती है।

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