सिडनी, (वेब वार्ता)। ऑस्ट्रेलिया की विश्व प्रसिद्ध ग्रेट बैरियर रीफ जलवायु परिवर्तन की भीषण मार झेल रही है। ऑस्ट्रेलियाई समुद्री विज्ञान संस्थान (AIMS) की नई वार्षिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, इस विशाल प्रवाल भित्ति प्रणाली में कठोर प्रवाल का आवरण तेजी से घट रहा है। रिपोर्ट दर्शाती है कि समुद्री तापमान में वृद्धि, अम्लीकरण और जलवायु परिवर्तन के अन्य प्रभावों ने प्रवाल समुदायों को अस्थिर और कमजोर बना दिया है।
📉 रिकॉर्ड वृद्धि के बाद अब गिरावट
AIMS द्वारा जारी 2025 दीर्घकालिक निगरानी कार्यक्रम (LTMP) में पाया गया है कि हाल के वर्षों में जहां प्रवालों की संख्या में रिकॉर्ड वृद्धि देखी गई थी, वहीं अब वह औसत या उससे भी नीचे के स्तर पर लौट आई है। इस अध्ययन के लिए अगस्त 2024 से मई 2025 तक 124 भित्तियों का सर्वेक्षण किया गया।
इनमें से अधिकांश भित्तियों में अब सिर्फ 10-30 प्रतिशत कठोर प्रवाल आवरण रह गया है। कुछ भित्तियों में यह 30-50 प्रतिशत तक है, लेकिन चिंताजनक बात यह है कि दो भित्तियों में यह घटकर 10 प्रतिशत से भी कम हो गया है।
🧪 वैज्ञानिकों की चेतावनी
AIMS के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. माइक एम्सली ने कहा कि प्रवाल की स्थिति अब अस्थिर होती जा रही है। “पिछले 15 वर्षों में प्रवालों के आवरण में तीव्र उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं, जो दर्शाते हैं कि यह पारिस्थितिकीय तंत्र अब गंभीर दबाव में है।”
एक्रोपोरा प्रजाति के प्रवाल — जो तेजी से बढ़ते हैं लेकिन संवेदनशील होते हैं — सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं। ये गर्मी, तूफान और क्राउन-ऑफ-थॉर्न्स स्टारफिश के हमलों के प्रति अत्यंत संवेदनशील हैं।
📊 क्षेत्रवार स्थिति
उत्तरी भाग: प्रवाल आवरण में लगभग 25% की गिरावट
मध्य भाग: लगभग 14% की कमी
दक्षिणी भाग: लगभग 33% तक गिरावट, जो अब तक की सबसे गंभीर ब्लीचिंग के रूप में सामने आई है
🌡️ जलवायु परिवर्तन है प्रमुख वजह
AIMS की सीईओ सेलीना स्टीड के अनुसार, “यह रिपोर्ट स्पष्ट संकेत देती है कि महासागर के तापमान में वृद्धि और लगातार हो रही जलवायु घटनाएं, जैसे समुद्री हीटवेव और अम्लीकरण, ग्रेट बैरियर रीफ को अस्थिरता की स्थिति में धकेल रही हैं।”
🧭 आगे की राह
वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यदि वैश्विक स्तर पर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित नहीं किया गया और महासागर के तापमान को सीमित नहीं किया गया, तो प्रवाल भित्तियों का संरक्षण लगभग असंभव हो जाएगा। यह केवल पर्यावरणीय संकट नहीं है, बल्कि उन मछुआरों, पर्यटकों और स्थानीय समुदायों के लिए भी बड़ा खतरा है जो इन प्रवालों पर निर्भर हैं।