वाशिंगटन/ओटावा, (वेब वार्ता)। फिलिस्तीन को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में कनाडा की मान्यता ने विश्व राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है। यह निर्णय अमेरिका-इजरायल गठजोड़ के लिए एक राजनयिक झटका माना जा रहा है। खासकर तब जब फ्रांस और यूनाइटेड किंगडम ने भी आगामी संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र में फिलिस्तीन को मान्यता देने की घोषणा कर दी है।
कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने इस फैसले को “शांति और दो-राष्ट्र समाधान” के समर्थन में ऐतिहासिक बताया। दूसरी ओर, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि इससे कनाडा के साथ व्यापार समझौते पर असर पड़ेगा।
कनाडा का ऐतिहासिक ऐलान: फिलिस्तीन को मान्यता के साथ शर्तें भी
कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने कहा कि उनका देश फिलिस्तीन को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देने को तैयार है, लेकिन इसके लिए कुछ महत्वपूर्ण शर्तें भी रखी गई हैं:
2026 तक फिलिस्तीनी चुनाव, जिसमें हमास की कोई भूमिका नहीं होगी।
शस्त्र त्याग और पूर्णतः शांतिपूर्ण गतिविधियों की प्रतिबद्धता।
बंधकों की रिहाई और आतंकी गतिविधियों से दूरी।
कार्नी ने कहा कि गाज़ा में मानवीय संकट, वेस्ट बैंक में बस्तियों का विस्तार और इजरायली सरकार की “नाकामी” ने उन्हें यह साहसिक निर्णय लेने पर मजबूर किया।
अमेरिका की तीखी प्रतिक्रिया: ट्रंप का व्यापारिक हमला
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कनाडा के इस कदम पर अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘ट्रुथ सोशल’ पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने लिखा:
“वाह! कनाडा ने अभी घोषणा की है कि वह फिलिस्तीन के स्टेटहुड का समर्थन कर रहा है। इससे उनके साथ व्यापार समझौता करना हमारे लिए बहुत मुश्किल हो जाएगा। ओह कनाडा!!!”
इसके तुरंत बाद ट्रंप ने कनाडा को चेतावनी दी कि अगर समझौता नहीं हुआ तो 35% टैरिफ लगाया जाएगा। यह चेतावनी ऐसे समय आई है जब दोनों देशों के बीच 1 अगस्त की समयसीमा से पहले एक व्यापार समझौता लंबित है।
इजरायल की प्रतिक्रिया: “हमास को इनाम देना”
कनाडा के निर्णय पर इजरायल की ओर से भी कड़ी निंदा आई है। इजरायली विदेश मंत्रालय ने इसे “हमास के लिए पुरस्कार” बताया और कहा कि यह निर्णय गाजा में युद्धविराम और बंधक रिहाई के प्रयासों को नुकसान पहुंचा सकता है।
इजरायली राजदूत इड्डो मोएद ने कनाडा सरकार पर “चरमपंथियों को प्रोत्साहित करने” का आरोप लगाया।
फिलिस्तीनी प्रतिक्रिया: “यह अवसर का संकेत है”
फिलिस्तीनी प्रतिनिधियों ने कनाडा के इस कदम का स्वागत किया। पूर्व फिलिस्तीनी मुख्य प्रतिनिधि मोना अबुअमारा ने कहा:
“कार्नी द्वारा तय की गई शर्तें व्यावहारिक हैं। फिलिस्तीनी लोग राज्य निर्माण की दिशा में यह अवसर चाहते हैं।”
कनाडा की विदेश नीति में बदलाव
यह पहली बार है जब कनाडा ने फिलिस्तीन को मान्यता देने की बात स्पष्ट रूप से कही है। पहले कनाडा की नीति थी कि यह मान्यता तभी दी जाएगी जब इजरायल और फिलिस्तीन के बीच पूर्ण शांति समझौता हो जाए।
लेकिन प्रधानमंत्री कार्नी ने कहा:
“अब वह दृष्टिकोण टिकाऊ नहीं रहा। गाज़ा में भुखमरी, वेस्ट बैंक में अवैध बस्तियों का विस्तार और बढ़ती मानवीय त्रासदी ने यह निर्णय अनिवार्य बना दिया।”
इस निर्णय को कनाडा के 173 पूर्व राजनयिकों का समर्थन भी प्राप्त है, जिन्होंने हाल ही में एक पत्र में इजरायल पर हथियार प्रतिबंध और व्यापारिक पाबंदियों की मांग की थी।
अमेरिका-इजरायल गठजोड़ पर सवाल
अक्टूबर 2023 को हमास द्वारा इजरायल पर किए गए हमले और उसके बाद गाजा में हुई भारी सैन्य कार्रवाई से अमेरिका और इजरायल के गठबंधन की छवि अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रभावित हुई है।
गाजा में 60,000 से अधिक मौतें,
भुखमरी और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी,
और अमेरिकी सहायता में 18 अरब डॉलर की सैन्य मदद,
ने अमेरिका की भूमिका पर मानवाधिकार संगठनों और कई देशों में नाराजगी बढ़ा दी है।
निष्कर्ष: क्या बदल जाएगा पश्चिमी एशिया का राजनैतिक संतुलन?
कनाडा का यह निर्णय केवल एक राजनीतिक घोषणा नहीं, बल्कि मिडिल ईस्ट में बदलते राजनयिक समीकरणों का संकेत है। अगर फ्रांस और ब्रिटेन भी सितंबर में फिलिस्तीन को मान्यता देते हैं, तो यह संभव है कि संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीन को पूर्ण सदस्यता की दिशा में ठोस कदम उठाया जाए।
अमेरिका के दबाव और इजरायल की आपत्ति के बावजूद, यह निर्णय वैश्विक मंच पर फिलिस्तीनी आत्मनिर्णय की आवाज को और मजबूत करता है।