Monday, October 20, 2025
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ऑस्ट्रेलिया सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा में फिलिस्तीन को मान्यता देगा: पीएम एंथनी अल्बनीज

कैनबरा, (वेब वार्ता)। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज ने सोमवार को ऐलान किया कि उनका देश सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के दौरान फिलिस्तीन को आधिकारिक रूप से राष्ट्र का दर्जा देगा। इस कदम के साथ ऑस्ट्रेलिया उन देशों की सूची में शामिल हो जाएगा, जिनमें फ्रांस, ब्रिटेन और कनाडा जैसे प्रमुख राष्ट्र पहले ही ऐसे संकेत दे चुके हैं।

अल्बनीज का यह बयान ऐसे समय आया है जब उनके मंत्रिमंडल के कई सदस्य और देश के विभिन्न हिस्सों से फिलिस्तीन को मान्यता देने की मांग तेज हो गई है। गाजा में हो रही मानवीय त्रासदी और भुखमरी को लेकर ऑस्ट्रेलिया के भीतर व्यापक आलोचना भी हो रही है।

हाल ही में ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की गाजा में व्यापक सैन्य कार्रवाई की योजनाओं की निंदा की थी। सोमवार को मंत्रिमंडल बैठक के बाद मीडिया से बात करते हुए अल्बनीज ने कहा कि यह मान्यता सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा में औपचारिक रूप से घोषित की जाएगी।

नेतन्याहू से बातचीत पर अल्बनीज का बयान
ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री ने खुलासा किया कि उन्होंने नेतन्याहू से सीधी बातचीत में कहा, “हमें सैन्य नहीं, बल्कि राजनीतिक समाधान की आवश्यकता है।” अल्बनीज ने जोर देकर कहा, “मध्य पूर्व में हिंसा के चक्र को तोड़ने और गाजा में पीड़ा व भुखमरी को समाप्त करने के लिए दो-राज्य समाधान ही सबसे अच्छा रास्ता है।”

फिलिस्तीन की मान्यता का महत्व
फिलिस्तीन को पहले से कई देश मान्यता दे चुके हैं और कई देशों में उसके राजनयिक मिशन भी संचालित होते हैं। अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में भी फिलिस्तीन की राष्ट्रीय टीमें हिस्सा लेती हैं। हालांकि, इजरायल के साथ लंबे समय से जारी विवाद के कारण फिलिस्तीन की सीमाएं, राजधानी और सैन्य ढांचा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित नहीं हैं।

पिछले महीने फ्रांस और ब्रिटेन ने भी संकेत दिया था कि वे फिलिस्तीन को मान्यता देंगे, जिसके बाद कनाडा ने भी ऐसा ही ऐलान किया। दूसरी ओर, इजरायल ने इस कदम की आलोचना करते हुए कहा कि यह हमास को “इनाम” देने जैसा है। इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने हाल ही में दावा किया कि ज्यादातर इजरायली लोग फिलिस्तीन की स्थापना के खिलाफ हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि इससे संघर्ष बढ़ेगा और शांति की संभावना कम होगी। इसके बावजूद, इजरायल में युद्ध समाप्ति और युद्धविराम की मांग को लेकर लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं।

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