-हर्षवर्धन पान्डे-
मध्यप्रदेश न केवल अपनी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह भारत का टाइगर स्टेट भी कहा जाता है। बाघों के संरक्षण और संवर्धन के साथ ही मध्यप्रदेश ने अपनी प्राकृतिक संपदा और जैव-विविधता के संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यहाँ के घने जंगल और संरक्षित क्षेत्र बाघों की सबसे बड़ी आबादी का घर हैं, जो इसे देश में वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में स्थापित करता है। मध्यप्रदेश को भी प्रकृति ने न केवल मुक्त हस्त से संवारा है बल्कि नैसर्गिक सौंदर्य और हरियाली से आच्छादितकिया है, वहीं प्रदेश सरकार ने भी वन्य प्राणी संरक्षण एवं प्रबंधन पर विशेष ध्यान देकर इसे वन्य प्राणी समृद्ध प्रदेश बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। पिछले डेढ़ दशक के दौरान श्रेष्ठ और सतत वन्य प्राणी प्रबंधन के प्रयासों से चलते आज मध्यप्रदेश देश और दुनिया में अग्रणी प्रदेश बना है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बाघों की जातियों की घटती संख्या, उनके अस्तित्व और संरक्षण संबंधी चुनौतियों के प्रति जन-जागृति के लिए अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस 29 जुलाई को प्रतिवर्ष मनाया जाता है। विश्व बाघ दिवस 29 जुलाई को मनाए जाने का निर्णय वर्ष 2010 में सेंट पीटर्सबर्ग टाइगर सम्मेलन में किया गया था। इस सम्मेलन में बाघ की आबादी वाले देशों ने वादा किया था कि बहुत जल्द वे बाघों की आबादी दोगुनी कर देंगे। इस लक्ष्य को प्राप्त करने में मध्यप्रदेश ने बहुत तेजी से काम किया और प्रबंधन में निरंतरता दिखाते हुए पूरे देश में बाघों के संरक्षण और संवर्धन में अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति करने में सफलता पाई है। मध्यप्रदेश में वर्ष 2006 से बाघों के संरक्षण के लिए प्रयास शुरू किए गए। इसी के बाद प्रदेश में टाइगर की संख्या लगातार बढ़ती चली गई। वर्ष 2006 में मध्यप्रदेश में कुल 300 टाइगर थे हालाँकि 2010 में टाइगर की संख्या घटकर 257 हो गई। इस साल मध्य प्रदेश से टाइगर स्टेट का दर्जा छिन गया था और कर्नाटक को टाइगर स्टेट का दर्जा मिला। वहीं वर्ष 2014 में मध्यप्रदेश में 308 बाघ हो गए और वर्ष 2018 में यह संख्या बढ़कर 526 हो गई और मध्यप्रदेश ने टाइगर स्टेट का दर्जा हासिल किया और इस वर्ष बाघों की संख्या 526 पहुँच गई। वर्ष 2022 की गणना के अनुसार 785 बाघ हैं, जो देश में सर्वाधिक हैं। बीते आठ वर्षों में मध्यप्रदेश में 477 बाघ बढ़े। इस अवधि में प्रतिवर्ष प्रदेश में बाघों की वृद्धि दर 10 फीसदी से अधिक रही है। अगर यही रफ़्तार रही तो अगली बार की बाघों की गणना में प्रदेश में बाघों की संख्या हजार से अधिक पहुंच सकती है।
मध्यप्रदेश के कुछ बाघ ऐसे हैं जो देश-दुनिया में अपनी विशेष पहचान रखते हैं। मुन्ना, कॉलरवाली, सीता, चार्जर, बामेरा और टी1 यह कुछ ऐसे नाम हैं जो अपनी विशेषताओं के चलते हाल के कुछ वर्षों में अपनी विशेष पहचान बनाने में कामयाब हुए हैं। पर्यटक दूर-दूर से इन्हें देखने आते हैं और अलग तरह का अनुभव लेते हुए खुद को बड़े रोमांचित महसूस करते हैं। बाघ की दहाड़ अब प्रदेश के टाइगर रिजर्व के बाहर भी सुनाई दे रही है। राजधानी भोपाल के शहरी इलाकों में भी बाघों की आवाजाही अब देखी जा सकती है। बाघों को राजधानी भोपाल की आबोहवा इस कदर रास आ रही है आने वाले दिनों में इनकी टेरिटरी तेजी से बढ़ने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। वर्ष 1973 में बाघों को विशेष संरक्षण प्रदान करने के लिए देश में टाइगर रिजर्व की स्थापना की गई थी। प्रदेश का पहला टाइगर रिजर्व 1973 में कान्हा टाइगर बना। इनमें सबसे बड़ा सतपुड़ा टाइगर रिजर्व और सबसे छोटा पेंच टाइगर रिजर्व है। मध्यप्रदेश में अब 9 टाइगर रिजर्व हो गए हैं जिनमें कान्हा टाइगर रिजर्व, पेंच टाइगर रिजर्व, बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व, पन्ना टाइगर रिजर्व, सतपुड़ा टाइगर रिजर्व, संजय-डुबरी टाइगर रिजर्व, रातापानी टाइगर रिजर्व, वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व और माधव टाइगर रिजर्व शामिल हैं। 2023 में मध्यप्रदेश के कान्हा नेशनल पार्क और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को मैनेजमेंट इफेक्टिवनेस इवैल्यूशन में देश के टॉप 5 टाइगर रिजर्व में चुना गया। इसके अलावा मध्यप्रदेश में 24 अभयारण्य हैं और 11 नेशनल पार्क हैं। अभयारण्य के रूप में पचमढ़ी, पनपथा, बोरी, पेंच-मोगली, गंगऊ, संजय- दुबरी, बगदरा, सैलाना, गांधी सागर, करेरा, नौरादेही, राष्ट्रीय चम्बल, केन, नरसिहगढ़, रातापानी, सिंघोरी, सिवनी, सरदारपुर, रालामण्डल, केन घड़ियाल, सोन चिड़िया अभयारण्य घाटीगांव, सोन घड़ियाल अभयारण्य, ओरछा और वीरांगना दुर्गावती अभयारण्य अपनी विशिष्ट पहचान के लिए देश में जाने जाते हैं जो विभिन्न प्रकार के वन्यजीवों और वनस्पतियों के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण हैं। यह सुखद है कि अब प्रदेश के भीतर बाघों की संख्या टाइगर रिजर्व की सीमाओं के बाहर भी तेजी से बढ़ रही है और बाघों की हलचल शहरी इलाकोंकी इंसानी आबादी के बीच भी महसूस की जा रही है। सतना से लेकर सीधी, शहडोल से अमरकंटक, डिंडौरी के लेकर मंडला तक में भी बाघों का कुनबा नई चहलकदमी कर रहा है। तीन बार टाइगर स्टेट का दर्जा हासिल करने के साथ ही राष्ट्रीय उद्यानों और संरक्षित क्षेत्रों के प्रभावी प्रबंधन में भी देश में सबसे आगे है। इन राष्ट्रीय उद्यानों में कुशल प्रबंधन और अनेक नवाचारी तौर तरीकों को अपनाया गया है। प्रदेश के टाइगर रिजर्व क्षेत्रों और चिड़ियाघरों में भी बाघ हैं, जहां इनका संरक्षण और प्रजनन होता है। जहाँ एक तरफ हाल के वर्षों में प्रदेश सरकार ने ईको विकास समितियों को प्रभावी ढंग से पुनर्जीवित किया है वहीँ वाटरहोल बनाने और घास के मैदानों के रखरखाव और वन्य-जीव निवास स्थानों को रहने लायक बनाने के अनेक कार्यक्रम समय-समय पर भी चलाये हैं जिसका जमीनी असर अब दिखाई दे रहा है।
मध्यप्रदेश के टाइगर रिजर्व क्षेत्रों में इस समय सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन है। टाइगर राज्य का दर्जा हासिल करने के साथ ही प्रदेश राष्ट्रीय उद्यानों और संरक्षित क्षेत्रों के प्रभावी प्रबंधन में भी देश में आगे है। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को यूनेस्को की विश्व धरोहर की संभावित सूची में शामिल किया गया है। इन राष्ट्रीय उद्यानों में अनुपम प्रबंधन योजनाओं और नवाचारी तरीकों को अपनाया गया है। खुली जगह के साथ वन्यजीवों को तनावमुक्त वातावरण और उचित आहार की भी जरूरत होती है जिस दिशा में प्रदेश में पिछले कुछ समय से बेहतरीन कार्य हुआ है जिसके चलते बाघों की संख्या तेजी से बढ़ी है। जहाँ एक तरफ हाल के वर्षों में प्रदेश सरकार ने बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व ने बाघ पर्यटन द्वारा प्राप्त राशि का उपयोग कर ईको विकास समितियों को प्रभावी ढंग से पुनर्जीवित किया है वहीँ वाटरहोल बनाने और घास के मैदानों के रखरखाव और वन्य-जीव निवास स्थानों को रहने लायक बनाने का कार्यक्रम भी चलाया है। कान्हा-पेंच वन्य-जीव विचरण कारीडोर भारत का पहला ऐसा कारीडोर है, जिसमें कारीडोर का प्रबंधन स्थानीय समुदायों, सरकारी विभागों, अनुसंधान संस्थानों और नागरिक संगठनों द्वारा सामूहिक रूप से किया जाता है। प्रदेश में बाघों की संख्या बढ़ाने में राष्ट्रीय उद्यानों के बेहतर प्रबंधन की मुख्य भूमिका है। राज्य शासन की सहायता से कई सौ गाँवों का विस्थापन किया गया जिससे बहुत बड़ा भू-भाग जैविक दबाव से मुक्त हुआ है। संरक्षित क्षेत्रों से गाँवों के विस्थापन के फलस्वरूप वन्य-प्राणियों के रहवास क्षेत्र का विस्तार हुआ है। कान्हा, पेंच और कूनो पालपुर के कोर क्षेत्र से सभी गाँव को विस्थापित किया जा चुका है।
बाघों की सुरक्षा के प्रति भी मध्यप्रदेश सरकार संवेदनशील है। प्रदेश में वन्य क्षेत्रों के पर्यटन से लगभग 55 से 60 करोड़ का राजस्व प्राप्त होता है, जिसका 33 प्रतिशत संयुक्त वन प्रबंधन समिति के माध्यम से ग्राम विकास में खर्च किया जाता है। वनों और वन्य प्राणियों के संरक्षण के साथ-साथ इन वन्य क्षेत्रों में पर्यटन की सुविधाएं भी मध्यप्रदेश में निरंतर बढ़ रही हैं। वन्य जीवों के संरक्षण के लिए सरकार डिजिटल तकनीक का प्रयोग कर रही है जिससे बाघों की हर गतिविधि पर नजर रखी जा रही है। बाघ संरक्षण में अत्याधुनिक तकनीकी का इस्तेमाल करने की पहल करते हुए प्रदेश के टाइगर रिजर्व ने “ड्रोन स्क्वाड” का संचालन किया है जिससे प्रत्येक महीने “ड्रोन स्क्वाड” संचालन की मासिक कार्ययोजना तैयार की जाती है जिसके माध्यम से निगरानी रखने, वन्यजीवों की खोज और बचाव करने, जंगल की आग का पता लगाने और उससे रक्षा करने और मानव-पशुओं के संघर्ष को कम करने के लिये की गई है जिससे जैव-विविधता के दस्तावेज़ीकरण में भी मदद मिल रही है। मध्यप्रदेश में बाघों के संरक्षण के लिए गाँवों का वैज्ञानिक तरीके से भी विस्थापन किया गया। वर्ष 2010 से 2022 तक टाइगर रिजर्व में बसे छोटे-छोटे 200 गाँवों का जिसमें सर्वाधिक 75 गाँव सतपुड़ा टाइगर रिजर्व से बाहर किये गए। बारहसिंगा, बायसन और वाइल्ड बोर को ट्रांसलोकेशन के तहत दूसरे टाइगर रिजर्व में बसाया गया जिससे बाघों के लिए भोजन भी बढ़ा। जंगल के बीच में जो खेत और गाँव खाली हुए वहां तालाब और मैदान विकसित किये गए जिससे शाकाहारी जानवरों की तादात बढ़ी और बाघों को पर्याप्त आहार भी मिलने लगा।
मध्यप्रदेश में राष्ट्रीय उद्यानों और संरक्षित क्षेत्रों का प्रभावी प्रबंधन रहा है। बांधवगढ़, कान्हा, संजय और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व राष्ट्रीय उद्यानों में अनुपम प्रबंधन योजनाओं और नवाचारी तरीकों को अपनाया गया है। पेंच टाइगर रिजर्व के प्रबंधन को देश में उत्कृष्ट माना गया है। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व ने बाघ पर्यटन द्वारा प्राप्त राशि का उपयोग कर ईको विकास समितियों को प्रभावी ढंग से पुनर्जीवित किया है। वाटरहोल बनाने और घास के मैदानों के रखरखाव और वन्य-जीव निवास स्थानों को रहने लायक बनाने का कार्यक्रम भी चलाया गया है। बाघों की सुरक्षा के लिए कैमरा ट्रैप तकनीक के माध्यम से बाघों की गतिविधि पर नजर वनों में रखी जाती है और बघीरा एप की सहायता से जंगल में सफारी की गतिविधि को ट्रैक किया जाता है। आधुनिक तकनीकों जैसे कैमरा ट्रैप, जीपीएस ट्रैकिंग और ड्रोन का उपयोग बाघों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए किया जाता है। इससे अवैध शिकार और मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने में मदद मिली है। कान्हा टाइगर रिजर्व ने अनूठी प्रबंधन रणनीतियों को अपनाया है। कान्हा-पेंच वन्य-जीव विचरण कारीडोर भारत का पहला ऐसा कारीडोर है, जिसमें कारीडोर का प्रबंधन स्थानीय समुदायों, सरकारी विभागों, अनुसंधान संस्थानों और नागरिक संगठनों द्वारा सामूहिक रूप से किया जाता है। पार्क प्रबंधन ने वन विभाग कार्यालय परिसर में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी स्थापित किया है, जो वन विभाग के कर्मचारियों और आस-पास क्षेत्र के ग्रामीणों के लिये लाभदायी सिद्ध हुआ है। सतपुड़ा बाघ रिजर्व में सतपुड़ा नेशनल पार्क, पचमढ़ी और बोरी अभ्यारण्य से 42 गाँव को सफलतापूर्वक दूसरे स्थान पर बसाया गया है। यहाँ पर सोलर पंप और सोलर लैंप का प्रभावी उपयोग किया जा रहा है। वन्य जीव संरक्षण में अत्याधुनिक तकनीकी का इस्तेमाल करने की पहल करते हुए पन्ना टाइगर रिजर्व ने “ड्रोन स्क्वाड” का संचालन करना शुरू कर दिया है। प्रत्येक महीने “ड्रोन स्क्वाड” संचालन की मासिक कार्य-योजना तैयार की जाती है। इससे वन्य जीवों की खोज, उनके बचाव, जंगल की आग का स्त्रोत पता लगाने और उसके प्रभाव की तत्काल जानकारी जुटाने, संभावित मानव-पशु संघर्ष के खतरे को टालने और वन्य जीव संरक्षण संबंधी कानूनों का पालन करने में मदद मिल रही है। इको-टूरिज्म और वन्यजीव-आधारित आजीविका के अवसर प्रदान करके, स्थानीय लोगों को वनों और बाघों की रक्षा के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। पन्ना टाइगर रिजर्व में ड्रोन दस्ता भी काफी उपयोगी साबित हुआ है।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस पर जंगलों में बाघों के भविष्य को सुरक्षित करने और प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने के लिए एकजुट होकर कार्य करने का आह्वान किया है। उन्होंने कहा है कि सरकार वन्य जीवों के संरक्षण के लिए व्यापक रूप से काम कर रही है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि प्रदेश के राष्ट्रीय उद्यानों में बेहतर प्रबंधन से जहाँ एक ओर वन्य प्राणियों को संरक्षण मिलता है, वहीं बाघों के प्रबंधन में लगातार सुधार भी हुए हैं। बाघों के संरक्षण के लिये संवेदनशील प्रयासों की आवश्यकता होती है जो मध्यप्रदेश सरकार, वन विभाग और स्थानीय समुदायों के संयुक्त प्रयासों से संभव हो पाई है। सही मायनों में कहा जाए तो मध्यप्रदेश सरकार ने वन्य प्राणी संरक्षण की दिशा में अनेक पहल करते हुए इसे समृद्ध प्रदेश बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। बाघों का संरक्षण न केवल एक प्रजाति की रक्षा करना है, बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित रखना है। अब बाघों की अगली गणना 2026 में की जाएगी और मध्यप्रदेश सरकार के कारगर प्रयासों और बेहतर प्रबंधन को देखते हुए कहा जा सकता जा सकता है कि 2026 में होने वाली गणना में मध्यप्रदेश को लगातार चौथी बार फिर से टाइगर स्टेट का ताज मिलेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)