Tuesday, February 4, 2025
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फोर्ब्स सूची में भारत के न होने के मायने

वेब वार्ता-डेस्क। प्रतिष्ठित संस्था फोर्ब्स ने साल 2025 के लिये 10 सर्वाधिक शक्तिशाली देशों की जो सूची जारी की है, उसमें भारत का नाम नहीं है। फोर्ब्स के इस रैंकिंग मॉडल को बीएवी ग्रुप ने तैयार किया है, जो कि डब्ल्यूपीपी यूनिट का हिस्सा है जिसका नेतृत्व पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय के व्हार्टन स्कूल के प्रो. डेविड रीबस्टीन करते हैं। वैसे इस सूची पर आलोचना भी हो रही है क्योंकि इसमें भारत जैसे विशाल व बड़ी जनसंख्या वाले देश भारत को बाहर कर दिया गया, जबकि कुछ छोटे देशों को शामिल किया गया है। यह भी सही है कि भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है उसकी सेना विश्व की चौथी बड़ी है।

यह रैंकिंग अपने आप में चौंकाने वाली बताई जा रही है और बहुत सम्भव है कि देश का सरकार समर्थक कुनबा तथा गोदी मीडिया इसे ‘भारत के खिलाफ साजिश’ तथा ‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बढ़ती लोकप्रियता से उपजी पश्चिमी जगत की ईर्ष्या’ करार दे सकता है; लेकिन बेहतर होगा कि इस बात पर मंथन किया जाये कि ऐसा क्या हुआ कि अबकी देश का नाम इस सूची से हटा दिया गया है। फोर्ब्स की रैंकिंग पर सवाल उठाकर भारत अपनी जगहंसाई ही करायेगा क्योंकि पश्चिम जगत में होने वाले ऐसे निष्कर्ष, सर्वे और समीक्षाएं शत प्रतिशत चाहे न कहें तो भी ज्यादातर स्वतंत्र व निष्पक्ष होती हैं जिन्हें न तो किसी सरकार द्वारा प्रभावित किया जा सकता है और न ही कभी उनकी मंशा पर संदेह व्यक्त किया जाता है- फोर्ब्स के बारे में तो ऐसा कहा ही जा सकता है। इसलिये फोर्ब्स द्वारा दी गयी रैंकिंग पर ऊंगली उठाने की बजाये बेहतर है कि भारत सरकार उन कारणों की समीक्षा करे जिनके आधार पर देश को दसवां स्थान भी नहीं मिला। देश की स्थिति के लिये नेतृत्व ही जिम्मेदार होता है- साफ है कि मोदी सरकार की कमजोरी फोर्ब्स की सूची में फेरबदल करने के लिये उत्तरदायी है।

फोर्ब्स की रैंकिंग के मुताबिक ताकतवर देशों का क्रम इस प्रकार है- अमेरिका (जीडीपी 30.34 ट्रिलियन डॉलर), चीन (19.53 ट्रिलि.), रूस (2.2 ट्रिलि.), यूनाइटेड किंग्डम (3.73 ट्रिलि.), जर्मनी (4.92 ट्रिलि.), दक्षिण कोरिया (1.95 ट्रिलि.), फ्रांस (3.28 ट्रिलि.), जापान (4.39 ट्रिलि.), सऊदी अरब (1.14 ट्रिलि.) और इज़रायल (जीडीपी 550.91 बिलियन डॉलर)। यह जान लेना भी उचित होगा कि फोर्ब्स की यह रैंकिंग किन आधारों पर तय होती है। सर्वप्रमुख है नेतृत्व क्षमता। इसमें यह परखा जाता है कि देश का नेतृत्व कितना प्रभावशाली है। दूसरे, आर्थिक प्रभाव कितना है। इसका मतलब कि देश की अर्थव्यवस्था कितनी मजबूत और व्यापक है। एक पैमाना यह भी है कि देश का राजनीतिक रसूख कैसा है। अर्थात वैश्विक राजनीति में उस देश की स्थिति कैसी है। अंतरराष्ट्रीय गठबंधनों को भी देखा जाता है। इसके अंतर्गत इस बात की पड़ताल होती है कि अन्य देशों के साथ उसकी कूटनीतिक साझेदारी की स्थिति कैसी है और सैन्य शक्ति जिसमें यह देखा जाता है कि देश की सेना कितनी मजबूत और आधुनिक है)। इन सभी मानकों के समग्र प्रभाव का असर रैंकिंग तय करता है। कई देशों की अर्थव्यवस्था का आकार तो अधिक हो सकता है लेकिन नेतृत्व पर्याप्त सशक्त न हो तो उसका क्रमांक घट सकता है। ऐसे ही, अर्थव्यवस्था बड़ी हो, नेतृत्व भी प्रभावशाली हो लेकिन कूटनीतिक गठबन्धनों की दृष्टि से यदि वह देश प्रभाव नहीं छोड़ता तो उसका क्रमांक नीचे जा सकता है।

वैसे देखें तो भारत अब भी बड़ी अर्थव्यवस्था है और उसकी सेना का आकार पहले की ही तरह विशाल है। जिस तथ्य के कारण भारत को इस प्रतिष्ठित सूची से हटाया गया है सम्भवत: वह है नेतृत्व का कमजोर होना। नरेन्द्र मोदी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय दोनों ही स्तरों पर कमजोर हुए हैं। पिछले साल हुआ लोकसभा का चुनाव उनके नेतृत्व में तथा उन्हीं के चेहरे पर लड़ा गया था। लक्ष्य था अकेले भाजपा के दम पर 370 सीटें लाना और सत्ताधारी गठबन्धन यानी नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (एनडीए) की सम्मिलित ताकत को लोकसभा में 400 सीटों के पार ले जाना। ऐसा हो नहीं हो सका। भाजपा की सदस्य संख्या 240 पर सिमट गयी तथा उसे सरकार बनाने में काफी कठिनाई हुई।

उनकी कमजोरी का असर संसद के भीतर सरकार के कामकाज पर दिख रहा है। 2014-19 तथा 2019-24 के दो कार्यकालों की तरह मोदी सरकार मनमर्जी निर्णय लेने की हैसियत नहीं रखती। उसे वक्फ़ बोर्ड संशोधन अधिनियम संयुक्त संसदीय समिति को भेजना पड़ा। यह अलग बात है कि येन केन प्रकारेण सरकार उसमें अपनी मर्जी के संशोधन स्वीकृत कराने में सफल हो गयी। पिछली दो लोकसभाओं के मुकाबले लोकसभा में विपक्ष की स्थिति बेहतर हुई है और अनेक मुद्दों पर सत्ता पक्ष को प्रतिपक्ष को ध्यान से सुनना पड़ रहा है। हालांकि महाराष्ट्र व हरियाणा के चुनावों में भाजपा को विजय मिली है, पर यह भी सच है कि वह जम्मू-कश्मीर व झारखंड में हारी है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अब नरेन्द्र मोदी का पहले जैसा असर नहीं दिखता। अमेरिका में नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 20 जनवरी को पद की शपथ ली तब उस समारोह में प्रधानमंत्री मोदी को आमंत्रित नहीं किया गया था। एक तरफ चीन को निमंत्रण दिया गया तथा दूसरी तरफ़ देश के प्रमुख कारोबारी मुकेश अंबानी को सपत्नीक न्यौता मिला था, जबकि नरेन्द्र मोदी 2020 में ट्रंप के चुनाव प्रचार के बाद अब भी उन्हें अपना प्यारा दोस्त ही बताते हैं।

बहरहाल, फोर्ब्स सूची में दस शक्तिशाली देशों में भारत के न आने के मायने हैं कि नरेन्द्र मोदी की एक और बात जुमला साबित हुई है। देश को एक दशक से यही बताया जा रहा है कि भारत विश्वगुरु बन रहा है, लेकिन उस गुरु को सम्मान क्यों नहीं मिल रहा, ये सवाल है। एशिया में भी भारत की स्थिति कमजोर हुई है। जापान, इजरायल, द.कोरिया, सऊदी अरब जैसे नाम इस सूची में हैं, लेकिन भारत नहीं है, इस पर नरेन्द्र मोदी को फिक्रमंद होना चाहिए।

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