Sunday, July 27, 2025
HomeलेखKargil Vijay Diwas : शांति की पहल से शौर्य की पराकाष्ठा तक

Kargil Vijay Diwas : शांति की पहल से शौर्य की पराकाष्ठा तक

-प्रो. सतपाल-

वर्ष 1998 में भारत द्वारा किए गए परमाणु परीक्षणों के बाद पाकिस्तान ने भी परमाणु परीक्षण कर अपनी परमाणु शक्ति का प्रदर्शन किया, जिससे दोनों देश औपचारिक रूप से परमाणु संपन्न राष्ट्र बन गए। इसके परिणामस्वरूप उपजे तनावपूर्ण वातावरण को शांत करने हेतु भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक ऐतिहासिक पहल की। उन्होंने 1999 में दिल्ली से लाहौर तक सद्भावना यात्रा के रूप में बस यात्रा की, जो भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक नई उम्मीद लेकर आई। इस यात्रा के दौरान पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने वाजपेयी का गर्मजोशी से स्वागत किया। उनका सम्मान 21 तोपों की सलामी के साथ किया गया। परंतु विडंबना यह रही कि कुछ ही समय बाद पाकिस्तान ने उन्हीं तोपों का प्रयोग भारतीय सैनिकों पर आक्रमण करने के लिए किया। इस यात्रा के परिणामस्वरूप 21 फरवरी 1999 को लाहौर में एक ऐतिहासिक शिखर सम्मेलन के अंत में लाहौर घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए गए। यह घोषणापत्र भारत और पाकिस्तान के बीच एक द्विपक्षीय समझौता और राजनीतिक संकल्प था, जिसका उद्देश्य परमाणु परीक्षणों के बाद उपजे तनाव को कम करना और शांति की दिशा में आगे बढऩा था।

इस घोषणापत्र को दोनों देशों की संसदों द्वारा अनुमोदित किया गया और इसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा भी सराहा गया। हालांकि, यह पहल बहुत जल्द ही बाधित हो गई। मई 1999 में पाकिस्तान की सेना द्वारा कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ कर दी गई, जिसके परिणामस्वरूप कारगिल युद्ध छिड़ गया। भारतीय मीडिया में यह व्यापक रूप से अनुमान लगाया गया कि पाकिस्तान की सेना के कई वरिष्ठ अधिकारियों ने लाहौर समझौते का समर्थन नहीं किया था। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने इस समझौते को निष्फल करने और दोनों देशों के बीच तनाव को पुन: भडक़ाने का प्रयास किया। प्रधानमंत्री वाजपेयी के स्वागत समारोह का पाकिस्तान की सेना के शीर्ष अधिकारियों, जैसे कि संयुक्त प्रमुखों के अध्यक्ष और सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ, वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल पीक्यू मेहदी और नौसेना प्रमुख एडमिरल फसीह बुखारी द्वारा बहिष्कार किया गया था। यह इस बात का संकेत था कि पाकिस्तान का सैन्य नेतृत्व शांति प्रक्रिया के प्रति अनिच्छुक था।

लाहौर घोषणापत्र एक ऐतिहासिक दस्तावेज था, जिसने यह दर्शाया कि राजनीतिक इच्छाशक्ति के माध्यम से शांति की दिशा में कदम उठाए जा सकते हैं। लेकिन कारगिल युद्ध ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि जब तक दोनों देशों के सभी अंग, विशेष रूप से सैन्य नेतृत्व, एकमत नहीं होते, तब तक शांति की पहलें स्थायी रूप से सफल नहीं हो सकतीं। रुष्ट चल रहे सैन्य अधिकारियों ने वर्ष 1972 के शिमला समझौते का उल्लंघन करते हुए ऑपरेशन बद्र शुरू किया। उक्त समझौते के अनुसार अत्यधिक ठंड वाली नियंत्रण रेखा पर स्थित सैन्य ठिकानों से अक्तूबर-नवंबर में दोनों देशों की सैन्य टुकडिय़ां सामान्य तापमान वाले क्षेत्रों में आ जाती थीं तथा मई महीने में पुन: नियंत्रण रेखा के ठिकानों पर लौट जाती थीं। लेकिन पाकिस्तान ने इस समझौते की धज्जियां उड़ाते हुए इसके विपरीत कार्रवाई की तथा भारतीय नियंत्रण क्षेत्र में स्थित बंकरों पर कब्जा कर लिया। इस बात की सूचना लेह क्षेत्र के एक चरवाहे ने भारतीय सैनिकों को दी थी, क्योंकि उसका याक पहाड़ों में गुम हो गया था। उसे खोजते समय उसे भारतीय सीमा में कुछ संदिग्ध आवाजाही दिखाई दी। फलत: 3 मई 1999 को कारगिल में युद्ध शुरू हो गया।

यह लड़ाई न केवल भारत के साथ विश्वासघात थी, बल्कि पाकिस्तानी धूर्तता का प्रतीक भी थी। कारगिल, लेह का एक जिला है जो सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह जिला भौगोलिक रूप से मस्कोह, द्रास, काकसर और बटालिक, इन चार सेक्टरों में विभाजित है। पाकिस्तानी सैनिकों ने इन चारों सेक्टरों में घेराबंदी कर श्रीनगर और लेह को जोडऩे वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 1 (ए) को निशाना बनाने का असफल प्रयास किया। सबसे ज्यादा युद्घ संघर्ष द्रास सेक्टर में हुआ, विख्यात तोलोलिंग व टाइगर हिल चोटी सहित प्वांइट 5140 इसी सेक्टर में आते हैं। वर्ष 1999 में मई महीने का पांचवां दिन जब भारतीय सैनिक दल की पैट्रोलिंग के समय चोटियों पर बैठे दुश्मनों ने भारतीय सैनिकों पर आक्रमण किया व पांच सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए। द्रास सेक्टर लड़ाई का केन्द्र था क्योंकि यह एनएच के साथ लगता है तथा ऊंची पहाडिय़ों से आसानी से आवाजाही पर नजर रखी जा सकती थी। सही मायनों में यहां पाकिस्तान को सीधा-सीधा फायदा था क्योंकि पहाडिय़ों में ऊंचाई पर बैठ कर आसानी से किसी को भी निशाना बनाया जा सकता है। ऐसे मुश्किल व नामुकिन मिशन के लिए भारतीय सेना ने ‘आपरेशन विजय’ 19 मई को शुरू किया जिसमें बोफोर्स तोपों ने अग्रिम भूमिका निभाई। वहीं 26 मई को वायु सेना ने भी ‘आपरेशन सफेद सागर’ की घोषणा कर दी, जिसमें हमने मिग-27 और मिग-21 विमानों को खोया, जबकि मिराज-2000 ने पाकिस्तानियों की कमर तोड़ कर रख दी। ऐसे में भारतीय नौसेना कहां पीछे रहती। ‘आपरेशन तलवार’ ने भी पाकिस्तान को उसकी असलियत से रूबरू करवाया। पाकिस्तान अंत तक इसे आतंकवादी घटना बताता रहा, परंतु उसके सैनिकों से प्राप्त साक्ष्य व मुर्शरफ की पाकिस्तान के आर्मी अफसर के साथ बातचीत की रिर्काडिंग से उसकी धूर्तता का पता पूरे विश्व को लग गया।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फजीहत होते देख पाकिस्तान ने 14 जुलाई 1999 को युद्धविराम की घोषणा कर दी, परंतु भारतीय सैनिकों को विश्वासघाती का विश्वास नहीं था। इसलिए उन्होंने जब तक पूरे कारगिल क्षेत्र को दुश्मनी सेना से रहित न कर दिया, तब तक पाकिस्तानी घोषणा को नहीं माना। अंतत: 26 जुलाई को कारगिल की सभी चोटियों पर तिरंगा लहराने के बाद युद्धविराम हुआ तथा पाकिस्तान एक बार पुन: भारतीय सेना के समक्ष घुटने टेकने पर विवश हुआ। इस युद्ध में, जहां भारत ने अपना आत्मसम्मान पुन: स्थापित किया, वहीं 527 रणबांकुरों ने सर्वोच्च बलिदान देकर भारत माता की रक्षा की। इन वीरों में 52 हिमाचल प्रदेश के वीर सपूत भी शामिल थे। पालमपुर के कैप्टन विक्रम बत्रा ने मात्र 25 वर्ष की आयु में वीरगति प्राप्त की, जबकि बिलासपुर के राइफलमैन संजय कुमार ने भी अदम्य साहस का परिचय देते हुए अपने प्राणों की आहुति दी। इन दोनों को मरणोपरांत परमवीर चक्र दिया गया।

(लेखक शिक्षाविद है)

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

वेब वार्ता समाचार एजेंसी

संपादक: सईद अहमद

पता: 111, First Floor, Pratap Bhawan, BSZ Marg, ITO, New Delhi-110096

फोन नंबर: 8587018587

ईमेल: webvarta@gmail.com

सबसे लोकप्रिय

Recent Comments