वेब वार्ता-डेस्क। जिस डोनाल्ड ट्रम्प को उनके दोबारा राष्ट्रपति बनने के अवसर पर भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘माई फ्रेंड’ कहकर अपनी बधाइयां दी थीं, उन्हीं ट्रम्प ने मोदी को ‘रिटर्न गिफ्ट’ के रूप में 104 भारतीयों को अवैध प्रवासी कहकर एक सैन्य जहाज में भरकर लौटा दिया है- वह भी अपराधियों की तरह हाथ-पांवों में हथकड़ी-बेड़ियां डालकर तथा उनकी कमर को जंजीरों से जकड़ कर। सी-17 ग्लोबमास्टर नामक सेना का जो हवाई जहाज बुधवार को अमृतसर एयरपोर्ट पर उतरा, उसमें से उतरने वालों के मन में गहन अपमान का दर्द तो साफ दिख रहा था, पूरा देश इसे लेकर अभूतपूर्व बेइज़्ज़ती महसूस कर रहा है जो स्वतंत्र भारत के इतिहास में उसकी कभी भी नहीं हुई थी। एक ओर तो अपने आप को विश्व गुरु होने का दावा करने वाले मोदी की यह बड़ी कूटनीतिक हार है, तो वहीं दूसरी ओर इस घटना ने यह भी साफ कर दिया है कि भारतीयों का एक बड़ा वर्ग ऐसा है जिनमें न राष्ट्रीय गौरव बचा है और न ही मानवाधिकार की चेतना। यह वह वर्ग है जो भारतीय जनता पार्टी का समर्थक तथा हमेशा की तरह मोदी व सरकार के साथ खड़ा है। जो भी हो, भारत सरकार अपने नागरिकों के साथ उनके जीवन की सबसे दुखद व शर्मसार करने वाली घड़ी में साथ खड़े होने में नाकाम रही है।
यह पहली खेप है। अमेरिका ने लगभग 18 हजार अवैध प्रवासियों की शिनाख्त कर ली है। भारत सरकार की सहमति से उन्हें भेजा गया है, जो और भी शर्मनाक है। यानी अभी इसी तरीके से और भी कई जहाज देश के विभिन्न हवाई अड्डों पर उतरेंगे। इस जहाज को अमृतसर इस कारण से उतारा गया था क्योंकि इस खेप में ज्यादातर वे लोग हैं जो पंजाब और गुजरात से हैं। हालांकि जिन ऐसे अवैध प्रवासियों को निकाला जाना है उनमें पंजाब, हरियाणा, दिल्ली आदि के ज्यादा बताये जाते हैं। ट्रेवल एजेंटों को भारी-भरकम राशि देकर बगैर वैध दस्तावेजों के ये लोग अमेरिका में रह रहे थे। कई लोग कनाडा होकर अमेरिकी सीमा को पार करते हुए बेहतर जीवन-यापन की तलाश में उस विकसित देश में पहुंचे थे। ऐसा नहीं कि केवल भारत के ही लोग इस पद्धति से वहां पहुंचे हैं, जिसे ‘डंकी’ तरीका कहा जाता है। अनेक लातिन अमेरिकी, अफ्रीकी तथा एशियाई मुल्कों के लोग अमेरिका जाते हैं। चूंकि इन देशों में आजीविका के पर्याप्त अवसर नहीं हैं तथा समानता और रोजगार के लिहाज से अमेरिका दुनिया भर के लोगों को आकर्षित करता है, वहां एक बड़ी आबादी ऐसे लोगों की है जो इसी तरह से वहां पहुंची हुई है। अवसर मिलने पर वे अपने कागज़ात को ठीक कराते हैं और विभिन्न उपायों से वहां स्थायी व कानूनी रूप से रहने की मंजूरी पा लेते हैं। 2022 में प्रसिद्ध सिने निर्देशक राजकुमार हिरानी ने अवैध आव्रजन के कथानक पर आधारित इसी नाम से एक फिल्म बनाई थी- ‘डंकी’। हालांकि उसमें गैरकानूनी तरीके से लंदन जाने की कहानी है पर इस तरीके को पूरे पश्चिम जगत में अपमानजनक व उपहासात्मक तरीके से डंकी कहा जाता है।
2024 में जब अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव हुआ था तो ट्रम्प ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया था। उनकी ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति के तहत ट्रम्प ने ऐलान किया था कि वे अगर जीते तो सभी अवैध प्रवासी खदेड़ दिये जायेंगे। उन्होंने इसके लिये अपने देश को यह कहकर तैयार किया कि अवैध प्रवासियों के कारण अमेरिकियों के लिये अवसर और संसाधन पूरे नहीं पड़ते हैं। इस मुद्दे पर उन्हें समर्थन भी मिला था। इसके तहत उन्होंने अपना वादा पूरा किया। भारत के अलावा ग्वाटेमाला, होंडुरास, पेरू तथा इक्वाडोर के प्रवासियों को अमेरिका डिपोर्ट कर चुका है। ये बहुत छोटे देश हैं लेकिन कोलंबिया और मैक्सिको ने न सिर्फ रीढ़ की हड्डी दिखलाई बल्कि अपने नागरिकों के सम्मान की रक्षा भी की। उन्होंने अमेरिकी सैन्य विमानों को अपने हवाई अड्डों पर उतरने की अनुमति नहीं दी। बाद में मैक्सिको ने अमेरिका की सीमा से अपने नागरिकों को वापस लिया तथा कोलंबिया ने अपने जहाज भेजकर उनकी सम्मानजनक स्वदेश वापसी कराई।
भारत के लिये यह पूरा वाकया इसलिये दुखद है क्योंकि सरकार ने अमेरिकी प्रशासन के साथ मिलकर ऐसा कोई उपाय ढूंढने की कोशिश ही नहीं की कि अवैध प्रवासी ही सही, लेकिन उनकी सम्मानजनक वापसी हो। भारत सरकार के पास पर्याप्त समय था। भारत ने इसके पहले युद्ध या अन्य परिस्थितियों में अलग-अलग देशों में फंसे भारतीयों को निकाला है। यह माना जा सकता है कि यह विशिष्ट स्थिति है, लेकिन अब कम से कम बचे लोगों की सम्मानपूर्वक वापसी कराई जाये। यह कहकर उन्हें लावारिस नहीं छोड़ा जा सकता कि ‘वे अवैध रूप से गये थे’ या ‘क्या वे सरकार को बता कर गये थे?’ भारत को अमेरिकी सरकार से इस बाबत कड़ाई से बात करनी चाहिये क्योंकि बेड़ी-हथकड़ियों में नागरिकों का लाया जाना किसी भी देश के ही लिये नहीं वरन समस्त मानवीयता के लिये एक कलंक है।
इस घटना ने जहां एक ओर भारत सरकार की कमजोरी को साबित किया है वहीं उन लोगों की कथित देशभक्ति का भी खुलासा हो गया जो किसी भी कीमत पर सरकार के साथ खड़े होकर उसकी नाकामियों को महिमा मंडित करते हैं। ऐसे लोगों ने एक बार फिर से साबित कर दिया है कि उनके लिये देश का सम्मान कोई मायने नहीं रखता और उनकी पार्टी उनके लिये स्वाभिमान तथा राष्ट्रीय गौरव से बढ़कर है। दुर्भाग्य से यही वह वर्ग है जो देशभक्ति का दावा करता है।