-पृथ्वी की गति में तेजी से समय गणना पर मंडराया संकट-
कैलिफ़ोर्निया, 23 जुलाई (वेब वार्ता)।
गर्मी के मौसम में पृथ्वी की घूर्णन गति में आई तेजी के कारण इस वर्ष दिन सामान्य से थोड़े छोटे दर्ज किए गए हैं, जिससे वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय सतर्क हो गया है। समय की सटीक गणना करने वाली संस्थाओं के अनुसार, पृथ्वी पर अब तक का सबसे छोटा दिन 10 जुलाई 2025 को रिकॉर्ड किया गया, जो 24 घंटे से 1.36 मिलीसेकंड कम था।
इंटरनेशनल अर्थ रोटेशन एंड रेफरेंस सिस्टम्स सर्विस (IERS) और यूएस नेवल ऑब्जर्वेटरी के आंकड़ों के मुताबिक, 22 जुलाई को भी दिन 1.34 मिलीसेकंड छोटा रहा। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 5 अगस्त को भी दिन लगभग 1.25 मिलीसेकंड छोटा हो सकता है।
🔍 पृथ्वी की गति में यह बदलाव क्यों?
पृथ्वी की घूर्णन गति पूरी तरह स्थिर नहीं होती। दिन की लंबाई वह समय है जो पृथ्वी को अपनी धुरी पर एक चक्कर लगाने में लगता है — औसतन 86,400 सेकंड या 24 घंटे। हालांकि वास्तविकता इससे थोड़ी अलग है।
विशेषज्ञों के अनुसार, पृथ्वी की घूर्णन गति में यह परिवर्तन कई जटिल कारणों से होता है, जिनमें शामिल हैं:
चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण प्रभाव
मौसमी और जलवायु संबंधी बदलाव
पृथ्वी के आंतरिक कोर की गतिविधियाँ
इन कारणों से पृथ्वी कभी-कभी अपेक्षा से तेज़ या धीमी घूमती है, जिससे दिन की लंबाई में मिलीसेकंड के स्तर पर बदलाव दर्ज होता है।
🕰️ समय गणना की बारीकियां
1955 में परमाणु घड़ियों की शुरुआत के बाद से समय की सटीक गणना की जाती है। ये घड़ियां एक निर्वात कक्ष में परमाणुओं के दोलनों को मापकर समय निर्धारित करती हैं और आज यह हमारे कंप्यूटर, मोबाइल फोन और उपग्रहों के लिए वैश्विक मानक बन चुकी हैं।
इस सूक्ष्म अंतर का आम जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, लेकिन कंप्यूटर प्रणाली, संचार नेटवर्क, नेविगेशन सिस्टम और अंतरिक्ष मिशनों के लिए यह अंतर बेहद अहम हो सकता है।
⚠ संभावित तकनीकी खतरे
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यदि पृथ्वी की गति में तेजी का यह सिलसिला जारी रहा तो हमें “ऋणात्मक लीप सेकंड” जोड़ना पड़ सकता है — यानी घड़ी में एक सेकंड घटाना होगा। यह तकनीकी तौर पर एक बड़ी चुनौती बन सकता है।
वाई2के संकट की तरह की स्थिति उत्पन्न होने की आशंका भी जताई जा रही है, जब वर्ष 2000 में कंप्यूटरों के समय स्वरूप में बदलाव के कारण वैश्विक प्रणालियों पर संकट आ गया था।
🧠 वैज्ञानिकों की राय
स्क्रिप्स इंस्टीट्यूशन ऑफ़ ओशनोग्राफी में भूभौतिकी के एमेरिटस प्रोफेसर और कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय, सैन डिएगो के शोधकर्ता डंकन एग्न्यू कहते हैं:
“1972 से अब तक हम धीरे-धीरे तेज़ होते दिनों की ओर बढ़ रहे हैं। पृथ्वी का तरल कोर धीमा हो रहा है, जबकि उसकी ठोस सतह की गति बढ़ रही है। यह संयोजन आने वाले वर्षों में और बड़े बदलावों की ओर संकेत करता है।”
📅 पिछला रिकॉर्ड
गौरतलब है कि पिछले वर्ष 5 जुलाई 2024 को भी पृथ्वी ने अब तक का सबसे छोटा दिन दर्ज किया था, जो 24 घंटे से 1.66 मिलीसेकंड कम रहा था।
निष्कर्ष:
पृथ्वी के घूर्णन में यह मामूली बदलाव हमारे दैनिक जीवन में भले न दिखे, लेकिन वैज्ञानिकों और तकनीकी विशेषज्ञों के लिए यह बेहद गंभीर विषय है। जैसे-जैसे हम परमाणु घड़ियों और अत्याधुनिक प्रणालियों पर निर्भर होते जा रहे हैं, वैसे-वैसे समय की एक-एक मिलीसेकंड की गणना महत्वपूर्ण होती जा रही है।