ओडिशा के बालासोर में फकीर मोहन (स्वायत्त) कॉलेज की बी.एड. द्वितीय वर्ष की छात्रा ने तीन दिन तक जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष करने के बाद सोमवार रात भुवनेश्वर के एम्स में दम तोड़ दिया। 20 साल की इस छात्रा ने यौन उत्पीड़न के आरोपी एक प्रोफेसर के खिलाफ कार्रवाई नहीं किए जाने का आरोप लगाते हुए शनिवार को कॉलेज परिसर में खुद को आग लगा ली थी। छात्रा ने इतना बड़ा कदम किसी भावावेश में नहीं उठाया, बल्कि उस छात्रा ने पहले ही अपनी व्यथा और हताशा जाहिर करते हुए चेतावनी दी थी कि अगर उसकी शिकायत पर कार्रवाई नहीं की गई तो वह आत्महत्या कर लेगी। इस से पहले पीड़िता ने अपने इलाके के सांसद प्रतापचंद सारंगी से भी शिकायत की थी।
पीड़िता की मौत की बात सुनकर खुद भाजपा सांसद श्री सारंगी ने बताया है कि च्च्कुछ दिन पहले लड़की और उसकी दोस्तों ने मुझे घटना की जानकारी दी थी। मैंने प्राचार्य और एसपी से बात की। प्राचार्य ने कहा कि जांच समिति इस पर काम कर रही है और पांच दिनों में समाधान हो जाएगा। लड़की ने बताया था कि वह पहले भी आत्महत्या की कोशिश कर चुकी हैज् आज जब मैंने खबर सुनी, तो मैंने प्राचार्य को कई बार फोन किया, लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठायाज् जब मैंने समिति की रिपोर्ट देखी, तो उसमें कई गलतियां थींज् मैंने उन्हें बताया कि आपकी जांच पूरी तरह पक्षपाती है। उनकी रिपोर्ट पीड़िता के बयान से बिल्कुल मेल नहीं खा रही है।
भाजपा को और किसी की बात पर यकीन हो न हो, अपने सांसद की बात तो सुननी ही चाहिए। क्योंकि इस बारे में जब राहुल गांधी ने आरोप लगाया है कि पीड़िता की मौत भाजपा के सिस्टम की नाकामी की वजह से हुई है, तो केन्द्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान उल्टे राहुल गांधी पर आरोप लगा रहे है कि वे घटिया राजनीति कर रहे हैं। मामले का राजनीतिकरण कर रहे हैं। यह भाजपा की ही सोच है, जिसमें पीड़ित के साथ खड़े होना या सरकार से सवाल उठाने को घटिया राजनीति कहा जाता है। मगर ऐसा करते हुए भाजपा भूल जाती है कि ऐसी राजनीति उसने तब खूब की है, जब वह विपक्ष में रहती है। दिल्ली के निर्भया कांड से लेकर प.बंगाल में आर जी कर की घटना तक या फिर राजस्थान में कांग्रेस सरकार के वक्त घटी ऐसी घटनाओं पर सीधे राष्ट्रपति शासन की मांग लगाकर भाजपा ने सरकारों पर सवाल उठाए हैं। ऐसा करने में कुछ गलत नहीं है, क्योंकि कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी सरकार पर होती है। महिलाओं के लिए सुरक्षित वातावरण बने इसमें भी सरकार की ही अहम भूमिका होती है। महिलाओं के लिए समाज में व्यापक तौर पर जो रूढ़िवादी और घृणित मानसिकता बनी हुई है, उसे रातोंरात तो खत्म नहीं किया जा सकता। लेकिन ऐसे में सरकारें चाहें तो थोड़ी सख्ती दिखाकर माहौल को सुधार सकती है।
ओडिशा की भाजपा सरकार इस अपेक्षा पर ही खरी नहीं उतरी है। यहां पिछले एक साल में कई ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिनमें महिलाओं की सुरक्षा को लेकर सवाल उठे। अपने मित्र के साथ समुद्र किनारे घूमने आई युवती के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना ने भी राज्य को दहला दिया था, लेकिन उसके बाद कुछ और ऐसे ही मामले हुए। कुछ दिनों पहले ही राहुल गांधी ने ओडिशा में एक सभा की थी, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि ओडिशा में 40 हजार से ज्यादा महिलाएं गायब हो गई हैं, लेकिन आज तक किसी को नहीं पता कि यह महिलाएं कहां गईं। यहां महिलाओं के साथ अत्याचार हो रहा है। ओडिशा में हर दिन 15 महिलाओं का रेप होता है, लेकिन यहां की सरकार को इससे कोई मतलब नहीं है। ये सरकार 24 घंटे सिर्फ आपकी जमीन छीनने का काम करती है। इसलिए मैं आपको बताना चाहता हूं- जब भी आपको मेरी और कांग्रेस पार्टी की जरूरत होगी, हम आपके साथ खड़े रहेंगे।
बता दें कि राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे की सभा में भारी भीड़ जुटी थी, इससे पहले भी अब भाजपाशासित राज्य ओडिशा में कांग्रेस काफी सक्रिय हो गई है। शायद यही वजह है कि अपनी एक और नाकामी पर अब भाजपा ने सुधार करने की जगह राहुल गांधी को निशाना बनाया है। लेकिन क्या इससे जनता को राहत मिलेगी, यह सवाल भाजपा को अपने आप से करना चाहिए। बालासोर घटना एक तरह से चेतावनी है कि सरकार आँखें खोलकर देखे कि किस तरह अपराधी बेखौफ हैं और मासूम लोग पीड़ित हो रहे हैं। यहां पीड़िता छात्रा ने 1 जुलाई से प्राचार्य और कॉलेज की आतंरिक शिकायत समिति के समक्ष शिकायत की थी। जब 12 दिनों तक उसकी शिकायत पर कोई काम नहीं हुआ और आरोप हैं कि इस बीच प्राचार्य ने कुछ छात्रों का समूह बनावकर उसे धमकाने की कोशिश की, और जिस शिक्षक पर आरोप लगा, वह भी मजे में घूमता रहा, तब जाकर हताश होकर उस छात्रा ने कॉलेज में ही खुद को आग लगा ली। उसे बचाने की कोशिश करने में एक छात्र भी बुरी तरह जल चुका है। बताया जाता है कि यह छात्रा संघ की विद्यार्थी शाखा अभाविप की सदस्या भी थी। हालांकि यौन उत्पीड़न का शिकार लोगों का धर्म, जाति या राजनैतिक विचारधारा देखने का कोई अर्थ नहीं है, क्योंकि यौन उत्पीड़न करना हर तरह से गंभीर अपराध है। लेकिन यहां छात्रा को जिस तरह अन्याय के बीच अकेला छोड़ दिया गया, उसमें न केवल भाजपा बल्कि अब अभाविप पर भी सवाल उठेंगे कि उसने अपनी एक सदस्या को इंसाफ दिलाने के लिए मोर्चा क्यों नहीं खोला।
बहरहाल अब कांग्रेस और बीजद ने इस मामले में मोर्चा खोला है। बुधवार को विधानसभा के बाहर बीजद के लोग विरोध प्रदर्शन करने पहुंचे तो उन पर पुलिस ने सख्ती दिखाई। ऐसी सख्ती पहले भी दिखाई जा चुकी है। लगता है अब मोहन मांझी सरकार का यही काम रह गया है कि वह विपक्ष का दमन करे और राज्य में होने वाले गंभीर अपराधों पर लीपापोती करे। फिलहाल सरकार ने प्राचार्य को निलंबित किया है, और जल्द इंसाफ करने का दावा किया है। लेकिन अब मोहन मांझी कुछ भी कर लें, उस युवती के प्राण वापस नहीं लाए जा सकते। जो तत्परता अब दिखाई जा रही है, 1 जुलाई के बाद उसका जरा सा अंश भी दिखाया जाता तो शायद एक उम्मीदों से भरी जिंदगी हमारे बीच होती।