-वेबवार्ता डेस्क-
🍚 परिचय: एक दाने की दुनिया पर पकड़
चावल – एक ऐसा अनाज जो दुनिया की आधी से ज़्यादा आबादी के जीवन का अभिन्न हिस्सा है। एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के करोड़ों लोगों की थाली बिना चावल अधूरी लगती है। लेकिन क्या आज की बदलती जलवायु और संसाधनों की सीमाएं हमें यह सोचने पर मजबूर कर रही हैं कि अब चावल खाना कम कर देना चाहिए?
🌏 चावल का वैश्विक महत्व
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, पृथ्वी पर खाने योग्य 50,000 वनस्पतियों में से केवल 15 फसलें ही 90% खाद्य ज़रूरतें पूरी करती हैं। चावल, गेहूं और मक्का उनमें सबसे अहम हैं।
अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (IRRI) के अनुसार, दुनिया की लगभग 50 से 56 प्रतिशत आबादी अपनी दैनिक कैलोरी ज़रूरतों के लिए चावल पर निर्भर है।
एशिया के लगभग हर देश में – भारत, बांग्लादेश, थाईलैंड, फिलीपींस, इंडोनेशिया – चावल न सिर्फ भोजन है, बल्कि संस्कृति और परंपरा का प्रतीक भी है।
💧 चावल की खेती: स्वाद की कीमत क्या है?
चावल उगाने के लिए पानी की भूख जबरदस्त है।
ब्रिटेन की प्रमुख चावल कंपनी ‘टिल्डा’ के अनुसार, 1 किलो चावल उगाने के लिए 3,000 से 5,000 लीटर पानी की जरूरत होती है। ज़रा सोचिए, एक छोटी सी प्लेट बिरयानी के पीछे कितना पानी खर्च हो रहा है।
इतना ही नहीं, चावल की खेती में खेतों को जलमग्न रखा जाता है, जिससे मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म जीवाणु मीथेन गैस छोड़ते हैं — एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस जो वैश्विक तापमान वृद्धि में लगभग 30% की भागीदार है।
IRRI के आंकड़ों के अनुसार, वैश्विक कृषि से निकलने वाले ग्रीनहाउस गैसों में चावल उत्पादन का योगदान लगभग 10% है।
🌀 जलवायु परिवर्तन: चावल पर संकट
हरित क्रांति के दौरान विकसित की गई उच्च उपज वाली किस्मों ने भले ही एक दौर में अरबों लोगों को भूख से बचाया हो, लेकिन अब वही किस्में जलवायु परिवर्तन के आगे बेबस होती जा रही हैं।
- भारत में 2024 के चावल सीज़न के दौरान तापमान 53°C तक पहुंच गया।
- बांग्लादेश में बार-बार बाढ़ से खेती तबाह हो रही है।
- सूखा, लू, और अनियमित बारिश अब सामान्य हो चुके हैं।
ऐसे में यह सवाल लाजिमी है — क्या हम पर्यावरणीय लागत चुका पाने की स्थिति में हैं?
🔧 हल क्या हो सकता है?
- तकनीकी नवाचार: AWD तकनीक
‘Alternate Wetting and Drying’ (AWD) एक नई सिंचाई तकनीक है, जिसमें खेतों को लगातार पानी में डुबाने की जगह जरूरत पड़ने पर ही सिंचाई की जाती है।
टिल्डा कंपनी ने 2024 में इस तकनीक से:
- 27% पानी,
- 28% बिजली,
- और 25% उर्वरक की खपत घटाई।
फिर भी उत्पादन में 7% की बढ़ोतरी हुई।
मीथेन उत्सर्जन में 45% की कमी दर्ज की गई।
- नई किस्में और शोध
IRRI के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा जीन खोजा है जो चावल के पौधे को 21 दिन तक पानी के नीचे जीवित रख सकता है। इससे बाढ़ग्रस्त इलाकों में भी उपज बचाई जा सकती है।
🍠 वैकल्पिक आहार: क्या चावल की जगह कुछ और हो सकता है?
कुछ देशों ने चावल की जगह आलू को बढ़ावा देने की कोशिश की है।
- बांग्लादेश ने जब चावल महंगा हुआ तो “आलू खाओ” अभियान चलाया।
- चीन ने 2015 में आलू को “सुपरफूड” बताकर प्रोत्साहित किया।
लेकिन समस्या यह है कि चावल का भावनात्मक और सांस्कृतिक स्थान कोई और अनाज आसानी से नहीं ले सकता।
लोगों की मानसिकता और सामाजिक धारणाएं भी इसमें बाधा बनती हैं। चीन में आलू को अक्सर ग़रीबी से जोड़ा जाता है — यह बताता है कि विकल्प को केवल पोषण या पर्यावरण की दृष्टि से नहीं देखा जा सकता, बल्कि संस्कृति और सम्मान से भी जोड़ा जाता है।
❤️ तो क्या हम चावल खाना छोड़ दें?
नहीं, पूरी तरह से चावल छोड़ना न व्यावहारिक है, न ज़रूरी।
लेकिन हम ये ज़रूर कर सकते हैं:
- चावल की खपत को संतुलित करना।
- स्थानीय और कम पानी मांगने वाले अनाजों (जैसे बाजरा, ज्वार, रागी) को बढ़ावा देना।
- स्मार्ट खेती तकनीकों को अपनाना।
- विकल्पों को सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य बनाना।
🔚 निष्कर्ष: एक नई सोच की जरूरत
चावल हमारी थाली का हिस्सा है, लेकिन अब समय आ गया है कि हम इसे थाली का राजा नहीं, हिस्सा मानें।
भोजन सिर्फ स्वाद की बात नहीं, यह पर्यावरण और भविष्य की जिम्मेदारी भी है।
अगर हम थोड़ी समझदारी और विज्ञान को अपनाएं, तो चावल के साथ-साथ पृथ्वी को भी बचा सकते हैं।
क्या आप तैयार हैं थोड़ी बिरयानी छोड़ने के लिए, ताकि आने वाली पीढ़ियों को पूरी थाली मिल सके?