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Sunday, September 24, 2023

विश्वगुरु भारत के स्वयंभू ज्ञानियों के यह अज्ञानता पूर्ण बोल?

-तनवीर जाफ़री-

भौगोलिक संरचना के चलते पहाड़ी क्षेत्रों में भूस्खलन होने व बादल फटने की घटनायें आम तौर पर वैश्विक स्तर पर होती ही रहती हैं। परन्तु इस बार वर्षा ऋतु के दौरान ख़ासतौर पर हिमाचल प्रदेश व उत्तराखण्ड जैसे राज्यों में हुई भरी बारिश के चलते तबाही के कुछ ज़्यादा हो दृश्य देखने को मिले। जान माल का भारी नुक़सान हुआ,सैकड़ों भवन भूस्खलन में ढह व बह गये ,अनेक पुल ध्वस्त हुये,अनेक रास्ते काट गये,कई जगह भीषण बाढ़ के भयावह दृश्य देखे गये। हालांकि यह आपदा प्राकृतिक तो ज़रूर थी परन्तु अनेक भू विज्ञान विशेषज्ञों ने इस अत्यधिक तबाही के पीछे कई कारण भी बताये। उदाहरण के तौर पर कुछ ने पहाड़ी क्षेत्रों में रेल व वाहन यातायात हेतु बन रही सुरंगों के कारण होने वाले भीषण विस्फ़ोट के चलते पहाड़ों में होने वाली कंपन को इसका कारण बताया तो कुछ ने विकास के नाम पर होने वाले सड़कों व भवनों के बेतहाशा निर्माण को इसकी वजह बताया। कुछ ने पहाड़ों में बढ़ते शहरीकरण के चलते होने वाली पेड़ों व जंगलों की अनियंत्रित कटाई को इसकी वजह माना। तो इस तरह के चुनौतीपूर्ण विकास कार्यों को सही व वक़्त की ज़रुरत मानने वाले कई विशेषज्ञों ने दुनिया भर से उठने वाले सबसे प्रमुख स्वर में अपना भी सुर मिलाते हुये इन सभी आपदा पूर्ण परिस्थितियों का ज़िम्मा ‘ग्लोबल वार्मिंग’ पर मढ़ने की कोशिश की।

परन्तु इन सबसे अलग और विचित्र तर्क पेश किया गया हिमाचल प्रदेश में मंडी स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आई आई टी) के निदेशक लक्ष्मीधर बेहरा द्वारा। बेहरा का मत है कि पशुओं पर की जा रही क्रूरता के कारण प्रदेश में भूस्खलन और बादल फटने की घटनाएं हो रही हैं। उन्होंने छात्रों से मांस नहीं खाने का संकल्प लेने का आह्वान भी किया। उन्हें छात्रों को मांसाहार न करने की शपथ भी दिलाई । बेहरा ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘अगर हम ऐसा करते रहे तो हिमाचल प्रदेश में और गिरावट आएगी। उन्होंने कहा कि आप जानवरों को मार रहे हैं। निर्दोष जानवरों को, इसका पर्यावरण के क्षरण के साथ ही सहजीवी संबंध भी है। जिसे आप अभी नहीं देख सकते लेकिन ऐसा है।” बेहरा ने कहा, ‘बार-बार भूस्खलन, बादल फटना और कई अन्य चीज़ें हो रही हैं, ये सभी पशुओं पर क्रूरता का प्रभाव है…लोग मांस खाते हैं।’ उन्होंने कहा, ‘अच्छे इंसान बनने के लिए, आपको क्या करना चाहिए? मांस खाना बंद करें।” उन्होंने छात्रों से मांस नहीं खाने का संकल्प लेने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि मांस खाना बंद नहीं किया तो हिमाचल का पतन तय है। ग़ौर तलब है कि लक्ष्मीधर बेहरा ने राष्ट्रीय तकनीकी संस्थान राऊरकेला से 1988-90 में इंजीनियरिंग में एमएससी की पढ़ाई की। 1997 में उन्होंने आईआईटी दिल्ली से पीएचडी की। और 19 जनवरी 2022 में उन्हें आईआईटी मंडी का डायरेक्टर बनाया गया था।

बहरा के इस बयान से विवाद पैदा हो गया है। वैज्ञानिक सोच व दृष्टिकोण रखने वाले तमाम लोग यह सोचकर आश्चर्यचकित हैं कि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के निदेशक पर आख़िर किस तरह एक अवैज्ञानिक सोच रखने वाला अंधविश्वासी व पूर्वाग्रही व्यक्ति थोप दिया गया है। आईआईटी दिल्ली के पूर्व छात्र व उद्यमी संदीप मनुधने ने कहा- ‘गिरावट पूरी हो गई है। 70 वर्षों में जो कुछ भी बनाया गया था, ऐसे अंधविश्वासी मूर्ख उसे नष्ट कर देंगे। ‘ बायोफ़िज़िक्स के प्रोफ़ेसर गौतम मेनन ने बेहरा के बयान को बेहद दुखद बताया। एक बार पहले भी बेहरा की टिप्पणियों से उस समय विवाद खड़ा हो गया था जब गत वर्ष उन्होंने यह दावा किया था कि मंत्रों का जाप कर उन्होंने अपने एक दोस्त और उसके परिवार को बुरी आत्माओं से छुटकारा दिलाया था। देश का कोई आम धर्मांध या धार्मिक आस्थावान व्यक्ति इस तरह की बातें करे तो लोगों को कोई आश्चर्य नहीं होता। क्योंकि उसकी सोच का दायरा निहायत सीमित होता है। वह सभी बातों को धर्म व धार्मिक संस्कारों के चश्मे से ही देखता है। परन्तु आई आई टी जैसे शिक्षण संस्थान जहाँ कि तर्कों वितर्कों के आधार पर ही बच्चों का शैक्षणिक व मानसिक विकास होता है वहां के निदेशक पद पर बैठा इंजीनियर व पी एच डी व्यक्ति ऐसी ”मूर्खता पूर्ण” व तर्कविहीन बातें करे तो उसके अधीन पढ़ने वाले बच्चों की योग्यता व उनके भविष्य पर भी प्रश्न चिन्ह लगना स्वाभाविक है। किसी भी व्यक्ति का शाकाहारी होना उसका निजी विषय है। उसे शाकाहार पर अमल करने व उसका प्रचार करने का भी अधिकार है। परन्तु मांसाहार के विरोध के नाम पर तर्कविहीन बातें करने का सीधा अर्थ है कि लोगों का ध्यान आपदा के वास्तविक कारणों से हटाना। वैसे भी सहस्त्राब्दियों से पहाड़ी इलाक़ों के भोजन का मुख्य आधार ही मांसाहार रहा है। उपलब्धता के दृष्टिकोण से भी और भोजन के लिहाज़ से भी। याक जैसे कई पहाड़ी पशु प्रकृति ने इन इलाक़ों में इसी ग़रज़ से पैदा किये हैं। इनका दूध भी पिया जाता है, कृषि के उपयोग में भी लाया जाता है ,सवारी भी की जाती है ,इनके बालों के गर्म वस्त्र बनाये जाते हैं और अंत में इनका मांस भी खाया जाता है।

तर्कविहीन व मूर्खतापूर्ण बात करने वाले आई आई टी निदेशक लक्ष्मीधर बेहरा कोई पहले व्यक्ति नहीं हैं। कुछ वर्ष पूर्व राजस्थान हाईकोर्ट के जस्टिस महेश चंद्र शर्मा ने भी इसी तरह की हास्यास्पद बात करते हुए यह कहा था कि -“हमने मोर को राष्ट्रीय पक्षी क्यों घोषित किया? क्योंकि मोर आजीवन ब्रह्मचारी रहता है। इसके जो आंसू आते हैं, मोरनी उसे चुग कर गर्भवती होती है।मोर कभी भी मोरनी के साथ सेक्स नहीं करता। मोर पंख को भगवान कृष्ण ने इसलिए लगाया क्योंकि वह ब्रह्मचारी है। साधु संत भी इसलिए मोर पंख का इस्तेमाल करते हैं। मंदिरों में इसलिए मोर पंख लगाया जाता है।” उस समय भी राजस्थान हाईकोर्ट के जस्टिस जैसे अत्यंत ज़िम्मेदार पद पर बैठे किसी व्यक्ति द्वारा इसतरह के कुतर्कपूर्ण बयान देने से लोगों को आश्चर्य हुआ था। सूचना प्रौद्योगिकी व इंटरनेट के आज के युग में प्राचीन धर्मग्रंथों में लिखी इसतरह की बातों को थोपना क़तई मुनासिब नहीं। दुनिया आज जानती है कि नर मोर भी अन्य पक्षियों की ही तरह मादा मोरनी के साथ सम्भोग करता है। परिणाम स्वरूप मोरनी अंडे देती है जिससे मोर-मोरनी के बच्चे पैदा होते हैं। अनेक कथावाचक भी यही प्रवचन देते हैं कि मोर के आंसू चुग कर मोरनी गर्भवती होती है। परन्तु कथावाचकों की बातों को गंभीरता से नहीं लिया जा सकता क्योंकि उनका ज्ञान सीमित व पूर्वाग्रही रहता है। जबकि जज व इंजीनियर्स जैसे शिक्षित व आदर्श लोगों से तो ऐसे कुतर्कों की उम्मीद ही नहीं की जा सकती।

इसी प्रकार कोरोना काल में भी एक ओर जहाँ हमारे देश व दुनिया के वैज्ञानिक वैक्सीन बनाने में जुटे थे,स्वास्थकर्मी दिन रात एक कर कोविड मरीज़ों को बचाने में जुटे थे। सैकड़ों लोग अपने इसी पुरुषार्थ के चलते अपनी जानें भी गँवा बैठे तो कुछ ऐसे भी थे जो टॉर्च व दीया जलाकर तो ताली व थाली बजाकर कोविड को भागने में लगे थे। तमाम लोगों ने क़ुरआन की आयतें व ताबीज़ें अपने मकानों के मुख्य द्वारों पर लटका रखी थीं कि इन्हें देखकर कोविड ‘गृह प्रवेश’ नहीं करेगा। इसतरह की बातें अंधविश्वासपूर्ण व तर्कविहीन होती हैं। आज हम अपनी वैज्ञानिक उपलब्धियों व सलाहियतों की वजह से ही चंद्रयान को चन्द्रमा पर स्थापित कर चुके हैं। सूर्य का अध्ययन आदित्य कर रहा है। ऐसे में विशिष्ट व ज़िम्मेदार पदों पर बैठे लोगों द्वारा पूर्वाग्रही, पाखंड पूर्ण व अंधविश्वास पूर्ण बातों को लोगों पर थोपना यह सोचने के लिये मजबूर करता है कि विश्वगुरु भारत के स्वयंभू ज्ञानियों के यह अज्ञानतापूर्ण बोल आख़िर हमें किस दिशा में ले जा रहे हैं ?

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