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Tuesday, October 3, 2023

घोर संक्रमणकाल से गुज़रता भारतीय मीडिया

-तनवीर जाफ़री-

विपक्षी गठबंधन ‘”इंडिया” ने आख़िरकार सत्ता के साम्प्रदायिक एजेंडे को हर समय अपने चैनल्स पर चलाने वाले उन 14 टीवी एंकरों की एक सूची जारी कर ही डाली। अब इनके विद्वेषपूर्ण कार्यक्रमों में ‘इंडिया’ का कोई नुमाइंदा शामिल नहीं होगा। कई चैनल्स का बहिष्कार करने की बात भी कहीं गयी है। देश में यह पहली बार हुआ है जबकि 28 दलों के विपक्षी गठबंधन ने पत्रकारिता की आड़ में देश में साम्प्रदायिकता फैलाने वालों से तंग आ कर इतने राजनैतिक दलों ने एक साथ अनेक चैनल्स व ऐंकर्स के साम्प्रदायिकता फैलाने के उनके रवैय्ये के प्रति अपनी नाराज़गी जताते हुये टी वी एंकर्स व चैनल्स के बहिष्कार की घोषणा की है। गठबंधन की तरफ़ से साफ़ शब्दों में यह कहा गया है कि उसने ‘नफ़रत भरे’ न्यूज़ डिबेट चलाने वाले इन टीवी ऐंकर्स के कार्यक्रमों का बहिष्कार करने का फ़ैसला किया है। इंडिया गठबंधन का आरोप है कि पिछल नौ साल से रोज़ शाम पाँच बचे कई चैनल्स पर नफ़रत का बाज़ार सज जाता है।और हम सब वहां उस नफ़रत के बाज़ार में ग्राहक के तौर पर जाते हैं.” परन्तु नफ़रत भरे नैरेटिव को मंज़ूरी नहीं दी जा सकती। क्योंकि यह नैरेटिव देश व समाज को कमज़ोर कर रहा है।

जिन 14 कथित पत्रकारों की सूची जारी की गयी है उनमें दो पत्रकार तो ऐसे भी हैं जो गंभीर अपराधों के आरोप में जेल भी जा चुके हैं। हालांकि इंडिया गठबंधन ने अभी केवल 14 टीवी ऐंकर्स की सूची ही जारी की है परन्तु दरअसल सत्ता की दलाली करने वाले चाटुकार ऐंकर्स व सम्पादकों की संख्या इससे ज़्यादा है। यह चाटुकार पत्रकार झूठी ख़बरें फैला कर, निराधार विमर्श गढ़कर केवल देश का साम्प्रदायिक सौहार्द्र ही नहीं बिगाड़ रहे बल्कि यह पत्रकारिता जैसे ज़िम्मेदाराना व नैतिकतपूर्ण पेशे को भी कलंकित कर रहे हैं। इनमें ‘तिहाड़ी’ के नाम से प्रसिद्ध हो चुका एक पत्रकार पिछले ही दिनों केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी द्वारा एक लाईव शो में सिर्फ़ इसलिये ज़लील किया गया क्योंकि उसने दस वर्षों में शायद पहली बार मंत्री महोदया से टमाटर की बढ़ती क़ीमतों के बारे में एक मामूली सा सवाल कर लिया था। मंत्री महोदया ने उसे उसकी तिहाड़ यात्रा याद दिला दी। गोया दस साल तक चरणों में पड़े रहने व दलाली करने का भी यही सिला मिला ‘तिहाड़ी’ को?

बहरहाल, यह वही ऐंकर्स व मीडिया है जो गत दस वर्षों से देश में ढूंढ ढूंढ कर ऐसे विषय छेड़ता है या उकसाता है जिससे देश का सामाजिक सौहार्द्र बिगड़े। याद कीजिये कोरोना काल में दिल्ली के निज़ामुद्दीन स्थित मरकज़ में मिले जमाअत के लोगों को इन्होंने ‘कोरोना जिहाद’ फैलाने वालों के नाम से प्रचारित किया था। मुंबई में कोरोना के समय जब भीड़ रेलवे स्टेशन पर इकठ्ठा हुई तो इन्हीं में से एक ऐंकर की नज़र उस वीज़ुअल पर पड़ी जिसमें भीड़ के पीछे एक मस्जिद नज़र आई। बस, फिर क्या था। ऐंकर गला फाड़ कर चीख़ने लगा कि इस भीड़ का मस्जिद से क्या कनेक्शन है? अभी गत 2 जून को उड़ीसा में बालासोर जिले में बहनगा बाजार रेलवे स्टेशन के निकट तीन ट्रेन्स एक साथ हादसे का शिकार हो गई। वहां भी इन्हीं दलाल व नफ़रतबाज़ टी वी ऐंकर्स ने बोलना शुरू किया कि दुर्घटनास्थल के पास एक मस्जिद है। परन्तु बाद में पता चला की वह मस्जिद नहीं बल्कि मंदिर था। इसी तरह अभी कर्नाटक में ‘तिहाड़ी’ ने साम्प्रदायिक नफ़रत के एजेंडे से लबरेज़ एक भ्रामक ख़बर चला दी। परन्तु इसबार उसे अपना यह साम्प्रदायिक पूर्वाग्रह भारी पड़ा। उसके विरुद्ध कर्नाटक में प्राथमिकी दर्ज हो गयी है। मामला इस समय कर्नाटक उच्च न्यायलय पहुँच चूका है। उसे जल्द ही गिरफ़्तार भी किया जा सकता है।

न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन (एनबीडीए) जिसमें अधिकांश गोदी मीडिया से जुड़े संपादक स्तर के लोग ही शामिल हैं, कुछ टी वी न्यूज़ ऐंकर्स तथा भारतीय जनता पार्टी ने 14 टीवी ऐंकर्स के बहिष्कार के ‘इंडिया’ गठबंधन के फ़ैसले की आलोचना की है। एनबीडीए के अध्यक्ष अविनाश पांडेय ने तो इस फ़ैसले को मीडिया का गला घोंटने जैसा बताया है। उन्होंने कहा कि जो गठबंधन (इंडिया) लोकतांत्रिक मूल्यों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करता है वो इसे ख़त्म करता नज़र आ रहा है। एनबीडीए ने कहा है कि संगठन को इंडिया गठबंधन के इस फ़ैसले से काफ़ी पीड़ा हुई है और वो इसे लेकर चिंतित है। उसने कहा है कि इस फ़ैसले ने एक ख़तरनाक मिसाल पेश की है। हालांकि चुनिंदा पत्रकारों का बहिष्कार ख़ुद भारतीय जनता पार्टी भी करती रही है। कई वर्षों तक भाजपा ने रवीश कुमार के रहते एन डी टी वी में अपना प्रवक्ता नहीं भेजा। अब ख़बर है कि ए बी पी न्यूज़ में संदीप चौधरी के तीखे सवालों से घबराकर भाजपा ने उनके शो में भी अपना प्रवक्ता भेजना बंद कर दिया है। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गाठ दस वर्षों में एक भी संवाददाता सम्मलेन नहीं बुलाया। जहां तक विपक्षी गठबंधन इंडिया द्वारा सत्ता के चाटुकार ऐंकर्स व चैनल्स के बहिष्कार का सवाल है तो यह पूरा देश व दुनिया के सामने है कि किस तरह मुख्यधारा के तमाम मीडिया चैनल 2013 से ही अपना पत्रकारिता धर्म भूलकर भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी की भूमिका अदा कर रहे हैं। वे भाजपा के गुप्त सांप्रदायिक एजेंडे को बेरोकटोक प्रचारित प्रसारित करते हैं।

2014 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद तो इन गोदी मीडिया चैनल्स ने बेशर्मी व बेहयाई की सभी हदें पार कर दी हैं। यह गत दस सालों से सरकार से मंहगाई, बेरोज़गारी, तेल गैस के बढ़ते मूल्य, डॉलर के मुक़ाबले भारतीय मुद्रा का लगातार गिरते जाना, मणिपुर, मानवाधिकार, चीनी घुसपैठ, भ्रष्टाचार जैसे अनेक सवाल सत्ता व सरकार से पूछने के बजाए कभी कांग्रेस कभी राहुल गाँधी तो कभी विपक्ष से ही सवाल पूछते रहते हैं। पूरा विश्व सत्ता की की जा रही इनकी दलाली व चाटुकारिता को देख कर सतब्ध है। भारतीय मीडिया का इतना अपमान देश के इतिहास में इसके पहले कभी नहीं हुआ। ऐसे ही ज़मीर फ़रोश स्वयंभू पत्रकारों की वजह से मुख्य धारा के भारतीय मीडिया को गोदी मीडिया,दलाल मीडिया,चाटुकार मीडिया,चरण चुम्बक,बिकाऊ मीडिया,भांड मीडिया और न जाने कैसे कैसे नामों से नवाज़ा जा चुका है। आज हालत यह है कि यह सत्ता परस्त व समाज विभाजक बदनाम शुदा टी वी ऐंकर्स जनता के मध्य रिपोर्टिंग करने के लिये नहीं जा सकते। अगर कहीं गये भी हैं तो इन्हें जनता के आक्रोश का सामना करना पड़ा है। इनमें से कई तो सरकारी सुरक्षा के कवच में रहा करते हैं।

विषवमन कर देश में दंगाई पैदा करने वाले ज़मीरफ़रोशों का बहिष्कार निश्चित रूप से ज़रूरी तो था ही परन्तु इनके साथ ही उनके विरुद्ध भी सख़्त कार्रवाई की ज़रुरत है जो पर्दे के पीछे से इन ऐंकर्स को संचालित करते हैं यानी इनके आक़ाओं व उनके समस्त चैनल्स को भी प्रतिबंधित किया जाना चाहिये। क्योंकि ऐसे अवसरवादी व शुद्ध व्यवसायिक मानसिकता रखने वाले मीडिया घरानों की वजह से ही आज भारतीय मीडिया घोर संक्रमणकाल के दौर से गुज़र रहा है।

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