Monday, October 20, 2025
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फरीदाबाद : ब्रेडी नृत्य से पर्यटकों का मन मोह रहे बुंदेली आंचल कलाकार

-सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय शिल्प मेले में देखने को मिल रहा लोक कला का अदभुत संगम

फरीदाबाद, (वेब वार्ता)। 38 वें सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय शिल्प मेले में बुंदेली आंचल का प्रसिद्ध लोक नृत्य ‘ब्रेडी’ यहां आने वाले पर्यटकों के दिलों पर छा गया है। परंपरा, भक्ति और उत्साह का अनूठा संगम प्रस्तुत करता यह नृत्य, दर्शकों को मंत्रमुग्ध करने में सफल साबित हो रहा है। श्रीकृष्ण की ग्वालों के साथ मनमोहक लीलाओं को जीवंत करता यह नृत्य, लोकसंस्कृति की समृद्धि का प्रतीक बन रहा है। ब्रेडी नृत्य बुंदेलखंड की समृद्ध लोकनृत्य परंपरा का अभिन्न अंग है। इसे विशेष रूप से धार्मिक व सांस्कृतिक आयोजनों में प्रस्तुत किया जाता है। इसमें नर्तक कृष्ण रूप धारण कर अपने ग्वाल-बालों के साथ नृत्य करते हैं, जिससे दर्शकों को भगवान श्रीकृष्ण के बाल्यकाल की झलक देखने को मिलती है। सूरजकुंड मेले में यह नृत्य देखकर लोगों ने तालियों से कलाकारों का उत्साहवर्धन किया। इस प्रस्तुति को सूरजकुंड मेले के मंच पर प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान करने के लिए इस लोक कलाकार समूह ने हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और पर्यटन मंत्री अरविंद शर्मा का हृदय से आभार व्यक्त किया। कलाकारों का कहना है कि सरकार द्वारा दिए गए इस मंच ने उनकी कला को नई पहचान दी है और लोकसंस्कृति के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। प्रस्तुति के दौरान जैसे ही कलाकारों ने श्रीकृष्ण की ग्वालों संग लीलाएं प्रस्तुत कीं, वैसे ही दर्शकों ने भाव-विभोर होकर तालियों की गडग़ड़ाहट से उनका स्वागत किया। कई दर्शकों ने इस अद्भुत लोककला की प्रशंसा करते हुए इसे भारतीय संस्कृति का गौरव बताया। इस प्रस्तुति के माध्यम से बुंदेली संस्कृति को एक अंतरराष्ट्रीय मंच मिला। लोक कलाकारों का कहना है कि इस प्रकार के आयोजनों से हमारी परंपराएं और समृद्ध होंगी, जिससे आने वाली पीढिय़ां भी अपनी जड़ों से जुड़ी रहेंगी।सूरजकुंड मेले में ऐसी सांस्कृतिक प्रस्तुतियों से भारत की विविधता और कला की अनूठी छटा देखने को मिलती है। बुंदेलखंड के ब्रेडी नृत्य की प्रस्तुति न केवल मनोरंजन का माध्यम बनी, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपरा को भी जीवंत करती है। इस बार थीम स्टेट के रूप में मध्यप्रदेश और ओडिशा राज्य हैं। दोनों राज्यों सहित अन्य राज्यों के कलाकार, बुनकर और शिल्पकार अपनी कलाओं के माध्यम से पर्यटकों से रूबरू हो रहे हैं।

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