नई दिल्ली, 20 दिसंबर (वेब वार्ता)। दिल्ली के मंडी हाउस स्थित एल टी जी सभागार में गुरुवार, 19 दिसंबर को ‘अंधा युग’ नाटक का बेहतरीन मंचन किया गया। लिटिल थियेटर ग्रुप (LTG) रिपर्टरी के छात्रों द्वारा प्रस्तुत इस नाटक ने दर्शकों को एक बार फिर महाभारत के युद्धोत्तर विनाश और नैतिक पतन के दुष्चक्र से रूबरू कराया।
धर्मवीर भारती द्वारा लिखित इस क्लासिक नाटक में महाभारत के अंतिम दिन की कहानी को दिखाया गया है। नाटक का निर्देशन लिटिल थियेटर ग्रुप (LTG) रिपर्टरी के निर्देशक रजनीश गौतम ने किया। परितोष नाटक में सह- निर्देशक के तौर पर कार्य कर रहे थे। मंच पर पात्रों के संवाद, गहरी भावनाएं, और प्रकाश-ध्वनि के संयोजन ने पूरे सभागार को रोमांचित कर दिया।
नाटक में अंधेरे युग का प्रतीकात्मक चित्रण किया गया। ‘अंधा युग’ का कथानक महाभारत युद्ध के बाद के एक दिन पर आधारित है, जहां विनाश और अंधकार चारों ओर फैला हुआ है। युद्ध के बाद पांडव और कौरव दोनों ही पक्ष अपनी मानवता खो चुके हैं। धृतराष्ट्र, गांधारी और अश्वत्थामा जैसे पात्रों के माध्यम से नैतिकता और आदर्शों के टूटने का चित्रण हुआ।
LTG के युवा कलाकारों ने अपने अभिनय से पात्रों में जान डाल दी। अश्वत्थामा की भूमिका में शुभम पंचवाल का क्रोध और निराशा को व्यक्त करना दर्शकों को अंदर तक झकझोर गया। वहीं, धृतराष्ट्र के किरदार में मुकुल शर्मा ने अंधेपन के प्रतीक के माध्यम से सत्ता की लाचारी को प्रभावशाली ढंग से उभारा। गांधारी की भूमिका में प्रियंका ने शोक और आक्रोश के द्वंद्व को सशक्त तरीके से पेश किया।
नाटक में मंच-सज्जा और संगीत का अद्भुत तालमेल था। प्रकाश व्यवस्था ने पात्रों की मनोदशा को गहराई से दर्शाया। साथ ही, पार्श्व संगीत में ढोल, नगाड़ा, शंख और वीणा की ध्वनियों का प्रयोग नाटक की गंभीरता को बढ़ाने में सहायक रहा। नाटक में संगीत का कार्यभार देवांशी और आभास ने बहुत कुशलता से संभाला।
‘अंधा युग’ केवल महाभारत की कहानी नहीं है, बल्कि यह हर उस युग की बात करता है जहां नैतिकता और सत्य का पतन होता है। आज के समय में भी यह नाटक हमें सचेत करता है कि युद्ध और हिंसा का अंधकार सभ्य समाज को किस तरह अंधेरे में धकेल देता है।
LTG के इस प्रदर्शन की खूब सराहना हुई। दर्शकों में कई थिएटर प्रेमी, साहित्यकार और कला के विद्यार्थी शामिल थे। नाटक के अंत में लंबे समय तक तालियों की गूंज सुनाई दी। अंधा युग’ की यह प्रस्तुति न केवल कला प्रेमियों के लिए एक आनंददायक अनुभव था, बल्कि एक गहरी सोच और आत्ममंथन की प्रेरणा भी।