नई दिल्ली (वेब वार्ता)। भारत और पड़ोसी देश चीन के बीच एक और नया विवाद खड़ा होता दिख रहा है। चीन ने हाल ही में रेयर अर्थ मेटल्स और परमानेंट मैग्नेट्स की सप्लाई पर और अधिक सख्त नियंत्रण लगा दिए हैं, जिससे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित हो रही है। भारत अपनी जरूरतों का लगभग 65 प्रतिशत रेयर अर्थ मेटल चीन से आयात करता है, जिससे इस निर्भरता ने राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक हितों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। लेकिन इसी बीच एक सकारात्मक खबर सामने आई है: भारतीय कंपनियां इस समस्या के समाधान के लिए रूस में संभावनाएं तलाशने लगी हैं।
ईटी की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत और रूस के बीच रेयर अर्थ मेटल्स की आपूर्ति और प्रोसेसिंग को लेकर शुरुआती चरण की बातचीत चल रही है। केंद्र सरकार आत्मनिर्भरता को तेजी से बढ़ावा देने के लिए विदेशी आयात के वैकल्पिक स्रोत खोज रही है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत ने लगभग 2,270 टन रेयर अर्थ मेटल विदेशों से आयात किया था, जिसमें अधिकांश हिस्सा चीन का था।
कौन सी कंपनी करेगी रूस से बात?
केंद्र सरकार ने रूस से बातचीत के लिए लोहुम (Lohum) और मिडवेस्ट (Midwest) कंपनियों को चुना है। ये दोनों कंपनियां रूस की खनिज कंपनियों के साथ मिलकर भारत के लिए नई संभावनाएं तलाशेंगी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत सरकार ने काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR), इंडियन स्कूल ऑफ माइन्स (धनबाद) और इंस्टीट्यूट ऑफ मिनरल्स एंड मटेरियल्स टेक्नोलॉजी (भुवनेश्वर) को रूस की कंपनियों की तकनीकों को समझने और पूरे प्रोसेसिंग प्रक्रिया की जानकारी इकट्ठा करने का निर्देश दिया है। रूस की ओर से इस साझेदारी में Nornickel और Rosatom कंपनियां प्रमुख भूमिका निभा सकती हैं, जो रूस की सरकारी कंपनियां हैं।
लोहुम के फाउंडर और सीईओ राजत वर्मा ने कहा, “हम लगातार नए कच्चे माल संसाधनों और तकनीकी सहयोग की खोज कर रहे हैं, जो भारत की मैग्नेट उत्पादन क्षमताओं को आगे बढ़ा सकें।” Nornickel ने बाजार अफवाहों पर टिप्पणी करने से इनकार किया है, जबकि Rosatom और Midwest से संपर्क का कोई जवाब नहीं आया।
भारत और रूस बन सकते हैं नए खिलाड़ी
चीन के पास वर्तमान में वैश्विक बाजार का लगभग 90 प्रतिशत रेयर अर्थ प्रोसेसिंग का नियंत्रण है, यानी लगभग पूरी दुनिया चीन पर निर्भर है। लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, रूस ने पिछले कुछ वर्षों में रेयर अर्थ प्रोसेसिंग की तकनीकों पर काफी काम किया है। रूस की योजना है कि भारत के साथ मिलकर इन तकनीकों को व्यावसायिक रूप दिया जाए। यदि यह संभव हुआ, तो भारत और रूस रेयर अर्थ प्रोसेसिंग की दुनिया में दो नए प्रमुख नाम बन सकते हैं। इससे न केवल चीन पर निर्भरता कम होगी, बल्कि निर्यात के नए अवसर भी खुलेंगे।
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 2025 में ‘न्यू मटेरियल्स एंड केमिस्ट्री’ नेशनल प्रोजेक्ट लॉन्च किया है, जिसका उद्देश्य रेयर अर्थ उत्पादन को बढ़ाना है। Rosatom, जो रूस का न्यूक्लियर पावर मोनोपॉली है, रेयर अर्थ विकास के लिए जिम्मेदार है।
भारत की नई योजना: 7,350 करोड़ की स्कीम
कुछ दिनों पहले, भारत सरकार ने रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट (REPM) प्रोडक्शन के लिए 7,350 करोड़ रुपये की नई योजना शुरू करने की घोषणा की है। इसका मुख्य उद्देश्य भारत में रेयर अर्थ उत्पादन को बढ़ाना और विदेशी आयात पर निर्भरता कम करना है। यह 7 वर्षीय योजना 5 एकीकृत REPM मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स स्थापित करेगी, प्रत्येक की क्षमता 1,200 टन प्रति वर्ष। योजना में सेल्स-लिंक्ड इंसेंटिव और कैपिटल सब्सिडी शामिल हैं, जो EV, इलेक्ट्रॉनिक्स और डिफेंस सेक्टरों को मजबूत करेंगी।
यह कदम राष्ट्रीय क्रिटिकल मिनरल्स मिशन 2025 का हिस्सा है, जो विदेशी साझेदारियों के साथ घरेलू क्षमता बढ़ाने पर फोकस करता है। विशेषज्ञों का मानना है कि रूस के साथ साझेदारी से भारत अपनी रणनीतिक कमजोरी को ताकत में बदल सकता है।