नई दिल्ली, (वेब वार्ता)। ब्रिटेन ने रूस के खिलाफ अपनी आर्थिक कार्रवाई को और सख्त करते हुए एक बड़ा कदम उठाया है। यूक्रेन युद्ध में रूस को आर्थिक समर्थन रोकने के लिए नए प्रतिबंध लगाए गए हैं, जिनमें भारत की प्रमुख ऊर्जा कंपनी नायरा एनर्जी और चीन की कुछ तेल कंपनियां भी शामिल हैं। यह फैसला ब्रिटिश प्रधानमंत्री के हालिया भारत दौरे के तुरंत बाद आया है, जिससे द्विपक्षीय संबंधों पर सवाल उठने लगे हैं।
नायरा एनर्जी पर प्रतिबंध: रूसी तेल खरीद का आरोप
भारत की नायरा एनर्जी एक प्रमुख निजी तेल रिफाइनरी कंपनी है, जिसने 2024 में रूस से 100 मिलियन बैरल कच्चा तेल खरीदा था, जिसकी कीमत लगभग 5 बिलियन डॉलर (41,000 करोड़ रुपये) थी। ब्रिटिश सरकार ने इसे रूस की यूक्रेन युद्ध फंडिंग का स्रोत बताया है। ब्रिटिश चांसलर रेचेल रीव्स ने कहा, “हम उन सभी कंपनियों पर दबाव बनाएंगे जो रूस की मदद कर रही हैं, चाहे वे भारत या चीन में हों। रूस के तेल के लिए वैश्विक बाजार में कोई जगह नहीं है।”
रूस की तेल कंपनियों और टैंकरों पर भी कार्रवाई
ब्रिटेन ने रूस की दो बड़ी तेल कंपनियों और उसके ‘शैडो फ्लीट’ (छाया बेड़ा) पर भी प्रतिबंध लगाए हैं। शैडो फ्लीट के 44 जहाज समुद्री निगरानी से बचते हुए रूसी तेल वैश्विक बाजारों तक पहुंचाते हैं। इन प्रतिबंधों से बीमा, भुगतान, और बंदरगाह सेवाओं पर असर पड़ेगा, जिससे रूस की तेल आपूर्ति प्रभावित होगी।
वैश्विक तेल बाजार पर असर
इस कदम से वैश्विक तेल बाजार में अस्थिरता आ सकती है। रूस की सप्लाई पर रोक से तेल की कीमतों में उछाल आ सकता है, लेकिन रूस डिस्काउंट पर तेल बेचकर ग्राहकों को बनाए रख सकता है। भारत और चीन जैसे देशों की कंपनियों पर प्रतिबंध से उनके आयात प्रभावित होंगे।
ब्रिटेन की नीति और भारत पर प्रभाव
ब्रिटिश सरकार का उद्देश्य रूस की आर्थिक क्षमता को कमजोर करना है। हालांकि, यह भारत के साथ संबंधों पर सवाल उठा रहा है, क्योंकि नायरा एनर्जी भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करती है। ब्रिटिश सरकार ने कहा कि यह कदम रूस के सहयोगियों को निशाना बनाने का है, न कि द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित करने का।
भारत-अमेरिका तेल व्यापार में नया अध्याय
इस बीच, भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंध मजबूत हो रहे हैं। भारत ने अमेरिकी तेल और गैस की खरीद बढ़ाने का संकेत दिया है। कुछ वर्ष पहले भारत अमेरिका से 25 बिलियन डॉलर का तेल आयात करता था, जो अब 12-13 बिलियन डॉलर है। यह कदम ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करेगा।
निष्कर्ष
ब्रिटेन का यह फैसला रूस के खिलाफ वैश्विक दबाव को बढ़ाता है, लेकिन भारत-चीन की कंपनियों को निशाना बनाना विवादास्पद है। वैश्विक तेल बाजार में बदलाव की आशंका है। भारत-अमेरिका तेल व्यापार नई संभावनाएं खोलेगा।