हरदोई, लक्ष्मीकांत पाठक (वेब वार्ता)। हरदोई मुख्य डाकघर, जो कभी भरोसे और ईमानदारी का प्रतीक था, अब भ्रष्टाचार और दलाली के जाल में फंस गया है। बिना एजेंट के कोई काम कराना लगभग असंभव हो गया है। कर्मचारियों की मनमानी और अधिकारियों की उदासीनता से आम जनता को घंटों लाइन में खड़ा होना पड़ता है। नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट (एनएससी) से लेकर पासबुक निकालने तक, एजेंटों का कब्जा हो गया है। पोस्टमास्टर का जवाब है, “अव्यवस्था नहीं, जनता खुद जिम्मेदार।” यह स्थिति सरकारी योजनाओं पर जनता का भरोसा तोड़ रही है।
1000 की एनएससी पर 1200 की वसूली: दलाली का खेल
मुख्य डाकघर में एनएससी खरीदने पर दलाल 1000 रुपये की जगह 1200 रुपये वसूल रहे हैं। एक उपभोक्ता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “मैंने सुबह 10 बजे फॉर्म जमा किया, लेकिन शाम तक काम नहीं हुआ। अगले दिन एजेंट को 1200 रुपये दिए तो 10 मिनट में सर्टिफिकेट मिल गया।” यह वसूली खुलेआम हो रही है, और काउंटर पर कर्मचारी इसकी अनदेखी करते हैं।
आरडी (रिकरिंग डिपॉजिट) और पासबुक निकालने में भी यही समस्या है। बिना एजेंट के घंटों इंतजार, जबकि एजेंट के जरिए तुरंत काम हो जाता है। दलाल डाकघर परिसर में खुलकर घूमते हैं और फॉर्म भरते, दस्तावेज जमा करते हैं।
एक काउंटर, लंबी लाइनें: बुजुर्गों की पीड़ा

डाकघर में केवल एक या दो काउंटर खुलने से स्थिति विकट है। सुबह से महिलाओं, बुजुर्गों, और विकलांगों की लंबी कतारें लग जाती हैं। धक्का-मुक्की और तनाव आम है। एक बुजुर्ग ने कहा, “हम जैसे गरीबों को एजेंट की फीस कैसे देनी? लेकिन बिना उसके काम नहीं होता।”
बाबू-एजेंट की मिलीभगत: अधिकारी नदारद
एजेंटों और कर्मचारियों की सांठगांठ साफ दिखती है। एजेंट काउंटर पर सीधे पहुंचते हैं, जबकि आम जनता को “सिस्टम डाउन” या “कल आना” कहकर टाल दिया जाता है। पोस्टमास्टर विमल ने कहा, “बचत खातों के दो काउंटर कार्यरत हैं। यदि लोग खुद एजेंटों को पैसे देते हैं, तो डाक विभाग की क्या गलती?” उन्होंने भीड़ का कारण कर्मचारियों की छुट्टी बताया।
डाक अधीक्षक ऊपरी मंजिल पर “नौकरी निभाने” में व्यस्त रहते हैं, जबकि नीचे दलाली का बाजार गर्म है। जनता का कहना है, “अधिकारी आंखें मूंदे हैं।”
जनता का भरोसा टूट रहा: योजनाओं का सिरदर्द
सरकार डाक बचत योजनाओं को आर्थिक सशक्तिकरण का साधन बताती है, लेकिन हरदोई में ये सिरदर्द बन गई हैं। एनएससी, आरडी, और अन्य योजनाओं में पारदर्शिता गायब है। एक महिला ने कहा, “हम गरीब हैं, लेकिन दलाली से मजबूर।” जनता का भरोसा टूट रहा है।
जनता के सवाल
क्या योजनाओं का लाभ लेने के लिए लाइन में खड़े होना अपराध है?
कब सुधरेगा डाकघर का सिस्टम?
एजेंटों की दलाली कब रुकेगी?
निष्कर्ष
हरदोई मुख्य डाकघर की अव्यवस्था सरकारी योजनाओं पर सवाल उठाती है। जनता वोट बैंक नहीं, अधिकारों की हकदार है। प्रशासन से अपेक्षा है कि सख्त कार्रवाई कर पारदर्शिता लाए।