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उत्तर प्रदेश परिवहन निगम में अनुभवी ड्राइवरों की कमी: वीआईपी कारों पर नियमित चालक, बसों की कमान नौसिखियों के हाथ—हादसों का बढ़ता खतरा

लखनऊ, अजय कुमार (वेब वार्ता)। उत्तर प्रदेश राज्य रोडवेज परिवहन निगम (UPSRTC) में अनुभवी चालकों को बसों से हटाकर वीआईपी वाहनों और मुख्यालय की ड्यूटी पर लगाने से बसों की स्टीयरिंग नौसिखिए संविदा ड्राइवरों के हाथों में आ गई है। इससे सड़क हादसों की आशंका बढ़ गई है। हाल ही में काकोरी में हुए बस हादसे ने इस समस्या को उजागर कर दिया है, जहां संविदा चालक की लापरवाही से बस दुर्घटनाग्रस्त हो गई। निगम के पास एक हजार से अधिक बसों का बेड़ा है, लेकिन अनुभवी चालकों की संख्या घटने से यात्री सुरक्षा पर सवाल खड़े हो गए हैं। अधिकारियों का दावा है कि संविदा चालकों की भर्ती और प्रशिक्षण प्रक्रिया सख्त है, लेकिन हादसे इसकी पोल खोल रहे हैं।

काकोरी बस हादसा: संविदा चालक की लापरवाही से मचा हड़कंप

हरदोई से लखनऊ आ रही एक रोडवेज बस बृहस्पतिवार को काकोरी क्षेत्र में हादसे का शिकार हो गई। परिवहन आयुक्त बीएन सिंह के निर्देश पर उप परिवहन आयुक्त राधेश्याम की अध्यक्षता में गठित जांच टीम ने पाया कि बस को चला रहे संविदा चालक ने तय गति सीमा से अधिक स्पीड में वाहन दौड़ाया था। इस लापरवाही के कारण हादसा हुआ और उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया। क्षेत्रीय प्रबंधक आरके त्रिपाठी ने सहायक क्षेत्रीय प्रबंधक को मुकदमा दर्ज कराने के निर्देश दिए थे, लेकिन थाने पहुंचने पर पता चला कि एफआईआर पहले ही दर्ज हो चुकी है। एक प्रकरण में दो एफआईआर नहीं की जा सकतीं, इसलिए कार्रवाई रुक गई।

इस हादसे ने निगम मुख्यालय में संविदा चालकों की कार्यप्रणाली पर चर्चा तेज कर दी है। अधिकारियों का कहना है कि नियमित चालक दुर्घटनाओं से बचने के लिए अधिक सतर्क रहते हैं, जबकि संविदा चालक अक्सर लापरवाही बरतते हैं। इसका एक प्रमुख कारण वेतन का अंतर है—पुराने संविदा चालकों को 18 हजार रुपये तक वेतन मिलता है, जबकि नए चालकों को मात्र 15 हजार रुपये के आसपास। लखनऊ परिक्षेत्र में निगम की करीब 1,000 बसें हैं, जिनमें लगभग 800 नियमित और 1,500 संविदा चालक तैनात हैं। लेकिन 250 से अधिक नियमित चालक उम्र या स्वास्थ्य कारणों से मुख्यालय में चौकीदारी, डीजल भरने जैसे कार्यों में लगाए गए हैं, जिससे बसों के लिए अनुभवी चालकों की कमी हो गई है।

अनुभवी चालक मुख्यालय में, बसें नौसिखियों के हवाले

निगम के नियमित चालक, जो वर्षों तक बसें चलाकर अनुभव हासिल कर चुके हैं, अब मुख्यालय में ड्यूटी कर रहे हैं। इनमें से कई अफसरों की वीआईपी गाड़ियां, प्रवर्तन टीम के इंटरसेप्टर वाहन चला रहे हैं। बसों की जिम्मेदारी संविदा चालकों को सौंप दी गई है, जो नौसिखिए होने के कारण जोखिम बढ़ा रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, अनुभवी चालकों को वीआईपी ड्यूटी पर लगाने से बस संचालन में कमी आ रही है। क्षेत्रीय प्रबंधक आरके त्रिपाठी ने कहा, “संविदा चालक भी गंभीरता से बसें चलाते हैं और उनकी कार्यप्रणाली पर सवाल नहीं उठाए जा सकते। कई नियमित चालक मुख्यालय में वीआईपी कार और प्रवर्तन दल की गाड़ियां चला रहे हैं।”

हाल के वर्षों में उत्तर प्रदेश में रोडवेज बस हादसों की संख्या में वृद्धि हुई है। एनएचएआई के आंकड़ों के अनुसार, 2024 में राज्य में 5,000 से अधिक सड़क दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें परिवहन निगम की बसें भी शामिल थीं। विशेषज्ञों का मानना है कि संविदा चालकों की बढ़ती संख्या और अनुभवी ड्राइवरों की कमी इसका प्रमुख कारण है।

संविदा चालकों की भर्ती प्रक्रिया: दावा सख्त, हकीकत पर सवाल

निगम अधिकारियों का दावा है कि संविदा चालकों की भर्ती प्रक्रिया पुख्ता है। भर्ती से पहले चालकों के पास भारी वाहन चलाने का कम से कम तीन वर्ष पुराना लाइसेंस होना अनिवार्य है। डिपो में वाहन चलवाकर उनकी क्षमता परखी जाती है। इसके बाद सात दिनों का प्रशिक्षण दिया जाता है, जिसमें यात्रियों से व्यवहार और बस संचालन की बारीकियां सिखाई जाती हैं। फिर कानपुर स्थित वर्कशॉप में दो दिनों का टेस्ट होता है। समय-समय पर काउंसलिंग और मेडिकल जांच भी कराई जाती है।

फिर भी, काकोरी हादसे ने इस प्रक्रिया पर सवाल खड़े कर दिए हैं। यात्रियों और पूर्व चालकों का कहना है कि प्रशिक्षण अपर्याप्त है और संविदा चालक दबाव में अधिक स्पीड से बसें चलाते हैं। निगम ने संविदा चालकों की संख्या बढ़ाने से पहले सुरक्षा मानकों पर पुनर्विचार की जरूरत है।

यात्री सुरक्षा के लिए क्या उपाय?

उत्तर प्रदेश परिवहन निगम को अनुभवी चालकों को बसों पर वापस लाने और संविदा चालकों के लिए सख्त निगरानी की आवश्यकता है। सरकार ने हाल ही में रोड सेफ्टी पॉलिसी के तहत स्पीड लिमिटर और ब्लैक बॉक्स अनिवार्य किया है, लेकिन अमल में कमी है। विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि संविदा चालकों के वेतन और सुविधाओं में सुधार हो, ताकि लापरवाही कम हो। निगम ने कहा है कि हादसों की जांच के बाद और सख्ती बरती जाएगी।

यह समस्या न केवल यात्री सुरक्षा को प्रभावित कर रही है, बल्कि निगम की छवि को भी नुकसान पहुंचा रही है। क्या परिवहन विभाग समय रहते सुधार करेगा? अधिक अपडेट के लिए बने रहें।

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