लखनऊ, अजय कुमार (वेब वार्ता)। हिंदी दिवस के अवसर पर भाषा और साहित्य की महत्ता को रेखांकित करने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। इसी कड़ी में लखनऊ के सरोजनी नगर स्थित उत्तर प्रदेश स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ फोरेंसिक साइंसेज में हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर एक भव्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में प्रसिद्ध कवियों और साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं को भावविभोर कर दिया, विशेष रूप से वरिष्ठ आईएएस अधिकारी डॉ. हरिओम की मशहूर गजल “मैं तेरे प्यार का मारा हुआ हूँ” ने सभी को मंत्रमुग्ध किया।
कार्यक्रम का शुभारंभ और मुख्य अतिथि का संबोधन
उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान और लोकायतन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस कवि सम्मेलन का शुभारंभ सरस्वती प्रतिमा पर माल्यार्पण और दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। संस्थान के संस्थापक निदेशक डॉ. जी.के. गोस्वामी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। उन्होंने आमंत्रित कवियों को अंगवस्त्रम और स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। डॉ. गोस्वामी ने अपने संबोधन में साहित्य को समाज का दर्पण बताते हुए कहा कि हर व्यक्ति का साहित्य और कला से जुड़ना आवश्यक है। उन्होंने हिंदी भाषा की समृद्धि पर जोर देते हुए कहा कि ऐसे कार्यक्रम हिंदी को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
डॉ. हरिओम की गजल ने बांधा समां
कार्यक्रम की सबसे आकर्षक प्रस्तुति रही विशिष्ट अतिथि डॉ. हरिओम की। वरिष्ठ आईएएस अधिकारी होने के साथ-साथ एक कुशल गजलकार के रूप में विख्यात डॉ. हरिओम ने अपनी प्रसिद्ध गजल “मैं तेरे प्यार का मारा हुआ हूँ” से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनकी गजल में प्रेम, दर्द और जीवन की गहराइयों को छूने वाली भावनाएं थीं, जो श्रोताओं के दिलों को छू गईं। डॉ. हरिओम ने हिंदी साहित्य में गजल की महत्वपूर्ण भूमिका पर भी प्रकाश डाला और युवाओं को हिंदी भाषा से जुड़ने के लिए प्रेरित किया।
डॉ. मालविका हरिओम का संदेश: हिंदी को विश्व पटल पर प्रतिष्ठित करें
लोकायतन की अध्यक्षा डॉ. मालविका हरिओम ने कार्यक्रम में हिंदी भाषा को वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित करने का महत्वपूर्ण संदेश दिया। उन्होंने कहा कि हिंदी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत है। डॉ. मालविका ने युवा पीढ़ी को हिंदी साहित्य पढ़ने और लिखने के लिए प्रोत्साहित किया तथा वैश्विक मंचों पर हिंदी को मजबूत बनाने के उपायों पर चर्चा की। उनका संदेश हिंदी दिवस के उद्देश्य से पूरी तरह मेल खाता था।
अन्य कवियों की प्रस्तुतियां: हास्य, प्रेम और व्यंग्य का संगम
कार्यक्रम में विभिन्न कवियों ने अपनी रचनाओं से महफिल को रंगीन बनाया। हास्य कवि सर्वेश अस्थाना ने अपनी चुटीली और व्यंग्यात्मक रचनाओं से श्रोताओं को खूब हंसाया। उनकी कविताएं सामाजिक मुद्दों पर कटाक्ष करती हुईं थीं, जो सभी को सोचने पर मजबूर कर गईं। बदायूं से आईं कवियित्री डॉ. सोनरूपा विशाल ने प्रेम और मानवता पर आधारित कविताएं सुनाईं, जो भावुकता से भरी हुईं थीं।
बाराबंकी के कवि प्रियांशु गजेन्द्र ने जीवन के उतार-चढ़ाव को दर्शाती कविताएं प्रस्तुत कीं, जो प्रेरणादायक थीं। जनसंपर्क अधिकारी संतोष ‘कौशिल’ ने पारिवारिक मूल्यों और संबंधों पर अपनी रचनाएं सुनाईं। डॉ. पंकज प्रसून ने व्यंग्यात्मक कविता से आधुनिक समय के बदलते स्वरूप पर कटाक्ष किया, जो समसामयिक मुद्दों को छूती हुई थी।
इसके अलावा, शाहबाज तालिब, कुलदीप कलश और युवा कवि अभिश्रेष्ठ तिवारी ने भी अपनी कविताओं से कार्यक्रम को जीवंत बनाए रखा। इन युवा कवियों की रचनाएं ताजगी और नई सोच से भरी हुईं थीं।
कार्यक्रम का संचालन और समापन
कार्यक्रम का कुशल संचालन जनसंपर्क अधिकारी संतोष ‘कौशिल’ ने किया, जिन्होंने कवियों की प्रस्तुतियों को सुचारू रूप से जोड़ा। समापन पर उप निदेशक चिरंजीब मुखर्जी ने सभी अतिथियों, कवियों और श्रोताओं का आभार ज्ञापित किया। पूरा समारोह श्रोताओं की तालियों और उत्साहपूर्ण वातावरण में संपन्न हुआ, जो हिंदी दिवस के स्वागत का जीवंत उदाहरण बन गया।
हिंदी दिवस का महत्व और ऐसे कार्यक्रमों की आवश्यकता
हिंदी दिवस हर वर्ष 14 सितंबर को मनाया जाता है, जो हिंदी भाषा की महत्वपूर्णता को रेखांकित करता है। ऐसे कवि सम्मेलनों से न केवल साहित्यकारों को मंच मिलता है, बल्कि आम जनमानस में हिंदी के प्रति जागरूकता भी बढ़ती है। लखनऊ जैसे सांस्कृतिक शहर में ऐसे आयोजन हिंदी साहित्य को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने में सहायक सिद्ध होते हैं। यदि आप भी हिंदी साहित्य से जुड़े हैं या ऐसे कार्यक्रमों में भाग लेना चाहते हैं, तो उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान और लोकायतन जैसे संगठनों से जुड़ें।
यह कार्यक्रम न केवल मनोरंजक था, बल्कि शिक्षाप्रद भी, जो हिंदी भाषा की शक्ति को दर्शाता है।