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उत्तर प्रदेश: प्रसवोत्तर मनोविकृति से पीड़ित महिला ने नवजात को फ्रिज में रखा, दादी ने समय रहते बचाया

मुरादाबाद, (वेब वार्ता)। उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में एक दिल दहला देने वाली घटना ने सभी को चौंका दिया! प्रसवोत्तर मनोविकृति (पोस्टपार्टम साइकोसिस) से जूझ रही 23 वर्षीय महिला ने अपने महज 15 दिन के नवजात बेटे को फ्रिज में रख दिया और सो गई। बच्चे की जान तब बची, जब उसकी दादी ने रोने की आवाज सुनकर उसे फ्रिज से निकाला। डॉक्टरों ने पुष्टि की है कि बच्चा पूरी तरह सुरक्षित है, लेकिन इस घटना ने मानसिक स्वास्थ्य और प्रसवोत्तर देखभाल पर सवाल उठा दिए हैं। क्या है यह रहस्यमयी बीमारी? आइए जानें!

घटना का चौंकाने वाला विवरण

5 सितंबर को हुई इस घटना में महिला ने बताया कि बच्चा लगातार रो रहा था, जिसके चलते उसने उसे फ्रिज में रख दिया। बच्चे के रोने की आवाज सुनकर दादी रसोई की ओर दौड़ीं और फ्रिज खोलते ही उनके होश उड़ गए। नवजात ठंड में कांप रहा था, लेकिन समय रहते उसे बाहर निकाल लिया गया।

परिवार ने तुरंत बच्चे को डॉक्टर के पास पहुंचाया, जहां जांच में बच्चा पूरी तरह स्वस्थ पाया गया। लेकिन यह घटना एक गंभीर सवाल छोड़ गई—क्या प्रसव के बाद महिलाओं की मानसिक स्थिति को नजरअंदाज कर रहे हैं हम?

अंधविश्वास से चिकित्सा तक का सफर

शुरुआत में परिवार को लगा कि महिला पर किसी ‘बुरी शक्ति’ का साया है। उन्होंने तांत्रिक और झाड़-फूंक का सहारा लिया, लेकिन हालत बिगड़ती गई। अंततः मुरादाबाद के मनोरोग एवं नशा मुक्ति केंद्र में ले जाया गया, जहां मनोचिकित्सक डॉ. कार्तिकेय गुप्ता ने निदान किया कि महिला प्रसवोत्तर मनोविकृति से पीड़ित है। वर्तमान में उसकी काउंसलिंग और दवा चिकित्सा चल रही है।

“प्रसवोत्तर मनोविकृति एक गंभीर लेकिन इलाज योग्य स्थिति है। अंधविश्वास में पड़ने के बजाय तुरंत मनोचिकित्सक से संपर्क करें।”
– डॉ. मेघना गुप्ता, मनोचिकित्सक

प्रसवोत्तर मनोविकृति: क्या है यह रहस्यमयी बीमारी?

डॉ. मेघना गुप्ता के अनुसार, प्रसवोत्तर अवसाद और मनोविकृति तब होती है, जब प्रसव के बाद महिलाओं को पर्याप्त भावनात्मक समर्थन नहीं मिलता। हार्मोनल बदलाव, नींद की कमी और तनाव इसके मुख्य कारण हैं। यह बीमारी 1,000 में से 1-2 महिलाओं को प्रभावित करती है और इसके लक्षणों में शामिल हैं:

  • मतिभ्रम और भ्रम

  • चरम चिड़चिड़ापन

  • नींद की कमी

  • असामान्य व्यवहार, जैसे बच्चे को नुकसान पहुंचाने की कोशिश

डॉ. गुप्ता ने चेतावनी दी कि ऐसी स्थिति में परिवार को तुरंत चिकित्सकीय मदद लेनी चाहिए, न कि अंधविश्वास का सहारा।

पहले भी सामने आए हैं ऐसे मामले

उत्तर प्रदेश में इससे पहले भी प्रसवोत्तर मनोविकृति के मामले सामने आ चुके हैं। मुरादाबाद में ही एक अन्य मामले में साइकोसिस से पीड़ित व्यक्ति ने अपने बच्चे को नुकसान पहुंचाया था। ये घटनाएं समाज में मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता की कमी को उजागर करती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि प्रसव के बाद महिलाओं को परिवार और समाज से विशेष देखभाल की जरूरत होती है।

मानसिक स्वास्थ्य पर जागरूकता की जरूरत

यह घटना एक बार फिर सवाल उठाती है कि क्या हम प्रसवोत्तर देखभाल को गंभीरता से ले रहे हैं? विशेषज्ञों का सुझाव है कि प्रसव के बाद महिलाओं की मानसिक स्थिति पर नजर रखने और समय रहते मदद उपलब्ध कराने से ऐसी घटनाओं को रोका जा सकता है।

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वेब वार्ता समाचार एजेंसी

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