Monday, October 20, 2025
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जब गद्दार हमदर्द का नकाब पहनकर आता है: अब्दुल हमीद

भिंड, मुकेश शर्मा (वेब वार्ता)। मौ ऑल इंडिया पत्रकार एकता संघ के मध्य प्रदेश प्रभारी, समाज सेवी अब्दुल हमीद ने कहा कि मुझे एक ऐसे विषय पर लिखने के लिए मजबूर होना पढ़ा जिसपर में लिखना नहीं चाहता था हमीद ने प्रेस को बताया कि दुनिया में ग़द्दारी करने वालों से हर कोई डरता है,लेकिन उससे भी खतरनाक और घिनौना किरदार उस इंसान का होता है जो ग़द्दारी करने के बाद भी नकाब ओढ़कर हमारे सामने हमदर्द बनकर आता है। ये वो लोग होते हैं जो पीठ में छुरा घोंपने के बाद सीने से लगने का दिखावा करते हैं। समाज, परिवार, देश या किसी संगठन में ऐसे लोगों की पहचान अगर समय रहते न हो, तो यह भीतर ही भीतर पूरा तंत्र खोखला कर देते हैं।
गद्दार और धोखेबाज़ में अंतर
ग़द्दार वो होता है जो स्पष्ट रूप से एक दिन अपना रंग दिखा देता है, उसका धोखा सामने आ जाता है और व्यक्ति उससे सतर्क हो जाता है। मगर जो ग़द्दारी के बाद भी हमदर्द बनने का ढोंग करता है, वो हर रोज़ एक नया धोखा देता है। उसकी मुस्कान के पीछे एक नया वार छुपा होता है ऐसे लोग न सिर्फ दूसरों को गुमराह करते हैं, बल्कि अपने आपको भी धोखा देते रहते हैं। चरित्र की सबसे घृणित परछाई इस तरह का इंसान अपने स्वार्थ और चालाकी से न केवल किसी एक व्यक्ति को, बल्कि पूरी व्यवस्था को गिरा सकता है। ये लोग हर जगह होते हैं —हर विभाग में और हर समाज में, सामाजिक संस्थाओं में, और यहां तक कि दोस्ती व रिश्तों में भी। इनकी बातों में मिठास होती है, पर इरादों में ज़हर। है। हामिद ने आगे कहा है कि ,ये वही होते हैं जो आग भी खुद लगाते हैं और पानी लेकर सबसे पहले दौड़ने का नाटक भी करते हैं ।
समाज पर पड़ता असर
जब कोई ग़द्दार हमदर्द बनकर बार-बार सामने आता है, तो लोगों का भरोसा इंसानियत से उठने लगता है। ऐसे लोग विश्वास के उस ताने-बाने को तोड़ते हैं, जिस पर समाज खड़ा होता है। सबसे बड़ा नुक़सान तब होता है जब असली हमदर्द भी शक के घेरे में आ जाते हैं। यह परिस्थिति समाज को संदेह, द्वेष और विघटन की ओर धकेल देती है।पहचानना क्यों ज़रूरी है?
इन छुपे हुए ग़द्दारों को पहचानना इसलिए आवश्यक है क्योंकि ये सामने नहीं आते, पर भीतर ही भीतर जहर घोलते रहते हैं। ये लोग अक्सर मासूम चेहरे, मीठी बातें और बनावटी वफ़ादारी के पीछे छिपे होते हैं। इनकी पहचान करने के लिए सतर्कता, विवेक और अनुभव ज़रूरी है। हर वो इंसान जो बार-बार अपने कर्मों से अलग दिखता हो, जो आपको बार-बार आपके सिद्धांतों से भटकाने की कोशिश करे वो आपके बीच का सबसे बड़ा ख़तरा है।इनसे निपटने का तरीका ध्यान रखें: भावनाओं में बहने की बजाय तथ्यों को प्राथमिकता दें।विश्लेषण करें: हर किसी की बातों और कामों का मूल्यांकन करें। दूरी बनाएं: जब किसी की ग़द्दारी एक बार उजागर हो जाए, तो उससे भावनात्मक लगाव रखना आत्मघाती सिद्ध हो सकता है।
सच का साथ दें: ऐसे लोगों को उजागर करना ही समाज की सेवा है।
जो ग़द्दार अपने धोखे को स्वीकार कर ले, वो फिर भी इंसानियत की कुछ हदें समझ सकता है। लेकिन जो धोखा देने के बाद भी आपके सामने दयालु, मासूम, हमदर्द और विश्वासी बनकर आता है — वो इंसान नहीं, छिपा हुआ शिकारी होता है। ऐसे लोग समाज की सबसे गंदी और खतरनाक परछाई होते हैं, जिनसे समय रहते सतर्क न हुआ जाए, तो वे हर अच्छाई को निगल सकते हैं।इन ग़द्दारों की मुस्कुराहट से ज़्यादा खतरनाक कोई ज़हर नहीं क्योंकि वो आपके विश्वास को मारता है, आपकी पीठ में नहीं, आपके दिल में।”हर इंसान को परखना ज़रूरी नहीं, लेकिन हर धोखे को पहचानना ज़रूरी है।

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