नई दिल्ली, (वेब वार्ता)। कर्नाटक के बहुचर्चित धर्मस्थल सामूहिक कब्र मामले में मीडिया प्रतिबंध हटाने के कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर अब भारत का उच्चतम न्यायालय शुक्रवार को सुनवाई करेगा। यह मामला धार्मिक प्रतिष्ठान, मीडिया की स्वतंत्रता और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर प्रसारित सामग्री की वैधता के त्रिकोण पर खड़ा एक संवेदनशील कानूनी प्रश्न बन गया है।
📌 मामला क्या है?
धर्मस्थल मंदिर से जुड़े एक कथित सामूहिक कब्र मामले की खबरें जब विभिन्न यूट्यूब चैनलों और मीडिया संस्थानों के माध्यम से प्रसारित होने लगीं, तो बेंगलुरु दीवानी अदालत ने इस मामले की रिपोर्टिंग पर रोक लगा दी थी।
हालाँकि, इस फैसले को कर्नाटक उच्च न्यायालय ने 1 अगस्त को रद्द कर दिया, जिससे मीडिया संस्थानों को इस मुद्दे पर रिपोर्टिंग की छूट मिल गई। उच्च न्यायालय ने कहा कि मीडिया की स्वतंत्रता को अनुचित सेंसरशिप के माध्यम से रोका नहीं जा सकता।
⚖️ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला
अब इस आदेश के खिलाफ याचिका धर्मस्थल मंदिर निकाय के सचिव हर्षेन्द्र कुमार डी. द्वारा भारत के सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल की गई है। उनका आरोप है कि करीब 8,000 यूट्यूब चैनल मंदिर और उसके प्रबंधन से जुड़े परिवार के खिलाफ अपमानजनक सामग्री प्रसारित कर रहे हैं।
प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई की बात कही है। कोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने मीडिया संस्थानों द्वारा फैलाई जा रही भ्रामक और अपमानजनक सूचनाओं पर चिंता जताई।
🧾 क्या था हाईकोर्ट का फैसला?
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के मीडिया प्रतिबंध संबंधी आदेश को “असमानुपातिक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ” बताया था।
उच्च न्यायालय का तर्क था कि जब तक यह साबित न हो जाए कि मीडिया जानबूझकर झूठ फैला रहा है या न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप कर रहा है, तब तक उसे रिपोर्टिंग से नहीं रोका जा सकता।
🧑⚖️ पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने जताई थी नाराज़गी
ध्यान देने योग्य है कि इससे पहले 23 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने ‘थर्ड आई’ नामक यूट्यूब चैनल द्वारा दायर याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि पहले याचिकाकर्ता को उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना चाहिए।
तब याचिकाकर्ता ने कर्नाटक की निचली अदालत द्वारा दिए गए उस अंतरिम आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें 390 मीडिया संस्थानों को लगभग 9,000 रिपोर्ट्स और वेब लिंक हटाने का निर्देश दिया गया था।
🔍 मामला क्यों है संवेदनशील?
धर्मस्थल मामला न केवल एक धार्मिक स्थल से जुड़ा है, बल्कि इसमें महिलाओं की कथित हत्या और दफनाने की खबरें सामने आने के बाद यह और अधिक संवेदनशील बन गया है।
इससे मंदिर प्रशासन की छवि, स्थानीय लोगों की भावनाएं और मीडिया की भूमिका—तीनों पर असर पड़ता है। मंदिर पक्ष का कहना है कि सोशल मीडिया और यूट्यूब पर फैलाई जा रही सूचनाएं “मनगढ़ंत और अपमानजनक” हैं, जो न्याय प्रक्रिया को भी प्रभावित कर सकती हैं।
📣 मीडिया बनाम धार्मिक संस्थान
यह मामला एक ओर मीडिया की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और दूसरी ओर धार्मिक संस्थाओं की गरिमा और प्रतिष्ठा के टकराव का उदाहरण बन गया है। सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर होने वाली सुनवाई से यह तय हो सकता है कि डिजिटल युग में मीडिया और धार्मिक प्रतिष्ठानों के बीच संतुलन कैसे बने।
The Supreme Court will hear tomorrow the plea challenging the Karnataka High Court Order, which lifted the restraint order on a YouTube channel from publishing defamatory content against the Dharmasthala temple family in relation to the Dharmasthala Burial case.
Read more:… pic.twitter.com/NMOuskiMln— Live Law (@LiveLawIndia) August 7, 2025
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