Monday, October 20, 2025
व्हाट्सएप पर हमसे जुड़ें

प्रधानमंत्री मोदी करेंगे एमएस स्वामीनाथन शताब्दी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन, खाद्य सुरक्षा और जैव-सुख पर होगा मंथन

नई दिल्ली, (वेब वार्ता)। भारत के हरित क्रांति के जनक कहे जाने वाले महान कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन की स्मृति में आयोजित होने जा रहे शताब्दी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी गुरुवार, 08 अगस्त 2025 को नई दिल्ली स्थित ICAR पूसा परिसर में करेंगे। इस अवसर पर प्रधानमंत्री सम्मेलन को संबोधित भी करेंगे।

सम्मेलन का उद्देश्य: सतत कृषि से समृद्ध भारत की ओर

प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) द्वारा जारी आधिकारिक बयान में बताया गया कि इस सम्मेलन का विषय है:

‘सदाबहार क्रांति, जैव-सुख का मार्ग’
यह विषय प्रोफेसर स्वामीनाथन के जीवन और उनके मिशन को समर्पित है जो उन्होंने सभी के लिए भोजन, पर्यावरण-संवेदनशील कृषि और सतत विकास के लिए आजीवन अपनाया था।

सम्मेलन में होंगे कई महत्वपूर्ण विषयों पर विचार

इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में विश्वभर के वैज्ञानिकों, नीति निर्माताओं, विकास पेशेवरों और कृषि विशेषज्ञों की भागीदारी होगी, जो निम्नलिखित मुख्य विषयों पर चर्चा करेंगे:

  • जैव विविधता और प्राकृतिक संसाधनों का सतत प्रबंधन

  • खाद्य एवं पोषण सुरक्षा के लिए टिकाऊ कृषि मॉडल

  • जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन और अनुकूलन

  • सतत एवं समतामूलक आजीविका हेतु उपयुक्त तकनीकी समाधान

  • महिलाओं, युवाओं और हाशिए पर पड़े समुदायों की सहभागिता

प्रो. स्वामीनाथन पुरस्कार की शुरुआत

सम्मेलन के मुख्य आकर्षणों में से एक है “प्रो. स्वामीनाथन पुरस्कार” की शुरुआत, जो एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन (MSSRF) और द वर्ल्ड एकेडमी ऑफ साइंसेज (TWAS) की साझेदारी में शुरू किया जा रहा है।

यह पुरस्कार खाद्य सुरक्षा, जलवायु न्याय, सामाजिक समानता और शांति को बढ़ावा देने वाले विकासशील देशों के वैज्ञानिकों, नीति निर्माताओं और जमीनी कार्यकर्ताओं को प्रदान किया जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी इस अवसर पर पुरस्कार के पहले विजेता को प्रथम अंतरराष्ट्रीय प्रो. स्वामीनाथन पुरस्कार से सम्मानित करेंगे।

प्रो. एमएस स्वामीनाथन: भारत के कृषि युग पुरुष

एमएस स्वामीनाथन को भारत में हरित क्रांति के प्रणेता के रूप में जाना जाता है। उन्होंने 1960-70 के दशक में भारतीय कृषि को वैज्ञानिक आधार दिया और गेहूं व धान की ऊपज बढ़ाने में महती भूमिका निभाई। उनका कार्य सिर्फ कृषि उत्पादन तक सीमित नहीं था, बल्कि वह सतत, समावेशी और पर्यावरण के अनुकूल कृषि मॉडल के भी समर्थक थे।

Author

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisement -spot_img

Latest

More articles