Monday, October 20, 2025
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चुनाव आयोग ने बीएलओ स्तर के अधिकारियों का पारिश्रमिक दोगुना किया

-लोकतंत्र के मूक प्रहरी: बीएलओ का सम्मान और आयोग की सार्थक पहल

नई दिल्ली, (वेब वार्ता)। चुनाव आयोग द्वारा बूथ लेवल अधिकारियों (बीएलओ) और निर्वाचक पंजीकरण अधिकारियों के पारिश्रमिक में की गई दोगुनी बढ़ोतरी केवल आर्थिक सुधार नहीं, बल्कि लोकतंत्र के नींव स्तंभों को दिया गया सम्मान है। यह निर्णय लंबे समय से अपेक्षित था, जो अब जाकर साकार हुआ है।


👥 बीएलओ: लोकतंत्र के ज़मीनी सिपाही

भारत जैसे बड़े और विविधतापूर्ण लोकतंत्र में चुनाव प्रक्रिया की नींव बीएलओ जैसे कर्मियों पर टिकी होती है। मतदाता सूची बनाना, नाम जोड़ना या हटाना, पात्रता की जांच करना—ये सभी कार्य बीएलओ के जमीनी प्रयास से ही संभव होते हैं।

अब तक इन अधिकारियों का पारिश्रमिक असंगत और अत्यल्प था, जबकि उनका कार्यभार भारी और संवेदनशील होता है। ऐसे में चुनाव आयोग का यह फैसला उन्हें संस्थागत स्वीकृति और आर्थिक सम्मान प्रदान करता है।


📈 संशोधित पारिश्रमिक: बदलाव की ठोस तस्वीर

आयोग द्वारा घोषित नए मानदेयों का सारांश:

अधिकारीपूर्व पारिश्रमिकसंशोधित पारिश्रमिक
बीएलओ (वार्षिक)₹6,000₹12,000
बीएलओ (पुनरीक्षण प्रोत्साहन)₹1,000₹2,000
बीएलओ पर्यवेक्षक₹12,000₹18,000
सहायक पंजीकरण अधिकारी₹25,000
निर्वाचक पंजीकरण अधिकारी₹30,000
विशेष पुनरीक्षण प्रोत्साहन₹6,000

यह पहली बार है जब पंजीकरण अधिकारियों को भी औपचारिक रूप से मानदेय प्रदान किया जाएगा।


🧭 2015 से 2025 तक: एक दशक बाद बदलाव

पिछला संशोधन 2015 में हुआ था। तब से अब तक मुद्रास्फीति, तकनीकी जटिलताओं और कार्यभार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। बीएलओ को न केवल घर-घर जाकर सत्यापन करना पड़ता है, बल्कि अब उन्हें डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी कुशल होना पड़ता है।

ऐसे में 10 वर्षों बाद किया गया यह संशोधन आर्थिक न्याय की दिशा में एक सशक्त कदम है।


🌿 लोकतंत्र का मूल्यांकन ज़मीनी स्तर से

यह समझना जरूरी है कि चुनाव केवल ईवीएम और आचार संहिता से नहीं चलते, बल्कि इसके लिए एक पूरी मानव शृंखला दिन-रात काम करती है। बीएलओ, पर्यवेक्षक और पंजीकरण अधिकारी लोकतंत्र के जमीनी सिपाही हैं, जिनका कार्य कठिन, संवेदनशील और जिम्मेदारी से भरा होता है।

यह निर्णय उन कर्मियों के मनोबल को न केवल ऊंचा करेगा, बल्कि नवीन मतदाताओं के पंजीकरण को भी सशक्त बनाएगा।


🗳️ निष्कर्ष: सराहना से सेवा का सम्मान

भारत में अक्सर अधिकारियों को “सरकारी कर्मचारी” मानकर उनके काम को नजरअंदाज़ कर दिया जाता है, खासकर जब वह कोई चयनित/प्रतिनिधि पद पर न हों। लेकिन चुनाव आयोग ने यह संदेश दिया है कि लोकतंत्र के हर पहरुए की भूमिका महत्वपूर्ण है – चाहे वह मतदाता सूची में नाम जोड़ने वाला बीएलओ हो या पुनरीक्षण की निगरानी करने वाला पंजीकरण अधिकारी।

यह निर्णय केवल आर्थिक सुधार नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक संवेदनशीलता और कर्मचारियों की गरिमा को मजबूत करता है।

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