नई दिल्ली, 30 जुलाई (वेब वार्ता)।
22 अप्रैल 2025 को जम्मू‑कश्मीर के पहलगाम (बैसरन घाटी) में आतंकियों ने निर्दोष पर्यटकों पर हमला कर दिया, जिसमें 26 लोगों की जान गई। यह हमला देशभर में आक्रोश और राजनीति का केंद्र बना। इसके जवाब में भारत ने “ऑपरेशन सिंदूर” नाम से एक सीमापार सैन्य कार्रवाई की, जिसके बाद संसद में तेज बहस छिड़ गयी। यह लेख लोकसभा में हुई बहस का विस्तार से विश्लेषण करता है – जिसमें विपक्ष और सरकार दोनों पक्षों की बातें शामिल हैं।
घटना की पृष्ठभूमि
पहलगाम में आतंकियों ने धर्म‑आधारित विभाजन की मानसिकता के चलते हिंदू पर्यटकों को निशाना बनाया। इस हमले की जिम्मेदारी The Resistance Front (TRF) ने ली, जिसे बाद में तीन आतंकियों— सुलेमान, फैजल अफगान, जिब्रान—की पहचान की गई।
भारत ने सीमापार “ऑपरेशन सिंदूर” के तहत पाकिस्तान के आतंकी ढाँचे पर निशाना साधा, जिसमें 22 मिनट की सटीक कार्रवाई में पाकिस्तानी परिसर नष्ट किए गए।
इसके बाद भारत ने ऑपरेशन महादेव शुरू किया, जिसमें तीनों ए-ग्रेड आतंकियों को मार गिराया गया।
लोकसभा में बहस की शुरुआत – गृह मंत्री अमित शाह
लोकसभा में विशेष चर्चा की शुरुआत गृह मंत्री अमित शाह ने करते हुए बताया:
ऑपरेशन महादेव में पहलगाम हमले में शामिल आतंकियों को सत्यापन विधियों द्वारा पहचान कर उन्हें ढेर किया गया।
पाकिस्तानी वोटर कार्ड, पाक निर्मित चॉकलेट और अन्य सबूत मिले, जो उनकी पहचान पर पुष्टि थे।
उन्होंने इस अभियान को “शून्य सहनशीलता नीति” वाली कार्रवाई बताया और सरकार पर विपक्ष द्वारा आरोपित राजनीति पर पलटवार किया।
लोकसभा में ऑपरेशन सिंदूर बहस: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी आमने‑सामने
राहुल गांधी की तीखी प्रतिक्रिया
विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने लोकसभा में दीर्घ भाषण देते हुए:
कहा कि सरकार ने सेना को “हाथ बाँध कर” भेजा; सैन्य पायलटों पर निहित राजनीतिक प्रतिबंध थे।
आरोप लगाया कि ऑपरेशन की समयावधि (22 मिनट) इसलिए इतनी छोटी की गई क्योंकि सरकार प्रधानमंत्री की छवि बचाने की कोशिश कर रही थी।
उन्होंने 1971 के युद्ध का हवाला देते हुए कहा कि इंदिरा गांधी के पास राजनीतिक इच्छाशक्ति थी, लेकिन आज की सरकार में वह नहीं है।
विदेश नीति की आलोचना करते हुए बताया कि न तो चीन‑पाकिस्तान गठबंधन का खिलाफ कोई स्पष्ट रुख अपनाया गया, न ही हवाई जहाज खोने की असलियत स्पष्ट की गई।
उन्होंने राष्ट्रपति ट्रम्प से जुड़ी “29 बार के युद्ध विराम दावे” को चुनौती दी, और प्रधानमंत्री को चुनौती दी की अगर ऐसा नहीं है तो प्रधानमंत्री कहें की ट्रम्प झूठ बोल रहे हैं।
प्रियंका गांधी वाड्रा के मुखर सवाल
प्रियंका गांधी बोलते हुए:
पूछा कि क्यों पहलगाम पर हमला होने के दौरान वहां कोई सुरक्षा बल उपस्थित नहीं था।
आरोप लगाया कि सरकार जनता को भगवान भरोसे छोड़ना चाहती है—पहलगाम के लोग सरकार की सुरक्षा पर भरोसा करके गए, लेकिन उन्हें आश्रय नहीं मिला।
उन्होंने प्रधानमंत्री के श्रेय लेने की प्रवृत्ति की आलोचना करते हुए पूछा कि जब जिम्मेदारी की बात आए, तो वे क्यों गायब हो जाते हैं।
अन्य विपक्षी दलों की टिप्पणियाँ
• गौरव गोगोई (कांग्रेस):
रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह से पूछा कि आतंकी पहलगाम तक कैसे पहुँचे, यह क्यों स्पष्ट नहीं किया गया?
• अखिलेश यादव (सपा):
पूछा कि क्यों सीजफायर सोशल मीडिया (ट्रम्प के प्लेटफॉर्म) पर सबसे पहले घोषित हुआ, और सरकार इसकी सफाई दे?
• डिंपल यादव (सपा):
विदेश नीति में अंतरराष्ट्रीय बयानबाज़ी की आलोचना की; सरकार से पूछा कि अग्निवीर योजना क्यों समाप्त नहीं की गई, रक्षा बजट बढ़ाने पर क्यों सोचा नहीं गया?
• हरसिमरत कौर (शिरोमणि अकाली दल):
सीमावर्ती इलाकों की स्थिति उजागर करते हुए पूछा कि बॉर्डर पर रहने वाले लोगों को मुआवजा क्यों नहीं दिया गया, ड्रोन प्रवाह क्यों नियंत्रित नहीं किया गया?
• केसी वेणुगोपाल (कांग्रेस):
कहा कि जब सरकार पर्यटकों को वहां जाने को कह रही थी, तो कम से कम सुरक्षा की व्यवस्था कराना सरकार की जिम्मेदारी थी। Intelligence विफलता का उल्लेख भी किया गया
• ए राजा (DMK):
आरोप लगाया कि भाजपा तथ्यात्मक साक्ष्य दिखाने में विफल रही; नेहरू‑इंदिरा को दोष देना छोड़, सरकार को अपनी रणनीति पेश करनी चाहिए
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पलटवार
प्रधानमंत्री ने बहस में संबोधित करते हुए:
कहा कि ऑपरेशन सिंदूर 22 मिनट में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ और कोई विदेशी दबाव नहीं था—किसी भी देश ने भारत को रुकने को नहीं कहा।
बताया कि लगभग 1000 पाकिस्तानी मिसाइल/ड्रोन को भारत ने 9 मई को इंटरसेप्ट किया।
इस घटना को “खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते” की मिसाल बताया, और भारतीय आत्मनिर्भर रक्षा क्षमताओं की प्रभावशाली प्रस्तुति की।
कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि वे पाकिस्तानी दूतों की जुबान बोलते हैं, और राष्ट्रीय सुरक्षा को राजनीतिक लाभ के लिए भुनाने की कोशिश करते हैं।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी कहा कि ऑपरेशन पर निर्णायक रणनीति अपनाई गई, भारतीय सेना को पूर्ण स्वतंत्रता दी गई और यह पाकिस्तान को सख्त संदेश था।
बहस का व्यापक राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव
टीएमसी सांसद ने कहा कि सरकार ने अंतरराष्ट्रीय नैरेटिव नियंत्रण गंवा दिया, जबकि ट्रम्प जैसे विदेशी नेताओं ने 28–29 बार युद्ध विराम का श्रेय ले लिया।
Kharge (कांग्रेस अध्यक्ष) ने राज्यसभा में सरकार को आंतरिक रिपोर्ट, सुरक्षा समीक्षा, और प्रधानमंत्री की कश्मीर यात्रा रद्द करने पर Accountability मांगते हुए कटाक्ष किया।
निष्कर्ष – सेना की शौर्यता vs राजनीतिक इच्छाशक्ति
- एक ओर सेना की सफलता पर गर्व था, वहीं दूसरी ओर राजनीति, समय‑बद्धता, और विदेशी नीति की पारदर्शिता पर सवाल खड़े रहे।
ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय सेना की सटीक रणनीति और प्रभाव ने आतंकियों को कुचल दिया।
पर विपक्ष की राय में, राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और राष्ट्रवाद-तुल्य राजनीति ने कार्रवाई को सीमित किया।
सरकार का दावा: यह निर्णय तत्काल और रणनीतिक था, किसी दबाव में नहीं लिया गया।
विपक्ष की मांग: स्वतंत्र विशेष सत्र, सत्यापन बैठक, और सार्वजनिक जवाबदेही।
‘टाइगर… सेना को पूरी आजादी देनी होती है, राजनीतिक इच्छाशक्ति जरूरी’, लोकसभा में बोले राहुल गांधी