Saturday, August 2, 2025
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Dr. APJ Abdul Kalam: भारत के आत्मनिर्भर सपनों के शिल्पकार को नमन

– संपादकीय डेस्क | वेब वार्ता –

जब कोई व्यक्ति एक साधारण मछुआरे के परिवार से निकलकर वैज्ञानिक बनता है, फिर देश की मिसाइल शक्ति का नेतृत्व करता है और अंततः देश का राष्ट्रपति बन जाता है, तो वह केवल इंसान नहीं रह जाता — वह युग बन जाता है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति, महान वैज्ञानिक और अद्वितीय विचारक डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम (Dr. APJ Abdul Kalam) ऐसे ही एक युगपुरुष थे, जिनका जीवन देशवासियों के लिए एक प्रेरक गाथा है।

आज, 27 जुलाई को उनकी पुण्यतिथि पर हम केवल उन्हें याद ही नहीं करते, बल्कि उनके विचारों, कार्यों और जीवन दर्शन को आत्मसात करने का भी प्रयास करते हैं। यह लेख उस महान आत्मा को समर्पित है जिसने भारत को न सिर्फ सैन्य और अंतरिक्ष शक्ति बनने की दिशा दी, बल्कि करोड़ों युवाओं को सपने देखने और उन्हें साकार करने की प्रेरणा भी दी।

एक विनम्र शुरुआत, लेकिन महान आकांक्षाएँ

डॉ. कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में एक सामान्य मुस्लिम परिवार में हुआ था। उनके पिता जैनुलाब्दीन नाविक थे, जो मछुआरों को अपनी नाव किराए पर देकर घर चलाते थे। कलाम जी का बचपन संघर्षपूर्ण था — शिक्षा के लिए उन्हें अख़बार बाँटना पड़ता था, लेकिन उनमें सीखने की लालसा इतनी प्रबल थी कि कोई भी कठिनाई उन्हें पीछे नहीं रोक सकी।

वे कहते थे:
“अगर आप सूरज की तरह चमकना चाहते हैं, तो पहले सूरज की तरह जलना सीखिए।”
उनका जीवन इस वाक्य का जीवंत उदाहरण रहा।

विज्ञान का मंदिर: ISRO, DRDO और स्वदेशी तकनीक की बुनियाद

1954 में भौतिकी में स्नातक और 1957 में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त कर उन्होंने अपने वैज्ञानिक जीवन की शुरुआत की। 1960 के दशक में DRDO में काम करते हुए उन्होंने सेना के लिए स्मॉल हेलीकॉप्टर डिज़ाइन किया।

1969 में उन्हें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) में भेजा गया जहाँ वे SLV-3 प्रोजेक्ट के निदेशक बने। 1980 में भारत ने अपने पहले उपग्रह “रोहिणी” को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में स्थापित किया। यह उपलब्धि भारत के लिए मील का पत्थर थी, और इसका श्रेय डॉ. कलाम को दिया गया।

1982 में वे फिर से DRDO लौटे और इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम (IGMDP) का नेतृत्व किया। इसके अंतर्गत पृथ्वी, अग्नि, त्रिशूल, आकाश और नाग जैसी मिसाइलों का विकास हुआ। तभी से वे “मिसाइल मैन” के नाम से पहचाने जाने लगे।

भारत रत्न और राष्ट्रपति पद: विज्ञान से जनसेवा की ओर

डॉ. कलाम को उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए भारत सरकार ने पद्म भूषण (1981), पद्म विभूषण (1990) और अंततः भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान “भारत रत्न” (1997) प्रदान किया। लेकिन सम्मान उन्हें कभी अभिमान नहीं दे पाए।

2002 में जब वे राष्ट्रपति बने, तो वह एक ऐतिहासिक क्षण था। एक वैज्ञानिक, जो न राजनीति से जुड़े थे, न कभी चुनाव लड़े, वे देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर पहुंचे। इससे यह साबित हुआ कि काबिलियत और ईमानदारी का कोई विकल्प नहीं होता।

उनका कार्यकाल राष्ट्रपति भवन को आम जनता, खासकर युवाओं के लिए खोलने का प्रतीक बन गया। वे जनता से सीधे संवाद करते, स्कूलों-कॉलेजों में व्याख्यान देते, छात्रों से प्रश्न पूछने के लिए प्रोत्साहित करते।

कलाम का दर्शन: युवाओं में सपनों की आग भरना

डॉ. कलाम को सबसे अधिक प्रेम बच्चों और युवाओं से था। वे युवाओं को बार-बार यही कहते थे कि “सपने वही होते हैं जो हमें सोने न दें।”
उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं, जिनमें “Wings of Fire”, “Ignited Minds”, “India 2020”, और “Turning Points” जैसी किताबें आज भी लाखों युवाओं की प्रेरणा का स्रोत हैं।

उनका सपना था — “वर्ष 2020 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाना।”
हालाँकि 2020 आ गया, लेकिन उनका यह सपना आज भी उतना ही प्रासंगिक और प्रेरक है जितना उनके जीवनकाल में था।

एक ऐसी मृत्यु, जो सेवा करते हुए आई

डॉ. कलाम की अंतिम सांस भी राष्ट्रसेवा करते हुए ही निकली। 27 जुलाई 2015 को वे शिलॉन्ग में IIM के छात्रों को ‘Creating a Livable Planet Earth’ विषय पर व्याख्यान दे रहे थे, जब मंच पर ही उन्हें हार्ट अटैक आया और वे इस दुनिया से विदा हो गए। यह एक दिव्य अंत था — नायक का अंत, जैसा होता है — कर्म करते हुए।

डॉ. कलाम (Dr. APJ Abdul Kalam) की विरासत: क्या हम तैयार हैं उसे आगे ले जाने के लिए?

आज भारत “आत्मनिर्भर भारत”, “मेक इन इंडिया”, और “डिजिटल इंडिया” जैसे अभियानों की बात करता है। लेकिन इन सबका बीज वर्षों पहले डॉ. कलाम ने बोया था। वे मानते थे कि जब तक भारत अपनी रक्षा, ऊर्जा, तकनीक और शिक्षा में आत्मनिर्भर नहीं बनेगा, तब तक वास्तविक स्वतंत्रता अधूरी है।

हमें आज यह सोचने की जरूरत है कि क्या हम उनकी विरासत को सही मायनों में आगे बढ़ा रहे हैं? क्या हमारी शिक्षा प्रणाली उनकी वैज्ञानिक सोच और नवाचार को जन्म दे रही है? क्या युवा वर्ग में वह जोश है जो देश को नई ऊँचाई पर ले जाए?

निष्कर्ष: कलाम एक नाम नहीं, विचार हैं

डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम केवल एक वैज्ञानिक या राष्ट्रपति नहीं थे — वे एक विचार हैं। एक आंदोलन हैं। एक सपना हैं, जिसे हर भारतवासी को अपने अंदर जीवित रखना चाहिए।
उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों, अगर इरादा मजबूत हो, तो असंभव कुछ भी नहीं।

उनकी पुण्यतिथि पर यह हमारा सामूहिक उत्तरदायित्व बनता है कि हम उनके सपनों के भारत की दिशा में कार्य करें — एक ऐसा भारत, जो आत्मनिर्भर हो, वैज्ञानिक हो, नैतिक हो और सबसे बढ़कर, युवा हो।

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