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कारगिल विजय दिवस: शहीद मेजर अमिय त्रिपाठी के बेटे कुशाग्र ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में निभाई अहम भूमिका

कुशीनगर, ममता तिवारी (वेब वार्ता)। कारगिल विजय दिवस की 26वीं वर्षगांठ पर एक बार फिर भारत की वीरगाथाएं पूरे देश में गूंज रही हैं। इसी क्रम में कुशीनगर जिले के तमकुही विकासखंड स्थित भेलेया चंद्रौटा गांव के शहीद मेजर अमिय त्रिपाठी के बेटे कुशाग्र त्रिपाठी चर्चा का केंद्र बने हुए हैं, जिन्होंने अपने शहीद पिता के अधूरे सपनों को पूरा करते हुए सेना में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति पाई है और हाल ही में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में हिस्सा लेकर देश सेवा में अपनी भूमिका निभाई है।

पिता की रेजीमेंट, वही मोर्चा, नई पीढ़ी का संकल्प

शहीद मेजर अमिय त्रिपाठी भारतीय सेना की सिक्ख रेजीमेंट में तैनात थे। वर्ष 2004 में जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा क्षेत्र में चलाए गए ऑपरेशन रक्षक में आतंकियों से लोहा लेते हुए वे शहीद हो गए थे। उनके पुत्र कुशाग्र उस समय केवल तीन वर्ष के थे। मगर शहीद की पत्नी रंजना त्रिपाठी ने उसी समय प्रण लिया कि उनका बेटा एक दिन देश सेवा में पिता की विरासत को आगे बढ़ाएगा।

कुशाग्र ने इस प्रण को साकार करने के लिए वर्ष 2022 में एनडीए परीक्षा पास की और वर्ष 2023 में लेफ्टिनेंट के रूप में भारतीय सेना में शामिल हो गए। आज वे अपने पिता की ही रेजीमेंट में कुपवाड़ा में तैनात हैं।

ऑपरेशन सिंदूर में दिखाई बहादुरी

हाल ही में पाकिस्तान के खिलाफ चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर में लेफ्टिनेंट कुशाग्र ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह अभियान सीमावर्ती क्षेत्रों में आतंकी गतिविधियों को रोकने और राष्ट्र सुरक्षा को मजबूत करने के उद्देश्य से चलाया गया था।

मां भी चली गईं, मगर बेटे ने निभाया कर्तव्य

दुर्भाग्यवश, कुशाग्र की मां रंजना त्रिपाठी भी दो वर्ष पूर्व लंबी बीमारी के बाद चल बसीं। लेकिन उनके द्वारा बोए गए राष्ट्रप्रेम के बीज आज एक संकल्पित योद्धा के रूप में फल-फूल रहे हैं।

शहीद की स्मृति में होता है अखिल भारतीय क्रिकेट टूर्नामेंट

शहीद मेजर अमिय त्रिपाठी की याद में हर वर्ष फाजिलनगर में अखिल भारतीय क्रिकेट प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। इस आयोजन के माध्यम से न केवल खेल को बढ़ावा मिलता है, बल्कि क्षेत्रीय युवा राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर भी प्राप्त कर रहे हैं। साथ ही, हर वर्ष मशाल दौड़ का आयोजन कर नई पीढ़ी को प्रेरणा दी जाती है।

संपादकीय टिप्पणी:

कुशाग्र त्रिपाठी की यह वीरगाथा केवल एक सैनिक की नहीं, बल्कि उस हर भारतीय परिवार की है जो देश की रक्षा को सर्वोच्च धर्म मानता है। कारगिल विजय दिवस पर यह कहानी हमें यह भरोसा देती है कि शौर्य और बलिदान की विरासत पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती रहेगी।

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वेब वार्ता समाचार एजेंसी

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