Sunday, July 27, 2025
HomeलेखJagdeep Dhankhar : जगदीप धनखड़ ने त्याग-पत्र दे अपरिपक्वता का संदेश दिया?

Jagdeep Dhankhar : जगदीप धनखड़ ने त्याग-पत्र दे अपरिपक्वता का संदेश दिया?

-बीपी गौतम-

जगदीप धनखड़ द्वारा उपराष्ट्रपति पद से दिया गया त्याग-पत्र चर्चा का विषय बना हुआ है। कई सारे सवाल उठाये जा रहे हैं एवं कयास भी लगाये जा रहे हैं। जो विपक्ष, उनके संवैधानिक दायित्व को दरकिनार कर हर पल अपमानित करता था और उन्हें पद से हटाना चाहता था, वो विपक्ष, उन्हें अब नायक बताने लगा है।

जगदीप धनखड़ और जगत प्रकाश नड्डा, दोनों के नाम का अर्थ समान ही है और संयोग ही कहा जायेगा कि जगदीप धनखड़ के त्याग पत्र के साथ जगत प्रकाश नड्डा का नाम भी जुड़ गया है। हालांकि उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि सब कुछ अफवाह है।

राजनैतिक टीका-टिप्पणियों को अलग कर दिया जाये तो, त्याग पत्र देने के तरीके से 74 वर्षीय जगदीप धनखड़ ने अपरिपक्वता का ही संदेश दिया है, उनके निर्णय से लग रहा है कि उनकी महत्वाकाक्षाओं की अक्षरशः पूर्ति नहीं हो पा रही थी, जिससे आहत होकर उन्होंने पलायन करने से पहले भाजपा सरकार को रणनीति के तहत अहसज करने का प्रयास किया है, इसी विषय पर चर्चा कर रहे हैं बीपी गौतम…

जगदीप धनखड़ ने दिया पद से त्याग पत्र

जगदीप धनखड़ ने सोमवार को उपराष्ट्रपति पद से त्याग पत्र दे दिया। उन्होंने त्याग पत्र में लिखा कि मैं स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुये और डॉक्टरों की सलाह का पालन करते हुये भारत के उपराष्ट्रपति पद से तत्काल प्रभाव से त्याग पात्र देता हूं, यह त्याग पत्र संविधान के अनुच्छेद 67 (ए) के अनुसार है। मैं भारत की राष्ट्रपति को हार्दिक धन्यवाद देता हूं, जिन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान मुझे लगातार सहयोग और एक शांति पूर्ण कार्य संबंध प्रदान किया, यह मेरे लिये बेहद सुखद अनुभव रहा। उन्होंने लिखा कि मैं प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद का भी आभार प्रकट करता हूं। प्रधानमंत्री का सहयोग मेरे लिये बेहद मूल्यवान रहा है और मैंने अपने कार्यकाल के दौरान उनसे बहुत कुछ सीखा है। मुझे सांसदों से जो स्नेह, विश्वास और अपनापन मिला, वह मेरे लिये सदा अमूल्य रहेगा और मेरी स्मृति में अंकित रहेगा। मैं इस महान लोकतंत्र में उपराष्ट्रपति के रूप में मिले अमूल्य अनुभवों और ज्ञान के लिये अत्यंत आभारी हूं। उन्होंने लिखा कि इस महत्वपूर्ण कालखंड में भारत की अभूत पूर्व आर्थिक प्रगति और असाधारण विकास का साक्षी बनना और उसमें सहभागी होना, मेरे लिये गर्व और संतोष की बात रही है। हमारे राष्ट्र के इस परिवर्तनकारी युग में सेवा करना मेरे लिये एक सच्चा सम्मान रहा है। जब मैं इस प्रतिष्ठित पद को छोड़ रहा हूं तो, मैं भारत के वैश्विक उत्थान और उसकी अद्भुत उपलब्धियों पर गर्व से भर जाता हूं और उसके उज्ज्वल भविष्य में मेरी पूर्ण आस्था है।

कृषक परिवार में जन्मे हैं जगदीप धनखड़

जगदीप धनखड़ का जन्म 18 मई 1951 को राजस्थान में झुंझनू जिले के गांव किठाना में हुआ था, उनके पिता का नाम गोकल चंद और मां का नाम केसरी देवी है, वे जगदीप अपने चार भाई-बहनों में दूसरे नंबर के हैं, उनकी शुरुआती शिक्षा गांव किठाना के ही सरकारी माध्यमिक विद्यालय से हुई, इसके बाद गरधाना के सरकारी मिडिल स्कूल में पढ़े, उन्होंने चित्तौड़गढ़ के सैनिक स्कूल में भी पढ़ाई की। 12वीं के बाद उन्होंने भौतिकी में स्नातक किया, इसके बाद राजस्थान विश्व विद्यालय से कानून की पढ़ाई पूरी की। 12वीं के बाद धनखड़ का चयन आईआईटी और फिर एनडीए के लिये भी हुआ था लेकिन, वे उधर नहीं गये। स्नातक के बाद उन्होंने देश की सबसे बड़ी सिविल सर्विसेज परीक्षा भी पास कर ली थी लेकिन, आईएएस बनने की जगह, उन्होंने वकालत का पेशा चुना। उन्होंने अपनी वकालत की शुरुआत राजस्थान उच्च न्यायालय से की थी। वे राजस्थान बार काउसिंल के चेयरमैन भी रहे थे, वे उच्चतम न्यायालय में भी वकालत कर चुके हैं। जगदीप धनखड़ राजस्थान ओलंपिक संघ और राजस्थान टेनिस संघ के अध्यक्ष भी रह चुके हैं।

वकालत से राजनीति में आये थे जगदीप धनखड़

जगदीप धनखड़ ने अपनी राजनीति की शुरुआत जनता दल से की थी, वे 1989 में झुंझुनू से सांसद बने। पहली बार सांसद चुने जाने पर ही उन्हें बड़ा दायित्व मिला। 1989 से 1991 तक वीपी सिंह और चंद्रशेखर की सरकार में उन्हें केंद्रीय राज्यमंत्री बनाया गया था। 1991 के लोकसभा चुनावों में जनता दल ने जगदीप धनखड़ का टिकट काट दिया तो, वह पार्टी छोड़कर कांग्रेस में सम्मिलित हो गये थे और अजमेर जिले के किशनगढ़ क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर 1993 का चुनाव जीता। ओबीसी समुदाय, विशेषकर राजस्थान के जाट समुदाय को ओबीसी आरक्षण दिलाने के मुद्दे को लेकर वे सक्रिय रह थे थे। राजस्थान में अशोक गहलोत कांग्रेस के नायक बन कर उभरे, इस बीच उनका कांग्रेस से मोह भंग हो गया तो, उन्होंने कांग्रेस से किनारा कर लिया और फिर भाजपा में चले गये। जगदीप धनखड़ मूल रूप से भाजपाई नहीं थे और न ही आरएसएस की पृष्ठभूमि से थे, इसीलिये उन्होंने त्याग पत्र देने से पहले एक क्षण को भी भाजपा के हित में बारे में नहीं सोचा होगा।

ममता सरकार पर हमला कर जीता था विश्वास

भाजपा के विरुद्ध जाट उकसाये गये और कई स्थानों पर बड़े आंदोलन हुये तो भाजपा ने जगदीप धनखड़ को अधिक महत्व देना शुरू कर दिया, उन्हें 30 जुलाई 2019 को पश्चिम बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया गया, वे ममता बनर्जी सरकार पर कानून व्यवस्था, विश्व विद्यालयों की नियुक्तियों और संघीय ढांचे को लेकर कई बार तीखी टिप्पणियां करते रहते थे, जिससे वे लगातार राजनीतिक चर्चाओं में बने रहते थे, इसीलिये भाजपा ने उन्हें उपराष्ट्रपति जैसा महत्वपूर्ण दायित्व देने का मन बना लिया। जगदीप धनखड़ 2022 में 528 वोटों से उपराष्ट्रपति निर्वाचित हुये थे। 1992 के बाद जगदीप धनखड़ उपराष्ट्रपति पद पर सबसे बड़े अंतर से जीते थे।

राहुल गांधी को दिया था करार जवाब

जगदीप धनखड़ कई बार राहुल गांधी से सीधे भिड़ गये थे। सितंबर 2024 में राहुल गांधी ने अमेरिका दौरे पर कहा था कि कांग्रेस आरक्षण खत्म करने के बारे में तब सोचेगी, जब भारत भेदभाव रहित स्थान होगा और अभी ऐसा नहीं है। जॉर्ज टाउन विश्वविद्यालय में छात्रों को संबोधित करते हुये कांग्रेस नेता ने कहा था कि जब आप वित्तीय आंकड़ों को देखते हैं तो, आदिवासियों को 100 रुपये में से 10 पैसे मिलते हैं। दलितों को 100 रुपये में से पांच रुपये मिलते हैं और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को भी लगभग इतने ही पैसे मिलते हैं। सच्चाई यह है कि उन्हें उचित भागीदारी नहीं मिल रही है, इस पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संसद भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा था कि देश के बाहर रहने वाले हर भारतीय को इस राष्ट्र का राजदूत बनना होगा। उन्होंने कहा कि मुझे इस बात का दुःख और परेशानी है कि पद पर बैठे कुछ लोगों को भारत के बारे में कुछ पता नहीं है।

उन्होंने राहुल गांधी का नाम लिये बिना कहा था कि यह कितना दुःखद है कि संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति इसके ठीक विपरीत काम कर रहा है, इससे अधिक निंदनीय, घृणित और असहनीय कुछ भी नहीं हो सकता कि आप राष्ट्र के दुश्मनों का हिस्सा बन जायें। उन्होंने यह भी कहा था कि कुछ लोग स्वतंत्रता के मूल्य को नहीं समझते हैं, वे यह नहीं समझते हैं कि इस देश की सभ्यता की गहराई 5000 वर्ष है। हमारे देश का संविधान पवित्र है। कुछ लोग हमारे देश को विभाजित करना चाहते हैं, यह चरम अज्ञानता है।

भाजपा के कट्टर समर्थक दिखते थे जगदीप धनखड़

विपक्ष ने जगदीप धनखड़ का बिल्कुल भी सहयोग नहीं किया था, उनके विरुद्ध विपक्ष ने मार्गरेट अल्वा को प्रत्याशी बनाया था। उपराष्ट्रपति निर्वाचित होने के जगदीप धनखड़ राज्यसभा में सभापति के रूप में एवं सार्वजनिक मंचों पर खुल कर न सिर्फ दक्षिणपंथ का समर्थन करते थे बल्कि, पूरी तरह से भाजपा के भी समर्थक दिखाई देते थे, जिससे विपक्ष भी उनका खुल कर विरोध करने लगा था। राज्यसभा में विपक्ष के साथ उनका तीखा रवैया कई बार सुर्खियों में भी रहा, इससे चिढ़ कर विपक्ष ने उन्हें पद से हटाने का प्रयास किया, उनके विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव तैयार किया गया, जिस पर जगदीप धनखड़ ने कहा था कि यह ऐसा है, जैसे जंग लगे सब्जी काटने वाले चाकू से बायपास सर्जरी की जाये अर्थात, भाजपा का खुला समर्थन होने के कारण जगदीप धनखड़ तनिक भी विचलित तक नहीं हुये थे।

आवास खाली कराने का नोटिस देने की फर्जी खबर वायरल

पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ शीघ्र ही सरकारी आवास खाली कर सकते हैं, उन्होंने अपना सामान पैक करना शुरू कर दिया है। उपराष्ट्रपति चुने जाने के बाद 74 वर्षीय जगदीप धनखड़ गत वर्ष अप्रैल माह में संसद भवन परिसर के पास चर्च रोड पर नव-निर्मित उपराष्ट्रपति एन्क्लेव में शिफ्ट हुये थे। उपराष्ट्रपति के आवास और कार्यालय वाले वीपी एन्क्लेव का निर्माण सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास योजना के अंतर्गत किया गया है, वे यहां लगभग 15 महीनों से हैं। शहरी विकास मंत्रालय के एक अधिकारी ने मंगलवार को कहा कि जगदीप धनखड़ को लुटियंस दिल्ली या, किसी अन्य क्षेत्र में अब टाइप VIII बंगला दिया जायेगा। टाइप VIII बंगला वरिष्ठ केंद्रीय मंत्रियों या, राष्ट्रीय दलों के अध्यक्षों को आवंटित किया जाता है।

हालांकि सोशल साइट्स फर्जी खबरें फैलाई जा रही हैं, जिनमें दावा किया जा रहा है कि उपराष्ट्रपति के आधिकारिक आवास को सील कर दिया गया है और पूर्व उपराष्ट्रपति को तुरंत अपना आवास खाली करने के लिये कहा गया है, यह सच नहीं है, इस फर्जी खबर को लेकर पीआईबी फैक्ट चेक ने कहा है कि गलत सूचनाओं पर ध्यान न दें, किसी भी खबर को शेयर करने से पहले हमेशा आधिकारिक सूत्रों से उसकी पुष्टि कर लें।

उत्तराखंड में अचानक बिगड़ गया था स्वास्थ्य

जगदीप धनखड़ पिछले महीने उत्तराखंड के तीन दिवसीय दौरे पर गये थे। कुमाऊं विश्वविद्यालय में कार्यक्रम समाप्त होने के बाद उनका अचानक स्वास्थ्य बिगड़ गया था। मौके पर चिकित्सकों की टीम ने उन्हें प्राथमिक उपचार दिया था, जिसके बाद वह राज्यपाल गुरमीत सिंह के साथ राजभवन को रवाना हो गये थे, इससे पहले जगदीप धनखड़ ने कहा था कि ईश्वर की कृपा रही तो, वह अगस्त 2027 में सेवानिवृत्त हो जायेंगे। 14वें उपराष्ट्रपति के रूप में उनका पांच वर्ष का कार्यकाल 10 अगस्त 2027 तक था।

अपरिपक्वता दर्शाता है त्याग पत्र देने का तरीका

कोई व्यक्ति दायित्व पर रहना चाहता है या, नहीं, इसकी स्वतंत्रता सबके पास है, उतनी ही स्वतंत्रता जगदीप धनखड़ को भी मिली हुई है, उन्होंने उपराष्ट्रपति पद से त्याग पत्र देने का कारण स्वास्थ्य को बताया है लेकिन, वे बिना कारण बताये भी त्याग पत्र दे देते, फिर भी कोई समस्या नहीं थी, वे त्याग पत्र दे सकते थे लेकिन, उनका त्याग पत्र चर्चा विषय बना गया है। चर्चा और कई सवाल, इसलिये उठाये जा रहे हैं, क्योंकि त्याग पत्र मॉनसून सत्र के पहले दिन दिया गया, जबकि सोमवार शाम 4 बजे ही उपराष्ट्रपति सचिवालय की ओर से कहा गया था कि इसी हफ्ते जगदीप धनखड़ जयपुर जायेंगे, इसके अलावा त्याग पत्र राष्ट्रपति को भेजना था, वहां से सार्वजनिक होना था, जबकि पत्र तत्काल वायरल हो गया, जो गलत तरीका है। जगदीप धनखड़ के लिये कोई विदाई समारोह और औपचारिक विदाई भाषण तक नहीं हुआ, जिससे कयास लगाये जा रहे हैं कि उन्होंने अपनी इच्छा पर किसी से चर्चा भी नहीं की होगी, इसीलिये किसी ने न दुःख जताया और न ही स्वागत किया, इसे राजनैतिक बवंडर की तरह लिया गया, जिसका सब थमने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

नीतिगत निर्णयों में चाहते थे अहम भूमिका

जगदीप धनखड़ के त्याग पत्र देने के पीछे कई कारण दिखाई दे रहे हैं, जिन्हें कयासबाजी ही कहा जा सकता है। चूंकि कोई खुल कर कुछ भी बोल नहीं रहा है, जिससे कयासबाजी को बल भी मिल रहा है। संसद के मॉनसून सत्र के पहले ही दिन जगदीप धनखड़ ने एक नोटिस स्वीकार किया था, जिसमें 60 से अधिक विपक्षी सांसदों ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को हटाने की मांग की थी, इसके ठीक बाद राज्यसभा की बिजनेस एडवाइजरी कमेटी की एक बैठक में जगत प्रकाश नड्डा और किरेन रिजिजू अनुपस्थित रहे। बिजनेस एडवाइजरी कमेटी संसद की कार्यसूची तय करने में अहम भूमिका निभाती है। हालांकि जगत प्रकाश नड्डा बैठक में अनुपस्थित रहने पर सफाई दे चुके हैं, उन्होंने कहा कि दोनों मंत्री पहले से व्यस्त थे और इस संबंध में दोनों ने पहले से ही जगदीप धनखड़ को सूचित कर दिया था, इस बिंदु में कोई सच्चाई है तो, मानना पड़ेगा कि जगदीप पर जगत प्रकाश भारी पड़ गये।

इसके अलावा जगदीप धनखड़ लगातार न्यायपालिका के विरुद्ध तीखे बयान देते रहे हैं, उनके बयानों के कारण सरकार को भी कई बार असहजता महसूस हुई है। हाल में जगदीप धनखड़ ने उच्चतम न्यायालय द्वारा नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट्स कानून को निरस्त किये जाने की निंदा की थी, इस सबके बीच उन्होंने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के विरुद्ध नोटिस को स्वीकार कर लिया, जबकि सरकार चाहती थी कि प्रकरण पहले लोकसभा में रखा जाये।

मुंबई में 3-4 दिसंबर 2024 को एक समारोह आयोजित हुआ था, इस मंच पर कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान भी उपस्थित थे, इस दौरान उपराष्ट्रपति के रूप में जगदीप धनखड़ ने किसानों की चिंताओं पर उनसे कड़ा सवाल किया था, उन्होंने पूछा था कि कृषि मंत्री जी, किसानों से क्या वादा किया गया था और वादा क्यों पूरा नहीं हुआ? हम किसान और सरकार के बीच कोई सीमा रेखा क्यों बना रहे हैं? उनकी चिंता थी कि भारत दुनिया में ऊंचा है लेकिन, किसान अभी भी समस्याओं से जूझ रहे हैं, उन्होंने जोर देकर कहा कि किसान का तनाव नीतिगत गड़बड़ी को दर्शाता है और उनकी सहनशीलता की परीक्षा लेना देश के लिये भारी पड़ सकता है।

अब सवाल यह उठता है कि वे बार-बार सरकार को असहज क्यों कर रहे थे? सवाल का सीधा सा उत्तर है कि भाजपा ने उन्हें जाटों को लुभाने के लिये विशेष महत्व दिया था लेकिन, उनके रहते हुये अधिकांश चुनाव में भाजपा को अपेक्षित लाभ नहीं मिला है, जिससे भाजपा ने एक बड़ा दायित्व देकर किनारा कर दिया था लेकिन, संभवतः वे हर नीतिगत निर्णय में अपनी भूमिका चाहते थे, वे पार्टी और सरकार में अपरोक्ष रूप से बने रहना चाहते थे, ऐसा नहीं हो पा रहा था, इसलिये दबाव बनाने की दृष्टि से ऐसा-वैसा बोल जाते थे पर, भाजपा ने गंभीरता से नहीं लिया तो, पार्टी लाइन तोड़ने का प्रयास करने लगे, इस पर पार्टी ने भी अहसास करा दिया, ऐसे में भाजपा या, सरकार से खुल कर लड़ते तो, उनका ही अपमान होता, इसलिये उन्होंने त्याग पत्र देना उचित समझा लेकिन, जाते-जाते भी भाजपा सरकार को कठघरे में खड़ा करने वाली हरकत कर गये लेकिन, भाजपा ने मौन रह कर, उनकी मंशा को ध्वस्त कर दिया।

दो और उपराष्ट्रपति कार्यकाल पूर्ण नहीं कर पाये

भारत में जगदीप धनखड़ से पहले सिर्फ दो उपराष्ट्रपति ही, ऐसे हैं, जो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाये। देश के तीसरे उपराष्ट्रपति वराहगिरी वेंकट गिरी (वीवी गिरी) और कृष्ण कांत। वीवी गिरी ने 1969 में तत्कालीन राष्ट्रपति जाकिर हुसैन के निधन के बाद उपराष्ट्रपति पद छोड़ दिया था और राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ा था, उन्हें राष्ट्रपति चुनाव में जीत भी मिली थी, वे उपराष्ट्रपति पद से त्याग पत्र देने वाले वे पहले उपराष्ट्रपति थे। 1997 में उपराष्ट्रपति बनने वाले कृष्ण कांत का 27 जुलाई 2002 को उपराष्ट्रपति रहते हुये दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था, वे 75 वर्ष के थे, वे भारत के इकलौते उपराष्ट्रपति हैं, जिनका कार्यकाल के दौरान निधन हो गया था।

हरिवंश संभालेंगे सभापति का दायित्व

उपराष्ट्रपति के पास संसद के उच्च सदन राज्यसभा के सभापति पद का भी दायित्व होता है। उपराष्ट्रपति राज्यसभा के पदेन सभापति होते हैं। हालांकि, उपराष्ट्रपति की अनुपस्थिति में या, सभापति का पद खाली होने की स्थिति में राज्यसभा के उपसभापति अस्थायी तौर पर कार्यकारी सभापति के तौर पर पद संभालते हैं। आम तौर पर यह जिम्मेदारी उपसभापति पर तब ही आती है जब उपराष्ट्रपति या तो राष्ट्रपति की जगह कुछ समय के लिये कार्यकारी राष्ट्रपति के तौर पर जिम्मेदारी संभालने लगें या, उपराष्ट्रपति किसी कारण से अपने पद से इस्तीफा दे दें, इस स्थिति में राज्यसभा के उपसभापति तब तक राज्यसभा में कार्यकारी सभापति की भूमिका में रहते हैं जब तक नये उपराष्ट्रपति का चुनाव नहीं हो जाता। वर्तमान समय में राज्यसभा के उपसभापति का पद हरिवंश नारायण सिंह के पास है, ऐसे में वे ही राज्यसभा के कार्यकारी सभापति के तौर पर जिम्मेदारी निभायेंगे, वे राष्ट्रपति से भेंट भी कर चुके हैं। उपसभापति हरिवंश ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात के बाद सोशल साइट्स एक्स पर लिखा कि महामहिम राष्ट्रपति, आदरणीय श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी से शिष्टाचार भेंट की। देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन महामहिम जी की सहजता, शिष्टता और विनम्रता प्रेरक है, उनसे आज की मुलाकात में भी ऊर्जा और दृष्टि मिली। महामहिम के प्रति कृतज्ञता।

जेपी के गांव के हैं हरिवंश

हरिवंश का पूरा नाम हरिवंश नारायण सिंह है लेकिन, उन्हें हरिवंश नाम से ही जाना जाता है, वे एक अखबार के प्रधान संपादक थे, जिसके बाद वो जदयू से राज्यसभा भेजे गये और फिर उपसभापति चुने गये, वे दूसरी बार उपसभापति चुने गये हैं। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के अतिरिक्त मीडिया सलाहकार के रूप में भी हरिवंश ने कार्य किया है। पहली बार 2014 में जनता दल (यूनाइटेड) के उम्मीदवार के रूप में बिहार से हरिवंश राज्यसभा के लिये निर्वाचित हुये थे। 8 अगस्त 2018 को एनडीए के उम्मीदवार के रूप में राज्यसभा के उपसभापति बने। दूसरी बार 14 सितंबर 2020 को वो राज्यसभा के उपसभापति निर्वाचित हुये, वे मूलरूप से उत्तर प्रदेश में बलिया जिले के सिताब दियारा (दलजीत टोला) के रहने वाले हैं, जो जय प्रकाश नारायण का गांव है, इससे पहले 1981 से 1984 तक हरिवंश बैंक ऑफ इंडिया के हैदराबाद और पटना में अधिकारी के रूप में कार्यरत रहे थे, जिसके बाद में पत्रकारिता में आ गये।

अब आयोग शुरू करेगा चुनाव प्रक्रिया

उपराष्ट्रपति पद खाली होने के बाद अगले उपराष्ट्रपति चुने जाने की प्रक्रिया शीघ्र पूरी कराये जाने का प्रावधान है। चुनाव आयोग अब इस पद पर नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू करेगा। संविधान के अनुच्छेद-66 के अनुसार उपराष्ट्रपति का चुनाव संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों द्वारा गुप्त मतदान से किया जाता है। चुनाव अनुपातिक प्रतिनिधि पद्धति से किया जाता है, इसमें वोटिंग सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम से होती है। आसान शब्दों में इस चुनाव के मतदाता को वरीयता के आधार पर वोट देना होता है, जैसे वह बैलट पेपर पर मौजूद उम्मीदवारों में अपनी पहली पसंद के उम्मीदवार को एक, दूसरी पसंद को दो और इसी तरह से अन्य प्रत्याशियों के आगे अपनी प्राथमिकता नंबर के तौर पर लिखता है। मतदाता को अपनी वरीयता सिर्फ रोमन अंक के रूप में लिखनी होती है, इसे लिखने के लिये भी चुनाव आयोग द्वारा उपलब्ध कराये गये विशेष पेन का उपयोग करना होता है। मतदाता प्राथमिकता के अनुसार उम्मीदवारों को रैंक करता है। पहली पसंद पर वोटों की गिनती होती है, ऐसे में अगर कोई उम्मीदवार 50% से ज्यादा पहली पसंद के वोट हासिल कर लेता है तो, वह चुन लिया जाता है। अगर, ऐसा नहीं होता तो, सबसे कम वोट पाने वाला उम्मीदवार बाहर हो जाता है और उसके वोट दूसरी पसंद के अनुसार अगली गिनती में जोड़ दिये जाते हैं। यह प्रक्रिया तब तक चलती है जब तक कोई उम्मीदवार 50%+1 वोट हासिल न कर ले।

एनडीए के पास है पूर्ण बहुमत

लोकसभा की कुल 543 सीटों में से वर्तमान में बशीरहाट सीट खाली है, जिससे लोकसभा की प्रभावी संख्या 542 है, इसमें भाजपा और उसके सहयोगियों यानी, एनडीए के पास कुल 293 सांसदों का समर्थन है। लोकसभा में एनडीए के पास बहुमत से अधिक मत हैं। राज्यसभा में कुल 245 सीटें होती हैं लेकिन, वर्तमान में पांच सीटें खाली हैं, इनमें से चार जम्मू-कश्मीर से हैं और एक पंजाब से, जहां आम आदमी पार्टी के संजीव अरोड़ा ने हाल ही में विधानसभा उपचुनाव जीतने के बाद त्याग पत्र दे दिया था। अब राज्यसभा की प्रभावी संख्या 240 रह गई है, इनमें एनडीए के पास 129 सांसदों का समर्थन है। यह आंकड़ा तब और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जब इसमें मनोनीत सदस्य भी शामिल होते हैं, जो परंपरागत रूप से सरकार के समर्थन में मतदान करते हैं। कुल मिलाकर दोनों सदनों की प्रभावी संख्या 786 है और जीत के लिए उम्मीदवार को 394 वोटों की जरूरत होती है। एनडीए के पास इस समय 422 वोट हैं, उसे बहुमत से कहीं अधिक समर्थन हासिल है, इसलिये उसके प्रत्याशी की जीत लगभग तय है।

(लेखक, दिल्ली से प्रकाशित हिंदी साप्ताहिक गौतम संदेश के संपादक हैं)

(यह लेखक के व्य‎‎‎क्तिगत ‎विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अ‎निवार्य नहीं है)

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

वेब वार्ता समाचार एजेंसी

संपादक: सईद अहमद

पता: 111, First Floor, Pratap Bhawan, BSZ Marg, ITO, New Delhi-110096

फोन नंबर: 8587018587

ईमेल: webvarta@gmail.com

सबसे लोकप्रिय

Recent Comments