-भूपेन्द्र गुप्ता-
इतिहास केवल अतीत नहीं है, यह वर्तमान की नींव और भविष्य का मार्गदर्शक है। गलत या विकृत इतिहास हमें गलत सबक सिखाता है और भविष्य के लिए गलत नीतियां बनाने की ओर धकेलता है।
एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए आलोचनात्मक सोच और अतीत से सीखने की क्षमता आवश्यक है। यदि नागरिकों को विकृत इतिहास पढ़ाया जाएगा, तो वे अपने राष्ट्र और समाज की चुनौतियों को ठीक से समझ नहीं पाएंगे। इतिहास तथ्यों, साक्ष्यों और अकादमिक शोध पर आधारित एक अनुशासन है, न कि सत्ताधारी दल की राजनीतिक या इच्छाओं को पूरा करने का साधन। इतिहास से छेड़छाड़ करना न केवल अतीत के साथ अन्याय है, बल्कि वर्तमान और भविष्य के लिए भी हानिकारक है। सरकार द्वारा एनसीईआरटी द्वारा पाठ्य पुस्तकों में इतिहास नवलेखन के नाम पर जो बदलाव किये जा रहे हैं उससे कई प्रश्न उभरते हैं।
इतिहास की प्रकृति और सत्यनिष्ठा
इतिहास, जैसा कि नाम से स्पष्ट है, इति-ह-आस अर्थात ऐसा ही हुआ था। यह साक्ष्यों, दस्तावेज़ों, पुरातात्विक खोजों, समकालीन अभिलेखों और बहुआयामी शोध पर आधारित होता है। यह कोई कहानी या मिथक नहीं है जिसे मनचाहा बदला जा सके। जब सरकार इतिहास को अपनी राजनीतिक सुविधा के लिए बदलती है, तो वह इसके सत्य को ही नष्ट कर देती है। यह अकादमिक स्वतंत्रता पर हमला है। किसी विशेष घटना के उल्लेख को हटाना या उसे बिना विश्वसनीय साक्ष्य के तोड़-मरोड़ कर पेश करना लोकतंत्र और नागरिकता के लिए खतरा भी बन सकता है। सामुदायिक इतिहास से छेडछाड़ व्यापक सामाजिक संतुलन को प्रभावित करता है। इतिहास से छेड़छाड़ करके सरकारें एक कथित राष्ट्रीय गौरव का निर्माण करना चाहती हैं, तो इसे सच्चाई पर आधारित होना चाहिए। क्योंकि विकृत इतिहास नागरिकों को सोचने, सवाल पूछने और वर्तमान के मुद्दों को ऐतिहासिक संदर्भ में देखने से रोकता है। पाठ्यपुस्तकों से कुछ अध्यायों को हटाना या उन्हें पूरी तरह से बदल देना जो किसी सत्ताधारी विचारधारा के अनुरूप न हों जैसे प्रयास सामाजिक स्थैर्य को हानि पहुंचाते है।
ज्ञान और भविष्य पर प्रभाव
हम अपनी गलतियों से तभी सीखते हैं जब हम उन्हें स्वीकार करते हैं। इतिहास को साफ करके या नायक-पूजा करके हम अपनी कमजोरियों और गलतियों को पहचानने का मौका खो देते हैं। हर युग में हर समाज में नायक और खलनायक हो सकते हैं। किसी शासनकाल की केवल उपलब्धियों को दिखाना और उसकी विफलताओं या क्रूरताओं को छुपाना इतिहास लेखन नहीं है।
सामाजिक समरसता पर नकारात्मक प्रभाव
अक्सर इतिहास से छेड़छाड़ का उद्देश्य कुछ समुदायों या विचारधाराओं को महिमामंडित करना और दूसरों को नीचा दिखाना होता है। यह समाज में विभाजन और वैमनस्य को बढ़ावा देता है। सच्चा इतिहास सभी आवाज़ों, दृष्टिकोणों और अनुभवों को समाहित करता है। वह विविधता को स्वीकारता है।
अंतर्राष्ट्रीय विश्वसनीयता पर प्रश्न
इतिहास वैश्विक ज्ञान का हिस्सा है। अन्य देशों के विद्वान और नागरिक इस छेड़छाड़ को आसानी से पहचान लेते हैं, जिससे देश की छवि खराब होती है। जब कोई देश अपने इतिहास से छेड़छाड़ करता है, तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसकी अकादमिक और बौद्धिक विश्वसनीयता पर सवाल उठते हैं।
तर्क दिया जा सकता है कि इतिहास को सुधारा जा रहा है
किंतु इतिहास को सुधारने और छेड़छाड़ करने में फर्क है। अकादमिक इतिहास में नई खोजों, साक्ष्यों और गहन शोध के आधार पर लगातार नए दृष्टिकोण आते हैं। यह एक सतत प्रक्रिया है। लेकिन सरकार द्वारा बिना किसी नए अकादमिक साक्ष्य के, केवल राजनीतिक एजेंडे के तहत बदलाव करना छेड़छाड़ है। क्या ये सुधार किसी स्वतंत्र इतिहासकार की कमेटी ने सुझाए हैं, या सिर्फ राजनीतिक इच्छाशक्ति से हो रहे हैं? यह पाठ्यक्रम में बदलाव करते समय सुनिश्चित होना चाहिए।
यह भी कहा जाता है कि राष्ट्र गौरव बढ़ाने के लिए यह किया जा रहा है। लेकिन सच्चा राष्ट्र गौरव अतीत की सच्चाइयों का सामना करने से आता है, चाहे वे कितनी भी कड़वी क्यों न हों। केवल मनगढ़ंत या चुनिंदा इतिहास से निर्मित गौरव खोखला होता है और यह कभी भी एक मजबूत राष्ट्र की नींव नहीं बन सकता। क्या हम अपनी कमियों और गलतियों से सीखे बिना सच में आगे बढ़ सकते हैं?
यह भी कहा जा रहा हैं कि ऐतिहासिक तथ्य पश्चिमी या औपनिवेशिक दृष्टिकोण से लिखे गए थे, उन्हें बदलना ज़रूरी है। निश्चित रूप से, औपनिवेशिक इतिहास में पूर्वाग्रह थे, और उनका अकादमिक रूप से विश्लेषण और आलोचना होनी चाहिए। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम एक पूर्वाग्रह को दूसरे पूर्वाग्रह से बदल दें। हमें नए, भारतीय दृष्टिकोण से इतिहास लिखना चाहिए जो तथ्यों पर आधारित हो, न कि प्रतिक्रिया या निजी विचार पर।
अगर अप्रकाशित नायकों और घटनाओं को सामने लाया जा रहा है। तो यह एक स्वागत योग्य कदम है, लेकिन सामने लाने और बाकियों को मिटाने में अंतर है। नए नायकों को जोड़ना चाहिए, उनकी कहानियों को पढ़ाना चाहिए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम स्थापित और स्वीकृत इतिहास को मिटा दें।
उदाहरण के लिये हाल ही में इतिहास से छेड़छाड़ के आरोप इसलिये लगे हैं क्योंकि गांधी जी की हत्या में हत्यारे नाथूराम गोडसे की जगह लिखा गया है कि एक युवा ने गांधी जी की हत्या कर दी। क्या यह इतिहास लेखन है? पूरी दुनिया इस तथ्य को जानती है, वह किताब से हटाओगे तो गूगल बता देगा।
इसी तरह बिरसा मुंडा इतिहास के नायक हैं उन्होंने अंग्रेजों और हिंदु लैंडलार्डस की ज्यादतियों के विरुद्ध संघर्ष किया था इसमें से हिंदु शब्द हटा दिया गया है। अब यह सिद्ध हो चुका है कि आर्य भी ईरान से 1500 बीसी के पहले भारत आये थे उन्हें भारत का ही बताना तथ्यों को नकारना है तो इसके तार्किक कारण बताये जाने चाहिये। सच्चा इतिहास तो साक्ष्य-आधारित होता है। इतिहास से छेड़छाड़ भावी पीढ़ियों के साथ धोखा है। यह उन्हें अपनी जड़ों और सच्चाई से दूर करता है। एक राष्ट्र जो अपने इतिहास का सम्मान नहीं करता, वह अपने भविष्य का निर्माण नहीं कर सकता। पाठ्यपुस्तकों का निर्माण अकादमिक पारदर्शिता से होना चाहिए। सच्चा राष्ट्र तभी बनता है जब वह अपने पूरे इतिहास को, उसकी अच्छाइयों और बुराइयों सहित, स्वीकार करे और उससे सीखे। इतिहास को राजनीतिक हथियार बनाना, देश के भविष्य से खिलवाड़ है।
(लेखक स्वतंत्र विश्लेषक हैं)