नई दिल्ली, रिपोर्ट: वेब वार्ता ब्यूरो | विश्लेषण: अफज़ान अराफात
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी द्वारा चुनाव आयोग पर लगाए गए आरोपों को लेकर चुनाव आयोग ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। आयोग ने कहा है कि यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक वरिष्ठ नेता संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करने के बजाय, आयोग जैसे स्वतंत्र और संवैधानिक संस्थान को सार्वजनिक रूप से धमकी देने का प्रयास कर रहे हैं।
राहुल गांधी ने बिहार में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) अभियान पर सवाल उठाते हुए कर्नाटक का हवाला दिया और आरोप लगाया कि वहां एक सीट पर चुनाव आयोग की मिलीभगत से गड़बड़ी की गई है। उन्होंने दावा किया कि उनके पास “100 प्रतिशत पक्के सबूत हैं” कि निर्वाचन क्षेत्र में मतदाता सूची में हेरफेर की गई। राहुल गांधी ने इसे “सोची-समझी रणनीति” का हिस्सा बताया।
चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया: ‘यह प्रक्रिया का अपमान है’
चुनाव आयोग ने राहुल गांधी के इस रवैये को संविधान और जनप्रतिनिधित्व कानून (Representation of the People Act) का सीधा उल्लंघन बताया। आयोग ने कहा:
“यदि किसी दल या व्यक्ति को मतदाता सूची में गड़बड़ी का संदेह है, तो जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 80 के तहत याचिका दाखिल की जा सकती है। कोर्ट में मामला लंबित होने पर ऐसी सार्वजनिक टिप्पणी न केवल अनुचित है, बल्कि संस्थान की गरिमा को ठेस पहुंचाती है।”
इसके अलावा, आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि कर्नाटक के सभी 224 विधानसभा क्षेत्रों की ड्राफ्ट और अंतिम मतदाता सूचियां कांग्रेस सहित सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के साथ साझा की गई थीं।
राज्य चुनाव आयोग ने भी किया स्पष्टीकरण
कर्नाटक के मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय ने बताया कि:
ड्राफ्ट और फाइनल मतदाता सूची सभी राजनीतिक दलों को उपलब्ध कराई गई थी।
चुनाव से पहले 9,17,928 दावे और आपत्तियां दर्ज की गई थीं, जिन्हें नियमानुसार निपटाया गया।
किसी भी राजनीतिक दल, यहां तक कि कांग्रेस की ओर से भी, मतदाता सूची में गड़बड़ी के खिलाफ कोई अपील या याचिका दायर नहीं की गई।
क्या है विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR)?
विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान का उद्देश्य मतदाता सूची को अद्यतन करना और फर्जी या डुप्लीकेट नामों को हटाना है। यह प्रक्रिया नियमित अंतराल पर की जाती है और राजनीतिक दलों को इसमें भाग लेने का पूरा अवसर दिया जाता है। इस प्रक्रिया में:
नागरिकों को अपने नाम जुड़वाने, हटवाने या सुधार करवाने का अधिकार होता है,
राजनीतिक दल अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से निगरानी कर सकते हैं,
सभी दावों पर सुनवाई होती है और नियमानुसार निर्णय दिया जाता है।
राहुल गांधी की टिप्पणी पर उठे सवाल
विशेषज्ञों और राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि एक वरिष्ठ नेता द्वारा सार्वजनिक रूप से चुनाव आयोग जैसे संवैधानिक निकाय पर बिना किसी कानूनी आधार के आरोप लगाना, लोकतांत्रिक संस्थाओं की साख पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है। अगर किसी को आपत्ति है तो उसे कोर्ट या आयोग के माध्यम से प्रक्रिया का पालन करना चाहिए, न कि धमकी की भाषा में संवाद करना।
राजनीतिक प्रतिक्रिया क्या हो सकती है?
इस बयान को लेकर आने वाले दिनों में संसद में भी बहस छिड़ सकती है। एक ओर कांग्रेस इस मुद्दे को ‘चुनाव में निष्पक्षता’ से जोड़ने की कोशिश करेगी, वहीं भाजपा और अन्य दल इसे ‘संवैधानिक संस्थाओं के अपमान’ के रूप में उठाएंगे।
निष्कर्ष: लोकतंत्र में प्रक्रिया सर्वोपरि है
चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया यह स्पष्ट करती है कि लोकतंत्र में किसी भी शिकायत का समाधान कानूनी और संवैधानिक तरीकों से ही संभव है। ऐसे में यदि किसी को असहमति है, तो उसे संस्थागत प्रक्रिया के माध्यम से अपनी बात रखनी चाहिए। धमकी या सार्वजनिक आरोप से लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की साख को ठेस पहुंचती है और इससे आम मतदाता का विश्वास भी प्रभावित होता है।