नई दिल्ली, (वेब वार्ता)। भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) जस्टिस बी.आर. गवई ने बुधवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। इस याचिका में इन-हाउस जांच समिति की रिपोर्ट को चुनौती दी गई है। समिति ने अपनी रिपोर्ट में न्यायमूर्ति वर्मा को कथित “कैश रिकवरी” विवाद में दोषी ठहराया था। सीजेआई गवई ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से कहा, “मैं इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकता क्योंकि मैं भी उस समिति का हिस्सा था। हमें इस मामले को सूचीबद्ध करना होगा और इसके लिए एक नई पीठ का गठन करना पड़ेगा।” सीजेआई गवई ने कहा, “मैं जस्टिस वर्मा को चुनने वाली कॉलेजियम में था, इसलिए मेरा सुनवाई करना ठीक नहीं है।”
यह टिप्पणी उस समय आई जब कपिल सिब्बल ने न्यायमूर्ति वर्मा की ओर से इस मामले का शीघ्र निपटारा करने की मांग की। सिब्बल ने बताया कि याचिका में संवैधानिक प्रश्न उठाए गए हैं, इसलिए शीघ्र सुनवाई आवश्यक है। मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ में न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति जॉयमल्या बागची भी शामिल थे। जस्टिस वर्मा ने भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा 8 मई को की गई उस सिफारिश को भी रद्द करने की मांग की है, जिसमें उन्होंने संसद से उनके खिलाफ महाभियोग शुरू करने का आग्रह किया था।
क्या है मामला?
जस्टिस यशवंत वर्मा उस समय दिल्ली हाईकोर्ट में न्यायाधीश थे, जब 14 मार्च की रात करीब 11:35 बजे उनके आधिकारिक आवास पर आग लगने की घटना हुई। इस घटना के बाद मौके से कैश बरामद होने की खबर सामने आई, जिसे लेकर विवाद गहराया। इसके बाद, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस शील नागु के नेतृत्व में गठित तीन-सदस्यीय समिति ने 10 दिनों तक जांच की, जिसमें 55 गवाहों से पूछताछ की गई और घटनास्थल का निरीक्षण भी किया गया।
क्या बोली थी जांच समिति?
घटना की जांच कर रही समिति की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि न्यायमूर्ति वर्मा और उनके परिवार के सदस्यों का उस स्टोर रूम पर गुप्त या सक्रिय नियंत्रण था जहां बड़ी मात्रा में अधजली नकदी मिली थी और इससे उनके कदाचार का प्रमाण मिलता है जो इतना गंभीर है कि उन्हें हटाया जाना चाहिए।
समिति की रिपोर्ट में कहा गया कि जस्टिस वर्मा और उनके परिवार का उस स्टोररूम पर प्रत्यक्ष या परोक्ष नियंत्रण था, जहां यह नकदी बरामद हुई। समिति ने इस आधार पर उन्हें गंभीर दुराचार का दोषी ठहराते हुए पद से हटाए जाने योग्य पाया। रिपोर्ट के आधार पर तत्कालीन सीजेआई जस्टिस संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर महाभियोग की सिफारिश की थी।
जांच रिपोर्ट पर सवाल
अब सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में, न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा कि जांच ने ‘साक्ष्य प्रस्तुत करने की उस जिम्मेदारी को उलट दिया’, जिससे उन्हें अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों की जांच करनी है और उन्हें गलत साबित करना है। न्यायमूर्ति वर्मा ने आरोप लगाया कि समिति के निष्कर्ष एक पूर्वकल्पित कहानी पर आधारित थे। याचिका में तर्क दिया गया है कि जांच समिति ने उन्हें पूर्ण और निष्पक्ष सुनवाई का अवसर दिए बिना ही प्रतिकूल निष्कर्ष निकाले।
संसद में महाभियोग प्रस्ताव
सोमवार को कुल 208 सांसदों (145 लोकसभा और 63 राज्यसभा सांसद) ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा सभापति को याचिका सौंपी। प्रमुख हस्ताक्षरों में राहुल गांधी, अनुराग ठाकुर, रविशंकर प्रसाद, राजीव प्रताप रूडी, सुप्रिया सुले, पी.पी. चौधरी और के.सी. वेणुगोपाल शामिल हैं। कांग्रेस सांसद के. सुरेश ने भी इस प्रयास को पार्टी का पूरा समर्थन मिलने की पुष्टि की।
यह प्रस्ताव भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 218 के तहत दाखिल किया गया है। इन अनुच्छेदों के तहत किसी न्यायाधीश को हटाने के लिए कम से कम 100 लोकसभा और 50 राज्यसभा सांसदों के समर्थन की आवश्यकता होती है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि संसद के दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारी इस प्रस्ताव को स्वीकार करते हैं या अस्वीकार।
जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में जो याचिका दायर की है, उसमें उन्होंने न केवल जांच समिति की रिपोर्ट को रद्द करने की मांग की है, बल्कि महाभियोग की प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए हैं। अब मुख्य न्यायाधीश गवई के अलग होने के बाद, एक नई पीठ गठित की जाएगी जो इस संवेदनशील और संवैधानिक मुद्दे पर सुनवाई करेगी।