Sunday, April 20, 2025
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विस्थापन, पहचान और पुनर्वास की गहन पड़ताल पर डीयू के सीआईपीएस द्वारा संगोष्ठी आयोजित

नई दिल्ली, (वेब वार्ता)। दिल्ली विश्वविद्यालय के “सेंटर फॉर इंडिपेंडेंस एंड पार्टीशन स्टडीज” और भारती कॉलेज के राजनीतिक विज्ञान विभाग एवं पंजाबी विभाग द्वारा संयुक्त रूप से “बॉर्डर्स एंड बाउंड्रीजः डिस्प्लेसमेंट, आइडेंटिटी एंड रिसेटलमेंट” विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस आयोजन ने ऐतिहासिक विभाजन के प्रभावों और उसकी विरासत पर एक बहुआयामी दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। इस अवसर पर संगोष्ठी के माननीय अतिथि प्रो. श्री प्रकाश सिंह (निर्देशक दक्षिण परिसर, दिल्ली विश्वविद्यालय) ने “विस्थापित” शब्द की व्याख्या करते हुए इसे केवल भौगोलिक घटना न मानकर मानवता के दर्द का प्रतीक बताया।

प्रो. श्री प्रकाश सिंह ने सर सैयद अहमद खान के विचारों का उल्लेख करते हुए कहा कि सांस्कृतिक और राजनीतिक मतभेदों ने विभाजन को अपरिहार्य बना दिया। जिन्होंने विभाजन को एक सांस्कृतिक और भावनात्मक अनुभव के रूप में परिभाषित करते हुए इसके ऐतिहासिक पक्षों पर चर्चा की। कार्यक्रम के दौरान सीआईपीएस के निदेशक प्रो. रविंदर कुमार ने संगोष्ठी का उद्देश्य स्पष्ट किया। मुख्य अतिथि डॉ. स्वप्न दासगुप्ता ने बंगाली संस्कृति और विभाजन के सांस्कृतिक पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि, “विभाजन क्षेत्रीय और राजनीतिक हो सकता है, लेकिन संस्कृति को विभाजित नहीं किया जा सकता। ” उन्होंने बंगाली नव वर्ष की शुभकामनाएं भी दीं। कार्यक्रम के आरंभ में भारती कॉलेज की प्राचार्य प्रो. सलोनी गुप्ता ने स्वागत किया।

प्रो. हिमांशु प्रसाद रॉय की अध्यक्षता में हुई पैनल चर्चा में, प्रो. अमृत कौर बसरा ने ऐतिहासिक विभाजन की तारीखों और कहानियों पर गहरा प्रकाश डाला। प्रो. भुवन झा ने 1930-1948 के बीच की घटनाओं का उल्लेख करते हुए जिन्ना और गांधी के बीच के पत्राचार की राजनीतिक गहराई को उजागर किया। डॉ. वरुण गुलाटी ने “फूट डालो और राज करो” की ब्रिटिश औपनिवेशिक रणनीति की आलोचना की और कहा कि विभाजन साम्राज्यवादी हितों को बनाए रखने के लिए राजनीतिक रूप से किया गया था। प्रो ज्योति त्रिहन शर्मा ने संगोष्ठी का समापन करते हुए इसे एक ऐतिहासिक चेतना जागरूक करने वाला प्रयास बताया।

मध्यांतर के दौरान डॉक्यूमेंट्री और अंत में “गूंजती खामोशी” नामक नाटक प्रस्तुत की गई, जिसने विभाजन पीड़ितों के दर्द को जीवंत कर दिया। यह संगोष्ठी विभाजन के शारीरिक और मानसिक पहलुओं के गहन विश्लेषण का माध्यम बनी। वक्ताओं ने ऐतिहासिक दस्तावेजों, कहानियों और सांस्कृतिक विरासत के माध्यम से बताया कि कैसे विभाजन ने व्यक्तियों और समाज को बदला। दिल्ली विश्वविद्यालय और भारती कॉलेज का यह संयुक्त प्रयास विभाजन और विस्थापन जैसे गहन विषयों पर संवेदनशीलता और ऐतिहासिक जागरूकता बढ़ाने की दिशा में एक सराहनीय कदम है।

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