Wednesday, March 12, 2025
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औरंगजेब के बाद अब तुगलक की बारी

-राकेश अचल-

कहते हैं कि जब- सूप तो सूप, छलनी भी बोल उठे तो समझिये कि संकेत अच्छे नहीं हैं। सत्तारूढ़ दल में मुस्लिम शासकों के खिलाफ छाया युद्ध में अब औरंगजेब के बाद मोहम्मद बिन तुगलक की एन्ट्री हो गयी है। भाजपा सांसद दिनेश शर्मा ने अपने तुगलक लेन आवास की नेमप्लेट बदलकर स्वामी विवेकानंद मार्ग कर ली है। उनके इस कदम पर राजनीति शुरू हो गई है। यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि ऐसे नामों को बदलने का दिल्ली में भी सही समय आ गया है।

मोहम्मद बिन तुगलक के बारे में जानने से पहले दिनेश शर्मा के बारे में जान लीजिये। पंडित जी उसी लखनऊ के हैं और उत्तर प्रदेश से ही राजयसभा के लिए चुने गए हैं। लखनऊ से कभी भाजपा के संस्थापक अटल बिहारी बाजपेयी सांसद हुआ करते थे। पंडित जी राजनीति में आने से पहले प्रोफेसर थे, फिर महापौर बने, विधायक बने, उप्र के उप मुख्यमंत्री बने और अब सांसद हैं। एक जमाने में पंडित अटल बिहारी वाजपेयी ने दिनेश शर्मा को महापौर बनाने के लिए जनता से वोट मांगे थे। यही दिनेश शर्मा जी अब उस रास्ते पर निकल पड़े हैं जिस पर अटल जी कभी नहीं चले।

आइये अब मोहम्मद बिन तुगलक के बारे में जान लेते हैं। तुगलक क्रूर औरंगजेब से भी पुराना मुगल शासक था। गयासुद्दीन तुगलक के इस पढ़े लिखे बेटे ने 1325 से 1351 तक दिल्ली के तख्त पर राज किया और अपने जमाने में क्रूरता की, सनक की अनेक इबारतें लिखीं। तुगलक को पढ़ने बैठिये तो आपको एक उपन्यास जैसा मजा आ जायेगा। 20 मार्च 1351 में कालकवलित हुए तुगलक के नाम पर दिल्ली में युगों से एक सड़क है। अब इसी सड़क के विरोध के बहाने तुगलक 674 साल बाद एक बार फिर जेरे बहस है। तुगलक के सनकी फैसलों की वजह से एक मुहावरा ही बन गया, जिसे तुगलकी फरमान कहा जाता है। तुगलक के बारे में यदि आपको ज्यादा जानना है तो इतिहास की कोई किताब खरीद लीजिये।

मै वापस आता हूँ भाजपा की बिना मुद्दों की राजनीति की और। भाजपा में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी से लेकर दिनेश शर्मा तक बिना मुद्दों की राजनीति करते है। वो इसलिए करते हैं क्योंकि मुद्दों पर राजनीति करना आसान नहीं होता है, लेकिन बिना मुद्दों के सुर्खियां बटोरना और असल मुद्दों को इन सुर्ख़ियों के नीचे दफन कर देना होता आसान होता है। भाजपा नेता आसान काम पहले करते हैं। भाजपा मुस्लिम शासकों को न मरने देती है और न जनता को चैन से बैठने देती है। बेचारा औरंगजेब कब्र से बाहर निकालकर पीटा जा रहा है। अभी वो अध्याय समाप्त भी नहीं हुआ था कि पंडित दिनेश शर्मा जी तुगलक को कब्र से बाहर निकाल लाये। मतलब भाजपा मुर्दों को भी चैन से सोने नहीं दे रही। कल पता नहीं कौन सा मुर्दा कब्र से बाहर निकाल लाये भाजपा।

मुसलमान शासकों को हौवा बनाकर सियासत करने वाली भाजपा को मेरा एक ही मश्विरा है की उसे रोज-रोज का मुस्लिम विरोध करने की बजाय एक बार में किस्सा समाप्त कर देना चाहिए। देश में मुस्लिम शासकों की नाम से जितने गांव, शहर, गली-मुहल्ले हैं उन सबके नाम एक झटके में एक विधान बनाकर बदल देना चाहिए /कम से कम जहाँ डबल इंजिन की सरकारें हैं, वहां तो ये काम आसानी से हो सकता है। दूसरें भारत में जितने भी कब्रस्तान हैं उनके ऊपर बुलडोजर चलकर वहां बागीचे बना देना चाहिए, न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी। किन्तु मुश्किल ये है कि भाजपा ये भी नहीं कर सकती। क्योंकि यदि ऐसा कर दिया गया तो विरोधी भाजपा नेताओं की तुलना ही औरंगजेब और तुगलक से किये बिना नहीं मानेगे।

इतिहास गवाह है कि जिस किसी भू-भाग में इतिहास पर धूल डालने की कोशिश की गयी है वहां का न वर्तमान समृद्ध हो पाया है और न भविष्य उज्ज्वल हुआ है। इतिहास ही ज्ञान का असल स्रोत माना जाता है। इतिहास ही यदि नींव में नहीं है है तो कैसा वर्तमान और कैसा भविष्य? मुझे मध्यकाल के किसी भी मुगल शासक से कोई सहानुभूति नहीं है लेकिन मै उनके होने को भी ख़ारिज नहीं kart। मै उनसे घृणा भी नहीं करता। मै नहीं कह सकता कि इस मुल्क को बनाने में केवल आज की शासकों का योगदान है और अतीत के किसी भी शासक का कोई योगदान नहीं है। यदि भाजपा की ये धारणा है तो उसे सबसे पहले अंग्रेजों के ज़माने की गुलामी के चिन्ह समाप्त करने से पहले मुग़लों के और मुगलों से पहले जो भी शासक रहे हैं उनके अवशेष या चिन्ह समाप्त करना चाहिए। विस्मिल्लाह दिल्ली में बनी क़ुतुब मीनार तोड़कर किया जा सकता है। कहते हैं कि क़ुतुब मीनार किसी मुगल शासक कुतबुद्दीन ऐबक ने बनाई थी। उसके नाम से भी दिल्ली में बहुत कुछ है।

पाठकों को और हिंदुस्तान की लोगों को ये तय करना है कि मुल्क में क्या रहे और क्या न रहे? ये तय करने वाले भाजपाई कौन होते हैं? उन्हें तो देश बनाने का मौक़ा जुम्मा-जुम्मा दस साल पहले मिला है और उसमें भी उन्होंने जो हिंदुस्तान बनाया है वो दरका हुआ, डरा हुआ एक सशंकित हिंदुस्तान बना है। जिसमें सरकार शहरों, स्टेशनों, सड़कों की नाम बदलने से ही फारिग नहीं हो पायी है। मुझे तो हैरानी होती है कि जो घ्रणित और घटिया काम पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने नहीं किया वो घटिया और घ्रणित काम अटल जी के शिष्य दिनेश शर्मा कर गुजरे। तुगलक लेन का नाम हालाँकि अभी बदला नहीं है लेकिन यदि बदल भी जाये तो तुगलक इतिहास से गायब नहीं हो सकते। तुगलक क्या कोई भी गायब नहीं हो सकता। इसलिए बेहतर है कि/ भाजपा और भाजपाई अपना मुस्लिम प्रेम (घृणा) बंद करें और ये मुल्क जैसा बना था उसे वैसा ही बना रहने दें। हिंदुस्तान /भारत /इंडिया जैसा था खूबसूरत है। उसे विकृत मत कीजिये।

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