हे मेरे आकाश सरीखे आत्मन देखो तो
9/24/2017 3:08:35 PM
-वसुन्धरा पाण्डेय- हे मेरे आकाश सरीखे आत्मन देखो तो तुम्हे देखते रहने की ख़ुशी और आनंद में डूबती उतराती हुई कैसी लग रही हूं मैं, तुम्हारा इतनी ऊंचाइयों पर होना कोई साधारण बात तो हैं नही.. पहुंचना तो चाहती हूं तुम तक किन्तु नहीं होता हौसला, क्योंकि मेरी सामथ्र्य से मेरी हर कोशिश छिटक छिटक जाती है बाहर और, पंख भी तो अभी छोटे हैं मेरे… हे मेरे अचीन्हे अतिथि! मेरे जीवन की प्रभाती वर्षों से प्रतीक्षारत जिसकी बाट जोहती मैं मेरे अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर कहीं तुम ही तो नहीं? सच सच बतलाना!